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सैन्य शक्ति बढ़ाने पर गंभीरता से काम कर रही सरकार, तेजस के लिए HAL से करार

भारत सरकार ने 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस की खरीद के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ 48,000 करोड़ रुपये के सौदे पर औपचारिक मुहर लगा दी है. भारत अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने के लिए वायुसेना के बेड़े में लड़ाकू विमानों को लगातार शामिल कर रहा है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

सैन्य शक्ति को बढ़ाने पर जोर
सैन्य शक्ति को बढ़ाने पर जोर
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Published : Feb 4, 2021, 1:30 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय वायु सेना (IAF) के बेड़े में पर्याप्त लड़ाकू विमानों की कथित कमी को लेकर अक्सर मीडिया रिपोर्ट्स प्रकाशित होती हैं. रक्षा जानकारों की राय में बदलते वैश्विक परिदृश्य के कारण अत्याधुनिक विमानों की कमी लंबे समय से भारतीय वायुसेना के लिए चिंता का विषय रही है. यह चिंता हाल के दिनों में और बढ़ गई है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले कई महीनों से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है. विवाद गहराता देख भारत अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने पर जोर दे रहा है.

सैन्य ताकत बढ़ाने की इसी कड़ी में रक्षा मंत्रालय ने 83 तेजस हल्के लड़ाकू विमान खरीदने के लिए सरकारी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ बुधवार को ₹ 48,000 करोड़ के सौदे पर औपचारिक मुहर लगा दी है. सरकार की तरफ से इस सौदे को रक्षा क्षेत्र में 'सबसे बड़ा' 'मेक इन इंडिया' अनुबंध करार दिया गया है.

आधिकारिक आकलन के अनुसार, भारत को दो मोर्चे की युद्ध की स्थिति से निबटने के लिए कम से कम 43 लड़ाकू स्क्वाड्रन की आवश्यकता है, लेकिन अब तक भारत के पास केवल 33 स्क्वाड्रन हैं.

रक्षा जरुरतों पर गंभीरता से काम
भारत सरकार की योजना साल 2032 तक कम से कम 45 स्क्वाड्रन बनाने की है. ऐसे में जिस तरह भारत अभी लड़ाकू विमानों से जुड़े सौदे पर जोर दे रहा है, उससे साफ जाहिर है कि अब सरकार रक्षा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में न केवल तेजी से बल्कि गंभीरता से भी काम कर रही है.

सबसे बड़ा रक्षा अनुबंध
केंद्र सरकार ने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट को खरीदने के लिए ₹ 45,696 करोड़ की मंजूरी दी है. वहीं डिजाइन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ₹ 1202 करोड़ की राशि मंजूर दी है, जो कि स्वदेशी निर्माण के लिए सबसे बड़ा रक्षा अनुबंध है.

2028 तक पूरी होगी आपूर्ति
इन लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क 1 ए लड़ाकू विमानों की पहली खेप 2023 तक तैयार हो सकती है. वहीं बकि पूरे बेड़े की आपूर्ति 2028 तक पूरी होने की उम्मीद है, एक पांच में हर वर्ष करीब 16 विमानों की आपूर्ति की जाएगी.

वायुसेना के फ्रंटलाइन लड़ाकू विमान
83 में से, 73 तेजस एमके-आईए वर्जन होगा, जबकि शेष 10 एलसीए तेजस एमके-आई ट्रेनर वर्जन होंगे. प्रत्येक तेजस एमके-आईए पर लगभग ₹ 309 करोड़ और ट्रेनर पर ₹ 280 करोड़ खर्च होंगे. प्रत्येक लड़ाकू स्क्वाड्रन 16-18 विमान संचालित करता है. वर्तमान में, वायुसेना के फ्रंटलाइन लड़ाकू विमानों में राफेल, Su-30s, मिग -29 और मिराज -2000 शामिल हैं.

रूस से आने वाले हैं 33 विमान
फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट-निर्मित 36 राफेल लड़ाकू में से कुछ राफेल भारत में पहले ही आ चुके हैं. भारत में 33 नए विमान और आने वाले हैं, जिसमें 21 विमान एमआईजी -29 और 12 सुखोई 30 एमकेआई शामिल हैं. इन 33 विमानों को रूस से लाने का प्रोसेस चल रहा है.

बता दें कि वायुसेना कर्मियों और विमानों के बेड़े के मामले में भारतीय वायुसेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है. भारतीय वायुसेना 40 मिलियन क्यूबिक किमी से अधिक के वायु क्षेत्र में संचालन करती है.

नई दिल्ली : भारतीय वायु सेना (IAF) के बेड़े में पर्याप्त लड़ाकू विमानों की कथित कमी को लेकर अक्सर मीडिया रिपोर्ट्स प्रकाशित होती हैं. रक्षा जानकारों की राय में बदलते वैश्विक परिदृश्य के कारण अत्याधुनिक विमानों की कमी लंबे समय से भारतीय वायुसेना के लिए चिंता का विषय रही है. यह चिंता हाल के दिनों में और बढ़ गई है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले कई महीनों से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है. विवाद गहराता देख भारत अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने पर जोर दे रहा है.

सैन्य ताकत बढ़ाने की इसी कड़ी में रक्षा मंत्रालय ने 83 तेजस हल्के लड़ाकू विमान खरीदने के लिए सरकारी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ बुधवार को ₹ 48,000 करोड़ के सौदे पर औपचारिक मुहर लगा दी है. सरकार की तरफ से इस सौदे को रक्षा क्षेत्र में 'सबसे बड़ा' 'मेक इन इंडिया' अनुबंध करार दिया गया है.

आधिकारिक आकलन के अनुसार, भारत को दो मोर्चे की युद्ध की स्थिति से निबटने के लिए कम से कम 43 लड़ाकू स्क्वाड्रन की आवश्यकता है, लेकिन अब तक भारत के पास केवल 33 स्क्वाड्रन हैं.

रक्षा जरुरतों पर गंभीरता से काम
भारत सरकार की योजना साल 2032 तक कम से कम 45 स्क्वाड्रन बनाने की है. ऐसे में जिस तरह भारत अभी लड़ाकू विमानों से जुड़े सौदे पर जोर दे रहा है, उससे साफ जाहिर है कि अब सरकार रक्षा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में न केवल तेजी से बल्कि गंभीरता से भी काम कर रही है.

सबसे बड़ा रक्षा अनुबंध
केंद्र सरकार ने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट को खरीदने के लिए ₹ 45,696 करोड़ की मंजूरी दी है. वहीं डिजाइन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ₹ 1202 करोड़ की राशि मंजूर दी है, जो कि स्वदेशी निर्माण के लिए सबसे बड़ा रक्षा अनुबंध है.

2028 तक पूरी होगी आपूर्ति
इन लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क 1 ए लड़ाकू विमानों की पहली खेप 2023 तक तैयार हो सकती है. वहीं बकि पूरे बेड़े की आपूर्ति 2028 तक पूरी होने की उम्मीद है, एक पांच में हर वर्ष करीब 16 विमानों की आपूर्ति की जाएगी.

वायुसेना के फ्रंटलाइन लड़ाकू विमान
83 में से, 73 तेजस एमके-आईए वर्जन होगा, जबकि शेष 10 एलसीए तेजस एमके-आई ट्रेनर वर्जन होंगे. प्रत्येक तेजस एमके-आईए पर लगभग ₹ 309 करोड़ और ट्रेनर पर ₹ 280 करोड़ खर्च होंगे. प्रत्येक लड़ाकू स्क्वाड्रन 16-18 विमान संचालित करता है. वर्तमान में, वायुसेना के फ्रंटलाइन लड़ाकू विमानों में राफेल, Su-30s, मिग -29 और मिराज -2000 शामिल हैं.

रूस से आने वाले हैं 33 विमान
फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट-निर्मित 36 राफेल लड़ाकू में से कुछ राफेल भारत में पहले ही आ चुके हैं. भारत में 33 नए विमान और आने वाले हैं, जिसमें 21 विमान एमआईजी -29 और 12 सुखोई 30 एमकेआई शामिल हैं. इन 33 विमानों को रूस से लाने का प्रोसेस चल रहा है.

बता दें कि वायुसेना कर्मियों और विमानों के बेड़े के मामले में भारतीय वायुसेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है. भारतीय वायुसेना 40 मिलियन क्यूबिक किमी से अधिक के वायु क्षेत्र में संचालन करती है.

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