नई दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक विशेषज्ञ और राजनीतिक विचारक ( political thinker) डॉ सुव्रो कमल दत्ता (Dr Suvro Kamal Dutta) ने कहा है कि यदि दोहा दौर के परिणाम के पूरा होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा शांति सेना बनाने का प्रयास किया जाता है, तो इसमें भारत की अहम भूमिका होगी.
ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'यदि दोहा चर्चा के परिणाम के पूरा होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय (international community) द्वारा शांति सेना (peacekeeping force )बनाने का प्रयास किया जाता है, मेरी समझ से भारत को इसमें अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.'
अगर भारत भारतीय शांति सेना (Indian peacekeeping force) को श्रीलंका में एक शांति सेना के रूप में भेजा सकता है, तो हमें अफगानिस्तान में शांति सेना भेजने से कौन रोकता है? अगर कोई भड़कता है तो उसका दूरगामी परिणाम ( domino effect) होंगे और उसका इफेक्ट कश्मीर पर भी होगा, जो बहुत खतरनाक है.
उन्होंने कहा कि पूरी स्थिति विस्फोटक हो सकती है और यदि मध्य एशिया, ईरान के साथ-साथ भारत में भी कोई स्पिलओवर प्रभाव पड़ता है, तो पाकिस्तान बहुत खुश होगा और हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते हैं, इसलिए, मेरी समझ में, यदि कोई निर्णय है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा एक शांति सेना भेजनी चाहिए, तो भारत को इसमें अग्रणी होना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि भारत को मध्य एशियाई देशों, ईरान के नेशनल एलीट क्लास (National Elite Force) और भारतीय सेना (Indian army), ताजिक सेना, उज़्बेक सेना के साथ एक संयुक्त शांति सेना का गठन करना चाहिए और वे सभी मिलकर एक साथ आ सकते हैं और अफगानिस्तान में शांतिदूत की भूमिका निभा सकते हैं, ताकि चीजें सुरक्षित रहें.
अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने का राष्ट्रपति बाइडेन (President Biden) का फैसला अफगानिस्तान के लिए एक बड़ा जोखिम और चिंता का विषय है. युद्धग्रस्त देश में स्थिति अस्थिर हो रही है, क्योंकि अमेरिकी सैनिकों के पूरी तरह से हटने के बाद तालिबान सेना (Taliban forces) देश भर में सैन्य आक्रमण के साथ आगे बढ़ रही है. इसलिए, यदि तालिबान जीत हासिल करता है, तो यह न केवल अफगानिस्तान में भारत के राजनयिक दांवों के लिए बल्कि अन्य देशों के साथ-साथ मध्य एशिया, दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए भी खतरा होगा.
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अफगानिस्तान में भारत का बड़ा दांव है और यह देश भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. हाल के कुछ वर्षों में दोनों देशों ने एक मजबूत संबंध बनाया है. इतना ही नहीं भारत ने अफगानिस्तान में बांधों, सड़कों और बुनियादी ढांचे सहित विभिन्न परियोजनाओं में लगभग तीन बिलियन डॉलर का निवेश किया है, लेकिन इस सौहार्द के बावजूद, अफगानिस्तान में भारत की अधिकांश रणनीतिक, आर्थिक रुचि इस बात पर निर्भर करती है कि अमेरिकी सैनिकों द्वारा क्षेत्र से अपनी उपस्थिति वापस लेने के बाद अफगान सरकार तालिबान को कैसे दूर रखती है.