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विश्वगुरु बनने के लिए भारत को वेदों के ज्ञान, संस्कृत को प्रोत्साहित करने की जरूरत : मोहन भागवत - मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Rss chief Mohan Bhagwat) ने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनने के लिए वेदों के ज्ञान के अलावा संस्कृत को प्रोत्साहन दिए जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो धर्म का प्रचार-प्रसार करने, हर किसी को एकजुट करने और एक विश्व गुरु बनने में विश्वास रखता है. भागवत ने उक्त बातें वेद संस्कृत ज्ञान गौरव समारंभ में कहीं.

Rss chief Mohan Bhagwat
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
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Published : Apr 23, 2023, 10:40 PM IST

साबरकांठा(गुजरात) : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत (Rss chief Mohan Bhagwat) ने रविवार को यहां कहा कि विश्वगुरु बनने के लिए भारत को वेदों के ज्ञान और प्राचीन भाषा संस्कृत को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति रुढ़ीवादी नहीं है, बल्कि समय के साथ बदलती रही है और ऐसी नहीं है जो हमसे यह कहे कि 'क्या खाना है और क्या नहीं खाना है.' यहां मुदेती गांव में श्री भगवान याज्ञवलक्य वेदतत्वज्ञान योगाश्रम ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वेद संस्कृत ज्ञान गौरव समारंभ में भागवत ने कहा कि भारत का निर्माण वेदों के मूल्यों पर हुआ है, जिनका पीढ़ी दर पीढ़ी अनुसरण किया गया.

उन्होंने कहा, 'इसलिए आज के भारत को प्रगति करनी है, लेकिन अमेरिका, चीन और रूस जैसी महाशक्ति नहीं बनना होगा जो शक्ति का इस्तेमाल करते हैं. हमें एक ऐसा देश बनना है जो आज के विश्व की समस्याओं का समाधान दे सके. हमें एक ऐसा देश बनना है जो विश्व को सही व्यवहार के जरिये शांति, प्रेम और समृद्धि का पथ दिखा सके.' भागवत ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो धर्म का प्रचार-प्रसार करने, हर किसी को एकजुट करने और एक विश्व गुरु बनने में विश्वास रखता है.' उन्होंने कहा, विजय का मतलब धर्म विजय है.

उन्होंने दावा किया, 'यही कारण है कि वेदों के ज्ञान या वेद विज्ञान और संस्कृति को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. यह सभी ज्ञान संस्कृत में है. इसलिए, संस्कृत को महत्व देना जरूरी है. यदि हम अपनी मातृ भाषा में बोलना जानते हैं तो हम 40 प्रतिशत संस्कृत सीख सकते हैं.' भागवत ने यह भी कहा कि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी को संस्कृत और संगीत का ज्ञान है तो विज्ञान तथा गणित की कई अवधारणाएं आसानी से सीखी जा सकती हैं.

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध पर भारत के रुख की सराहना करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि दोनों देश चाहते हैं कि भारत उनका पक्ष ले, लेकिन भारत ने यह रुख कायम रखा कि 'वे दोनों ही इसके मित्र हैं तथा इसलिए हम अभी पक्ष नहीं लेंगे.' उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत का यह कहना रहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है, इसलिए इसे रोका जाए. भागवत ने कहा, 'आज के भारत को विश्व की महाशक्तियों को यह कहने की हिम्मत है, जिसका अतीत में अभाव था.'

उन्होंने कहा कि कभी चीन और पाकिस्तान का मित्र रहा और भारत से दूरी बनाये रखने वाला श्रीलंका जब (आर्थिक) संकट में फंस गया तब उसने भारत का रुख किया. भागवत ने कहा, 'चूंकि देश (भारत) धर्म में विश्वास रखता है इसलिए वह किसी का फायदा नहीं उठाता. हम सह अस्तित्व के लिए एक-दूसरे से लाभ उठाते हैं, लेकिन यह प्रेम का आदान-प्रदान है, ना कि सौदेबाजी है.' उन्होंने कहा कि जब कभी किसी को हमारी चीजों की जरूरत पड़ती है तो यह देश उसकी पेशकश करता है क्योंकि 'हमारे पूर्वजों ने एक कर्तव्य के रूप में इसे करने का हमें निर्देश दिया था.'

उन्होंने कहा, 'एक देश को अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए एक ऐसी संस्कृति की जरूरत होगी, जो विश्व की एकता पर आधारित हो. हमारी संस्कृति, हमारा धर्म रुढ़िवादी नहीं है. ये समय के साथ बदलते रहे हैं. हमारी संस्कृति हमसे यह नहीं कहती कि क्या खाना है और क्या नहीं खाना है. लेकिन यह हमें बताती है कि ऐसा भोजन नहीं करना है जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता हो.'

ये भी पढ़ें - RSS चीफ मोहन भागवत की अपील, हिंदू समाज अपनाए एक मंदिर, एक श्मशान और एक पानी

(पीटीआई-भाषा)

साबरकांठा(गुजरात) : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत (Rss chief Mohan Bhagwat) ने रविवार को यहां कहा कि विश्वगुरु बनने के लिए भारत को वेदों के ज्ञान और प्राचीन भाषा संस्कृत को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति रुढ़ीवादी नहीं है, बल्कि समय के साथ बदलती रही है और ऐसी नहीं है जो हमसे यह कहे कि 'क्या खाना है और क्या नहीं खाना है.' यहां मुदेती गांव में श्री भगवान याज्ञवलक्य वेदतत्वज्ञान योगाश्रम ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वेद संस्कृत ज्ञान गौरव समारंभ में भागवत ने कहा कि भारत का निर्माण वेदों के मूल्यों पर हुआ है, जिनका पीढ़ी दर पीढ़ी अनुसरण किया गया.

उन्होंने कहा, 'इसलिए आज के भारत को प्रगति करनी है, लेकिन अमेरिका, चीन और रूस जैसी महाशक्ति नहीं बनना होगा जो शक्ति का इस्तेमाल करते हैं. हमें एक ऐसा देश बनना है जो आज के विश्व की समस्याओं का समाधान दे सके. हमें एक ऐसा देश बनना है जो विश्व को सही व्यवहार के जरिये शांति, प्रेम और समृद्धि का पथ दिखा सके.' भागवत ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो धर्म का प्रचार-प्रसार करने, हर किसी को एकजुट करने और एक विश्व गुरु बनने में विश्वास रखता है.' उन्होंने कहा, विजय का मतलब धर्म विजय है.

उन्होंने दावा किया, 'यही कारण है कि वेदों के ज्ञान या वेद विज्ञान और संस्कृति को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. यह सभी ज्ञान संस्कृत में है. इसलिए, संस्कृत को महत्व देना जरूरी है. यदि हम अपनी मातृ भाषा में बोलना जानते हैं तो हम 40 प्रतिशत संस्कृत सीख सकते हैं.' भागवत ने यह भी कहा कि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी को संस्कृत और संगीत का ज्ञान है तो विज्ञान तथा गणित की कई अवधारणाएं आसानी से सीखी जा सकती हैं.

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध पर भारत के रुख की सराहना करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि दोनों देश चाहते हैं कि भारत उनका पक्ष ले, लेकिन भारत ने यह रुख कायम रखा कि 'वे दोनों ही इसके मित्र हैं तथा इसलिए हम अभी पक्ष नहीं लेंगे.' उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत का यह कहना रहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है, इसलिए इसे रोका जाए. भागवत ने कहा, 'आज के भारत को विश्व की महाशक्तियों को यह कहने की हिम्मत है, जिसका अतीत में अभाव था.'

उन्होंने कहा कि कभी चीन और पाकिस्तान का मित्र रहा और भारत से दूरी बनाये रखने वाला श्रीलंका जब (आर्थिक) संकट में फंस गया तब उसने भारत का रुख किया. भागवत ने कहा, 'चूंकि देश (भारत) धर्म में विश्वास रखता है इसलिए वह किसी का फायदा नहीं उठाता. हम सह अस्तित्व के लिए एक-दूसरे से लाभ उठाते हैं, लेकिन यह प्रेम का आदान-प्रदान है, ना कि सौदेबाजी है.' उन्होंने कहा कि जब कभी किसी को हमारी चीजों की जरूरत पड़ती है तो यह देश उसकी पेशकश करता है क्योंकि 'हमारे पूर्वजों ने एक कर्तव्य के रूप में इसे करने का हमें निर्देश दिया था.'

उन्होंने कहा, 'एक देश को अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए एक ऐसी संस्कृति की जरूरत होगी, जो विश्व की एकता पर आधारित हो. हमारी संस्कृति, हमारा धर्म रुढ़िवादी नहीं है. ये समय के साथ बदलते रहे हैं. हमारी संस्कृति हमसे यह नहीं कहती कि क्या खाना है और क्या नहीं खाना है. लेकिन यह हमें बताती है कि ऐसा भोजन नहीं करना है जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता हो.'

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(पीटीआई-भाषा)

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