नई दिल्ली : भारत में पानी की उपलब्धता दशकों से कम हो रही है, जिससे कई हिस्सों को किसी दिन पानी की बिल्कुल आपूर्ति नहीं होती, कारखानें बंद करने पड़ रहे हैं और किसान भी हाशिए पर पहुंच रहे हैं. देश 2030 तक पानी की अपनी आधी मांग को पूरा करने में असमर्थ हो सकता है. एक नई किताब में आगाह किया गया है.
किताब 'वाटरशेड: हाउ वी डिस्ट्रॉयड इंडियाज वॉटर एंड हाउ वी कैन सेव इट' में मृदुला रमेश ने भारत में पानी के संबंध में अतीत और वर्तमान स्थिति को उजागर किया है और यह भी रेखांकित किया है कि अब इसके भविष्य को सुरक्षित करना क्यों महत्वपूर्ण है. रमेश ने आगाह किया है कि भारत में आगे जल संकट और भी गहरा सकता है.
यह किताब उन कारकों पर प्रकाश डालती है, जिन्होंने भारत को इस संकट की ओर बढ़ाया है. किताब में 5000 साल के इतिहास के साथ आज देश में चरम मौसम की घटनाओं और किसानों के विरोध से लेकर पानी से संबंधित भू-राजनीति, स्वच्छ प्रौद्योगिकी जैसे विषयों का भी जिक्र किया गया है.
'हैचेट इंडिया' द्वारा प्रकाशित किताब में कहा गया है, 'पिछले 150 वर्षों में भारत में उगाई जाने वाली फसलों के तरीके में बदलाव हुआ है. 19वीं शताब्दी में मुख्य रूप से बाजरा उगाने वाले देश से अब हम चावल और गेहूं उत्पादक देश बन गए हैं.'
रमेश ने कहा है कि कृषि क्षेत्र भारत के पानी का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है और यह बदलाव पानी पर भारी दबाव डालता है क्योंकि देश में अनाज की पैदावार करने वाले बड़े राज्य पंजाब और हरियाणा में ज्यादा बारिश नहीं होती है.
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किताब में कहा गया है, 'इस परिवर्तन के लिए बांधों और नहरों पर भारी खर्च करने की आवश्यकता होती है, जिससे शहरी जल आपूर्ति स्वाभाविक रूप से महंगी हो जाती है. भारत की बढ़ती आबादी, शहरीकरण और धन को देखते हुए, भारत की पानी की कुल मांग का लगभग आधा 2030 तक पूरा नहीं हो सकेगा.'
रमेश ने कहा है कि जल आपूर्ति, वर्षा जल संचयन क्षमता, पानी की बर्बादी, उपचारित और पुन: उपयोग किए गए पानी के संबंध में जल सर्वेक्षण सर्वेक्षण शुरू किया जाना चाहिए.
(पीटीआई-भाषा)