नई दिल्ली : इस्लामिक देशों का संगठन (ओआईसी) हमेशा से ही भारत के खिलाफ रूख अपनाता रहा है. जब भी कश्मीर की बात आती है, तो ओआईसी पाकिस्तान का पक्ष उठाता रहा है. वैसे, कुछेक बार ऐसा भी हुआ है कि उसने भारत के खिलाफ कोई कड़ा बयान जारी किया. इसके बावजूद भारत ने ओआईसी के उस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें कुरान जलाए जाने की घटना की निंदा की गई है. यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में लाया गया था. यूएनएचआरसी में कुल 47 सदस्य हैं.
स्वीडन में कुरान जलाए जाने की घटना पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में लाए गए निंदा प्रस्ताव का भारत ने समर्थन किया. यह प्रस्ताव इस्लामिक देशों के संगठन, ओआईसी, ने मूव किया था. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया. 28 देशों ने समर्थन में, जबकि 12 देशों ने इसके विरोध में मत किया. सात देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.
विरोध करने वाले देशों में फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, कोस्टारिका, मोंटेनेगरो और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं. नेपाल, चिली, बेनिन, मेक्सिको और पाराग्वे ने मतदान में भागीदारी नहीं की. जिन देशों ने हिस्सा लिया उनमें भारत के अलावा चीन और द. अफ्रीका जैसे देश शामिल हैं.
क्या था चीन का स्टैंड - चीन ने कहा कि हम इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, क्योंकि इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है. कुछ देश पवित्र कुरान का अपमान कर रहे हैं और ऐसी घटनाएं बार-बार हो रहीं हैं. इन देशों ने धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया.
विरोध का आधार- पश्चिमी देशों ने कहा कि यह मामला मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा है, इसलिए वे निंदा प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं.
क्या कहा अमेरिका ने - अमेरिकी प्रतिनिधि मिशेल टेलर ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हम मामले की आलोचना नहीं करना चाहते हैं, लेकिन हमारे लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी महत्वपूर्ण विषय है. टेलर ने कहा कि हम चाहते थे कि इस पर एक राय कायम हो सके, लेकिन हमारी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया गया.
क्या है पूरा मामला - गत महीने बकरीद की छुट्टी के दिन स्वीडन के स्टॉकहोम में एक इराकी प्रवासी ने कुरान की प्रति जलाई थी. जलाने से पहले उसने कुरान की प्रति फाड़ दिया था. यह सब उसने एक मस्जिद के बाहर किया. इस घटना के बाद इस्लामिक देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी.
भारत के खिलाफ ओआईसी - दिसंबर 2022 में ओआईसी महासचिव ने अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग की थी. इसी तरह से ओआईसी ने भाजपा नेता नुपूर शर्मा मामले में भी आोलचना की थी. ओआईसी ने राम नवमी जुलूस के दौरान मुस्लिम समुदाय को टारजेट करने का आरोप लगाया था. यह आरोप ओआईसी ने इसी साल लगाए थे. भारत ने इसकी कड़ी आलोचना कर इसे एंटी इंडिया कैंपेन का हिस्सा बताया था.
ओआईसी का दोहरा रवैया - ओआईसी 57 मुस्लिम बहुल देशों का संगठन है. इस पर सुन्नी मुस्लिम देशों का वर्चस्व है. ओआईसी भले ही भारत पर निशाना साधता हो, लेकिन इसने कभी भी चीन के खिलाफ मुंह नहीं खोला. चीन में सताए जा रहे उइगर मुस्लमानों पर उसने कभी भी कोई प्रस्ताव मूव नहीं किया है. इसी तरह से ईरान मामले पर ओआईसी प्रतिक्रिया जारी करने से मना करता रहा है. ईरान में हिजाब प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसात्मक कार्रवाई पर ओआईसी ने कोई आलोचना नहीं की थी. पाकिस्तान मामले पर भी ओआईसी चुप्पी साधे रहता है.
ओआईसी का हेड ऑफिस सऊदी अरब के जेद्दाह में है. इस संगठन की स्थापना सितंबर 1969 में हुई थी. इसका मुख्य मकसद दुनिया भर में मुस्लिम हितों की सुरक्षा करना है. यह यूएन के बाद दूसरा सबसे बड़ा संगठन है, जिसमें इतने अधिक देश शामिल हैं.
भारत को ओआईसी की बैठक में 2019 में गेस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर आमंत्रित किया गया था. उस समय भारत का प्रतिनिधित्व तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया था. इस आमंत्रण के लिए यूएई और सऊदी अरब ने बड़ी भूमिका निभाई थी. भारत में पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी का 10वां हिस्सा रहता है.
ये भी पढ़ें : पीओके का दौरा करने पर OIC के महासचिव पर भारत ने साधा निशाना