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भारत की पड़ोसी देशों के साथ कूटनीति और रणनीति पर गहराया संकट

मॉरीशस और श्रीलंका में हुए हालिया घटनाक्रमों से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के रणनीतिक सहयोग आगे बढ़ने के प्रयासों को झटका लग सकता है. दरअसल, श्रीलंका ने भारत के साथ एक बंदरगाह समझौते को रद्द कर दिया है, जबकि चीन ने मॉरीशस के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) लागू किया है. पढ़िए, वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट...

कूटनीति और रणनीति
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Published : Feb 4, 2021, 9:05 PM IST

नई दिल्ली : म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के साथ भारत के पड़ोस में हाल ही में हुए दो अन्य असंबंधित घटनाक्रमों ने संकेत दिया है कि निकट भविष्य में भारतीय विदेश नीति और रणनीति के सामने आने वाली चुनौतियां काफी अकाट्य होंगी.

ये घटनाक्रम मॉरीशस और श्रीलंका में हुए हैं. भारत के लिए रणनीतिक पहुंच और चीन के सामने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दोनों देश भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं. ऐसे समय में, जब पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच पिछले नौ महीने से सैन्य गतिरोध बना हुआ है.

म्यांमार में जून्टा द्वारा किए गए सैन्य तख्तापलट ने मॉरीशस और श्रीलंका के साथ मिलकर देश में लोकतांत्रिक आंदोलन के लिए भारतीय प्रयास को धक्का लगा है. यह उस क्षेत्र में भारतीय विदेश नीति और रणनीति के लिए एक झटका है, जहां भारत ने धन के अलावा बहुत समय और श्रम का निवेश किया है.

मॉरीशस

चीन ने हाल ही में मॉरीशस के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) लागू किया है, जिस पर दोनों देशों ने जनवरी 2021 में हस्ताक्षर किए थे.

यह किसी अफ्रीकी देश के साथ चीन का पहला एफटीए है, जो उस क्षेत्र में स्थित है, जिस पर भारत अपनी मजबूत रणनीतिक पकड़ मानता है. चीन के इस कदम से भविष्य अफ्रीका में उसके लिए व्यापारिक द्वार खुलेंगे.

दूसरी ओर, मॉरीशस के साथ भारत के प्रस्तावित एफटीए को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है. जिसे भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता (सीईसीपीए) कहा जा रहा है.

मॉरीशस में भारतीय सबसे बड़ा जातीय समूह है और सीईसीपीए का उद्देश्य ऐतिहासिक संबंधों को बढ़ाना है, ताकि वस्तु और सेवाओं के व्यापार के क्षेत्र में दोनों देश परस्पर लाभान्वित हो सकें.

2019 में, चीन मॉरीशस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, जबकि भारत दूसरे नंबर था. भारतीय प्रयास को अमेरिका द्वारा गठित 'फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी' में सबसे आगे माना जाता है, जिसका उद्देश्य भारतीय और प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन के दखल को रोकना है.

श्रीलंका

श्रीलंका में, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने सोमवार को 2019 में भारत के साथ किए गए बंदरगाह समझौते को रद्द कर दिया. जबकि 2019 के समझौता ज्ञापन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि कोलंबो साउथ हार्बर में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल दोनों राष्ट्रों और जापान के बीच एक सहयोगात्मक संबंध होगा.

लेकिन श्रीलंका की सरकार ने सोमवार को स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि श्रीलंका का बंदरगाह प्राधिकरण पूर्ण स्वामित्व वाले कंटेनर टर्मिनल के रूप में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल संचालित करेगी.

पढ़ें- म्यांमार की हताश सेना ने लोकतंत्र समर्थक नेताओं पर लगाए तुच्छ आरोप

समझौते के अनुसार, श्रीलंका के बंदरगाह प्राधिकरण की ईस्ट कंटेनर टर्मिनल में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रहेगी, जबकि भारत और जापान की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी.

स्पष्ट रूप से, भारतीय और जापानी पक्ष 2019 के त्रिपक्षीय सौदे से दरकिनार किए जाने से नाखुश हैं.

मॉरीशस की तरह श्रीलंका में भी चीन सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. श्रीलंका में चीन की मुख्य परियोजनाओं में हंबनटोटा पोर्ट डेवलपमेंट और कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट शामिल हैं.

मालूम हो कि भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ 'क्वाड' समूह में शामिल है. माना जा रहा है कि यह समूह चीनी विस्तारवाद और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ड्रैगन के प्रभाव को रोकने के लिए प्रभावी होगा.

नई दिल्ली : म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के साथ भारत के पड़ोस में हाल ही में हुए दो अन्य असंबंधित घटनाक्रमों ने संकेत दिया है कि निकट भविष्य में भारतीय विदेश नीति और रणनीति के सामने आने वाली चुनौतियां काफी अकाट्य होंगी.

ये घटनाक्रम मॉरीशस और श्रीलंका में हुए हैं. भारत के लिए रणनीतिक पहुंच और चीन के सामने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दोनों देश भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं. ऐसे समय में, जब पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच पिछले नौ महीने से सैन्य गतिरोध बना हुआ है.

म्यांमार में जून्टा द्वारा किए गए सैन्य तख्तापलट ने मॉरीशस और श्रीलंका के साथ मिलकर देश में लोकतांत्रिक आंदोलन के लिए भारतीय प्रयास को धक्का लगा है. यह उस क्षेत्र में भारतीय विदेश नीति और रणनीति के लिए एक झटका है, जहां भारत ने धन के अलावा बहुत समय और श्रम का निवेश किया है.

मॉरीशस

चीन ने हाल ही में मॉरीशस के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) लागू किया है, जिस पर दोनों देशों ने जनवरी 2021 में हस्ताक्षर किए थे.

यह किसी अफ्रीकी देश के साथ चीन का पहला एफटीए है, जो उस क्षेत्र में स्थित है, जिस पर भारत अपनी मजबूत रणनीतिक पकड़ मानता है. चीन के इस कदम से भविष्य अफ्रीका में उसके लिए व्यापारिक द्वार खुलेंगे.

दूसरी ओर, मॉरीशस के साथ भारत के प्रस्तावित एफटीए को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है. जिसे भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता (सीईसीपीए) कहा जा रहा है.

मॉरीशस में भारतीय सबसे बड़ा जातीय समूह है और सीईसीपीए का उद्देश्य ऐतिहासिक संबंधों को बढ़ाना है, ताकि वस्तु और सेवाओं के व्यापार के क्षेत्र में दोनों देश परस्पर लाभान्वित हो सकें.

2019 में, चीन मॉरीशस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, जबकि भारत दूसरे नंबर था. भारतीय प्रयास को अमेरिका द्वारा गठित 'फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी' में सबसे आगे माना जाता है, जिसका उद्देश्य भारतीय और प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन के दखल को रोकना है.

श्रीलंका

श्रीलंका में, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने सोमवार को 2019 में भारत के साथ किए गए बंदरगाह समझौते को रद्द कर दिया. जबकि 2019 के समझौता ज्ञापन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि कोलंबो साउथ हार्बर में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल दोनों राष्ट्रों और जापान के बीच एक सहयोगात्मक संबंध होगा.

लेकिन श्रीलंका की सरकार ने सोमवार को स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि श्रीलंका का बंदरगाह प्राधिकरण पूर्ण स्वामित्व वाले कंटेनर टर्मिनल के रूप में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल संचालित करेगी.

पढ़ें- म्यांमार की हताश सेना ने लोकतंत्र समर्थक नेताओं पर लगाए तुच्छ आरोप

समझौते के अनुसार, श्रीलंका के बंदरगाह प्राधिकरण की ईस्ट कंटेनर टर्मिनल में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रहेगी, जबकि भारत और जापान की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी.

स्पष्ट रूप से, भारतीय और जापानी पक्ष 2019 के त्रिपक्षीय सौदे से दरकिनार किए जाने से नाखुश हैं.

मॉरीशस की तरह श्रीलंका में भी चीन सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. श्रीलंका में चीन की मुख्य परियोजनाओं में हंबनटोटा पोर्ट डेवलपमेंट और कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट शामिल हैं.

मालूम हो कि भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ 'क्वाड' समूह में शामिल है. माना जा रहा है कि यह समूह चीनी विस्तारवाद और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ड्रैगन के प्रभाव को रोकने के लिए प्रभावी होगा.

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