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पीएम मोदी ने दी दलाई लामा को बधाई तो भन्नाया चीन, डेमचोक में फिर भेजे सैनिक

चीन ने एक बार फिर से अपनी हेकड़ी दिखाई है. दलाई लामा के जन्मदिन के मौके पर चीनी सैनिकों को बैनर के साथ डेमचोक इलाके में देखा गया है. पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध के बीच चीन ने एक बार फिर उस भूमि पर दावा किया जहां दलाई लामा के जन्मदिन का समारोह आयोजित किया जा रहा था. क्या है पूरा मामला समझने के लिए पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

चीनी सैनिकों की हिमाकत
चीनी सैनिकों की हिमाकत
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Published : Jul 12, 2021, 10:07 PM IST

Updated : Jul 12, 2021, 10:28 PM IST

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख के डेमचोक (Demchok) में सिंधु नदी के तट पर तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) के 86वें जन्मदिन का समारोह आयोजित किया गया था. इसमें कुछ बिन बुलाए मेहमान भी देखे गए. हालांकि, इन लोगों ने समारोह से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखी. घटना पिछले मंगलवार की है.

एक रक्षा सूत्र ने कहा कि चीनी सैनिक और नागरिक लगभग चार पांच वाहनों में आए और सिंधु नदी के तट पर डेमचोक में यू-बेंड के पास एक बैनर ड्रिल किया. मूल रूप से, चीनी सैनिकों ने उस क्षेत्र पर दावा किया, जिस पर हमारा दावा है.

रक्षा सूत्र के मुताबिक चीनी सैनिक लगभग आधे घंटे तक नदी के उस पार खड़े रहे और फिर चले गए. हमने आधिकारिक तौर पर एक उल्लंघन (transgression) की सूचना दे दी है.

इस मामले में भारतीय सेना ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. एक अधिकारी ने कहा, 'हमारे पास कोई प्रतिक्रिया नहीं है.'

यह घटना भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनावपूर्ण संबंधों का एक और संकेत है. पश्चिम में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक, दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर कई बिंदुओं पर एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं.

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दलाई लामा के जन्मदिन पर पहली बार से टेलीफोन पर बात की थी. यह तिब्बती नेता के संदर्भ में भारत के बदलते रुख का एक बड़ा संकेत माना जा रहा है. यह भी दिलचस्प है कि अतीत में भारतीय नेता चीनी पक्ष के कपटपूर्ण (cagey) रवैये को ध्यान में रखते हुए दलाई लामा के साथ सार्वजनिक बातचीत करने से कतराते रहे हैं.

फिलहाल, चीन के साथ तनाव के मद्देनजर करीब 50,000 भारतीय सैनिक युद्ध में काम आने वाले उपकरणों के साथ चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब तैनात हैं.

पिछले साल मई में शुरू हुआ था गतिरोध
भारत और चीन के बीच गतिरोध में गत वर्ष 5 मई को पैंगोंग त्सो में शुरू हुआ था. पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी तट पर एक सीमा विवाद से शुरू हुआ गतिरोध कई दौर की सैन्य वार्ता के बाद कम हुआ है. पैंगोंग क्षेत्र में कुछ विघटन भी देखा गया है, लेकिन डेमचोक, हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा जैसे अन्य स्थानों पर गतिरोध जारी है.

अब तक क्षेत्र में दोनों सेनाओं के शीर्ष कमांडरों के बीच 11 दौर की बैठक हो चुकी है. 11वें दौर की वार्ता 9 अप्रैल को हुई थी. इससे पहले 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को दोनों पक्षों की बातचीत हुई थी.

सैन्य वार्ता के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14 कोर कमांडर कर रहे हैं और इसमें विदेश मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव, डीजीएमओ के एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) सहित स्थानीय सैन्य प्रतिनिधि शामिल हैं. चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दक्षिण शिनजियान जिले के सैन्य कमांडर कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- लद्दाख गतिरोध पर भारत की दो टूक- चीन पर अनसुलझे मुद्दों को सुलझाने की जवाबदेही

अब तक की बातचीत की विफलता ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि सीमा मुद्दे के एक मजबूत समाधान के लिए समझ की प्रकृति में अवधारणात्मक अंतर के कारण दोनों देशों के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को आगे आने की आवश्यकता है. जिस स्तर पर सीमा का निर्धारण किया गया था.

चीन की 1959 के दावा लाइन के आधार पर क्षेत्रों की बहाली की मांग के कारण सीमा का निर्धारण और जटिल हो गया है. इस लाइन को सबसे पहले चीन के पूर्व प्रधानमंत्री चाउ अल-लाई (Chou el-Lai) ने प्रस्तावित किया था, लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे ठुकरा दिया था.

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख के डेमचोक (Demchok) में सिंधु नदी के तट पर तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) के 86वें जन्मदिन का समारोह आयोजित किया गया था. इसमें कुछ बिन बुलाए मेहमान भी देखे गए. हालांकि, इन लोगों ने समारोह से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखी. घटना पिछले मंगलवार की है.

एक रक्षा सूत्र ने कहा कि चीनी सैनिक और नागरिक लगभग चार पांच वाहनों में आए और सिंधु नदी के तट पर डेमचोक में यू-बेंड के पास एक बैनर ड्रिल किया. मूल रूप से, चीनी सैनिकों ने उस क्षेत्र पर दावा किया, जिस पर हमारा दावा है.

रक्षा सूत्र के मुताबिक चीनी सैनिक लगभग आधे घंटे तक नदी के उस पार खड़े रहे और फिर चले गए. हमने आधिकारिक तौर पर एक उल्लंघन (transgression) की सूचना दे दी है.

इस मामले में भारतीय सेना ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. एक अधिकारी ने कहा, 'हमारे पास कोई प्रतिक्रिया नहीं है.'

यह घटना भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनावपूर्ण संबंधों का एक और संकेत है. पश्चिम में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक, दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर कई बिंदुओं पर एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं.

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दलाई लामा के जन्मदिन पर पहली बार से टेलीफोन पर बात की थी. यह तिब्बती नेता के संदर्भ में भारत के बदलते रुख का एक बड़ा संकेत माना जा रहा है. यह भी दिलचस्प है कि अतीत में भारतीय नेता चीनी पक्ष के कपटपूर्ण (cagey) रवैये को ध्यान में रखते हुए दलाई लामा के साथ सार्वजनिक बातचीत करने से कतराते रहे हैं.

फिलहाल, चीन के साथ तनाव के मद्देनजर करीब 50,000 भारतीय सैनिक युद्ध में काम आने वाले उपकरणों के साथ चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब तैनात हैं.

पिछले साल मई में शुरू हुआ था गतिरोध
भारत और चीन के बीच गतिरोध में गत वर्ष 5 मई को पैंगोंग त्सो में शुरू हुआ था. पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी तट पर एक सीमा विवाद से शुरू हुआ गतिरोध कई दौर की सैन्य वार्ता के बाद कम हुआ है. पैंगोंग क्षेत्र में कुछ विघटन भी देखा गया है, लेकिन डेमचोक, हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा जैसे अन्य स्थानों पर गतिरोध जारी है.

अब तक क्षेत्र में दोनों सेनाओं के शीर्ष कमांडरों के बीच 11 दौर की बैठक हो चुकी है. 11वें दौर की वार्ता 9 अप्रैल को हुई थी. इससे पहले 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को दोनों पक्षों की बातचीत हुई थी.

सैन्य वार्ता के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14 कोर कमांडर कर रहे हैं और इसमें विदेश मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव, डीजीएमओ के एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) सहित स्थानीय सैन्य प्रतिनिधि शामिल हैं. चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दक्षिण शिनजियान जिले के सैन्य कमांडर कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- लद्दाख गतिरोध पर भारत की दो टूक- चीन पर अनसुलझे मुद्दों को सुलझाने की जवाबदेही

अब तक की बातचीत की विफलता ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि सीमा मुद्दे के एक मजबूत समाधान के लिए समझ की प्रकृति में अवधारणात्मक अंतर के कारण दोनों देशों के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को आगे आने की आवश्यकता है. जिस स्तर पर सीमा का निर्धारण किया गया था.

चीन की 1959 के दावा लाइन के आधार पर क्षेत्रों की बहाली की मांग के कारण सीमा का निर्धारण और जटिल हो गया है. इस लाइन को सबसे पहले चीन के पूर्व प्रधानमंत्री चाउ अल-लाई (Chou el-Lai) ने प्रस्तावित किया था, लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे ठुकरा दिया था.

Last Updated : Jul 12, 2021, 10:28 PM IST
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