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नार्वे के सहयोग से 'क्रिल फिशिंग' की संभावना तलाश रहा भारत - पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय क्रिल फिशिंग

नीति आयोग के माध्यम से क्रिल फिशिंग पर प्रस्ताव तैयार किया गया है. दरअसल, सरकार नार्वे के सहयोग से देश के समुद्री क्षेत्रों में छोटे आकार की 'क्रिल मछलियों' को पकड़ने की संभावना तलाश रही है. पढ़ें पूरी खबर...

क्रिल फिशिंग
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Published : Oct 17, 2021, 5:41 PM IST

नई दिल्ली : सरकार नार्वे के सहयोग से देश के समुद्री क्षेत्रों में छोटे आकार की 'क्रिल मछलियों' को पकड़ने (क्रिल फिशिंग) की संभावना तलाश रही है और इस विषय पर नीति आयोग के माध्यम से प्रस्ताव तैयार किया गया है.

क्रिल फिशिंग पर मसौदा तैयार

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, मंत्रालय ने क्रिल फिशिंग की संभावना के विभिन्न पहलुओं पर पिछले कुछ वर्षों में विचार किया है. इस विषय पर तैयार मसौदा पत्र पर मंत्रिमंडल सचिवालय ने विचार किया और कुछ सुझाव भी दिए.

नार्वे से सहयोग की संभावना, प्रस्ताव तैयार

उन्होंने बताया कि इसके आधार पर क्रिल मछलियों को पकड़ने के संबंध में नार्वे से सहयोग की संभावना को लेकर नीति आयोग के सहयोग से प्रस्ताव तैयार किया गया है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana - PMMSY) में भी कहा गया है कि क्रिल फिशिंग को समर्थन देने की संभावना तलाशी जायेगी.

गौरतलब है कि क्रिल छोटे आकार के क्रस्टेशिया प्राणी हैं जो विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं. समुद्र में क्रिल खाद्य शृंखला की सबसे निचली श्रेणियों में आते हैं. क्रिल समुद्र, नदियों, झीलों में तैरने वाले सूक्ष्मजीव प्लवक (प्लैंक्टन) खाते हैं और फिर व्हेल, पेंगविन, सील जैसे बड़े आकार के समुद्री प्राणी क्रिल को खाते हैं. क्रिल तेजी से प्रजनन करके फिर अपनी संख्या की पूर्ति करते रहते हैं.

2014 में आया था सबसे पहला प्रस्ताव

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, क्रिल फिशिंग को लेकर सबसे पहले अगस्त 2014 में प्रस्ताव आया था. इसमें कहा गया था कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और विदेश मंत्रालय मिलकर क्रिल फिशिंग को लेकर विभिन्न देशों के अनुभवों का अध्ययन करेंगे ताकि उनके अनुभवों से सीखा जा सके.

प्रस्ताव में कहा गया था कि उन संभावित देशों की पहचान भी की जायेगी जिससे भारत क्रिल फिशिंग को लेकर सहयोग कर सकता है तथा अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप विधान तैयार कर सकता है.

जापान व नार्वे से जुटाई जा रही है जानकारी

क्रिल फिशिंग को लेकर मंत्रालय की प्रस्तावित कार्य योजना के अनुसार, इस विषय पर जापान और नार्वे की विशेषज्ञता है और इनके अनुभवों के बारे में जानकारी जुटायी गई है.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय क्रिल फिशिंग में रूचि को लेकर भारतीय उद्योगों के रुझान के बारे में जानकारी जुटा रहा है.

पढ़ें : हिमाचल प्रदेश : कोरोना की वजह से मत्स्य कारोबार प्रभावित, सप्लाई भी बाधित

गौरतलब है कि क्रिल मछलियां दिन के समय समुद्र में अधिक गहराई पर चली जाती हैं और रात्रि में सतह के पास आ जाती हैं. इस कारण से सतह और गहराई दोनों पर रहने वाली प्रजातियां इन्हें खाकर पोषित होती हैं. मत्स्य उद्योग में क्रिल बड़ी संख्या में दक्षिणी महासागर और जापान के आसपास के सागरों में पकड़ी जाती हैं. पकड़ी गई क्रिल का अधिकांश हिस्सा मछली पालन में मछलियों को खिलाने में किया जाता है. इसका कुछ अंश औषधि उद्योग में भी इस्तेमाल होता है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : सरकार नार्वे के सहयोग से देश के समुद्री क्षेत्रों में छोटे आकार की 'क्रिल मछलियों' को पकड़ने (क्रिल फिशिंग) की संभावना तलाश रही है और इस विषय पर नीति आयोग के माध्यम से प्रस्ताव तैयार किया गया है.

क्रिल फिशिंग पर मसौदा तैयार

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, मंत्रालय ने क्रिल फिशिंग की संभावना के विभिन्न पहलुओं पर पिछले कुछ वर्षों में विचार किया है. इस विषय पर तैयार मसौदा पत्र पर मंत्रिमंडल सचिवालय ने विचार किया और कुछ सुझाव भी दिए.

नार्वे से सहयोग की संभावना, प्रस्ताव तैयार

उन्होंने बताया कि इसके आधार पर क्रिल मछलियों को पकड़ने के संबंध में नार्वे से सहयोग की संभावना को लेकर नीति आयोग के सहयोग से प्रस्ताव तैयार किया गया है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana - PMMSY) में भी कहा गया है कि क्रिल फिशिंग को समर्थन देने की संभावना तलाशी जायेगी.

गौरतलब है कि क्रिल छोटे आकार के क्रस्टेशिया प्राणी हैं जो विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं. समुद्र में क्रिल खाद्य शृंखला की सबसे निचली श्रेणियों में आते हैं. क्रिल समुद्र, नदियों, झीलों में तैरने वाले सूक्ष्मजीव प्लवक (प्लैंक्टन) खाते हैं और फिर व्हेल, पेंगविन, सील जैसे बड़े आकार के समुद्री प्राणी क्रिल को खाते हैं. क्रिल तेजी से प्रजनन करके फिर अपनी संख्या की पूर्ति करते रहते हैं.

2014 में आया था सबसे पहला प्रस्ताव

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, क्रिल फिशिंग को लेकर सबसे पहले अगस्त 2014 में प्रस्ताव आया था. इसमें कहा गया था कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और विदेश मंत्रालय मिलकर क्रिल फिशिंग को लेकर विभिन्न देशों के अनुभवों का अध्ययन करेंगे ताकि उनके अनुभवों से सीखा जा सके.

प्रस्ताव में कहा गया था कि उन संभावित देशों की पहचान भी की जायेगी जिससे भारत क्रिल फिशिंग को लेकर सहयोग कर सकता है तथा अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप विधान तैयार कर सकता है.

जापान व नार्वे से जुटाई जा रही है जानकारी

क्रिल फिशिंग को लेकर मंत्रालय की प्रस्तावित कार्य योजना के अनुसार, इस विषय पर जापान और नार्वे की विशेषज्ञता है और इनके अनुभवों के बारे में जानकारी जुटायी गई है.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय क्रिल फिशिंग में रूचि को लेकर भारतीय उद्योगों के रुझान के बारे में जानकारी जुटा रहा है.

पढ़ें : हिमाचल प्रदेश : कोरोना की वजह से मत्स्य कारोबार प्रभावित, सप्लाई भी बाधित

गौरतलब है कि क्रिल मछलियां दिन के समय समुद्र में अधिक गहराई पर चली जाती हैं और रात्रि में सतह के पास आ जाती हैं. इस कारण से सतह और गहराई दोनों पर रहने वाली प्रजातियां इन्हें खाकर पोषित होती हैं. मत्स्य उद्योग में क्रिल बड़ी संख्या में दक्षिणी महासागर और जापान के आसपास के सागरों में पकड़ी जाती हैं. पकड़ी गई क्रिल का अधिकांश हिस्सा मछली पालन में मछलियों को खिलाने में किया जाता है. इसका कुछ अंश औषधि उद्योग में भी इस्तेमाल होता है.

(पीटीआई-भाषा)

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