हैदराबाद : 15-16 जून 2020 के बाद दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले दोनों देशों के बीच सब कुछ बदल गया. भारत और चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हुए इस खूनी संघर्ष के बाद चीन को सेना से लेकर सामरिक और आर्थिक मोर्चे तक भारत ने गहरी चोट पहुंचाई है. गलवान में जो कुछ भी हुआ उसके बाद भारत और चीन के रिश्ते सबसे तल्ख मोड़ तक पहुंच गए.
गलवान का खूनी संघर्ष
चीन की विस्तारवादी नीति किसी से छिपी नहीं है. चीन लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के हिस्सों पर अपना हक जताता रहा है. ज़मीन से लेकर समुद्र तक चीन की घुसपैठ पूरी दुनिया देख चुकी है. चीन की इसी लालच का नतीजा था गलवान में भारत और चीनी सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष.
दरअसल दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर चल रही बातचीत के बीच चीन की तरफ से एलएसी पर तनाव बढ़ाने की कोशिस की गई. ये वो वक्त था जब भारत कोरोना की पहली लहर से जूझ रहा था. एलएसी के पास निर्माण और जमीन कब्जाने की कोशिश चीनी सेना की तरफ से की गई. 15-16 जून को भारत और चीनी सैनिक आमने-सामने आ गए. दोनों सेनाओं के जवानों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए.
बताते हैं कि चीनी सैनिकों के पास हथियार थे और कील लगी रॉड से भारतीय सैनिकों पर हमला किया गया. जबकि नियम के मुताबिक एलएसी पर दोनों देशों के सैनिक सिर्फ गश्त कर सकते हैं, लेकिन हथियारों के बगैर. पर चीनी सैनिकों ने हर नियम कायदे की धज्जियां उड़ाई. झड़प के दौरान चीनी सैनिकों के मारे जाने की खबर भी आई, शुरूआत में चीन इससे इनकार करता रहा लेकिन बाद में चीन ने भी अपने जवानों के मारे जाने की बात स्वीकर की.
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फ्रंट फुट पर रहा भारत
चीन के जमीन कब्जाने वाले रवैये के खिलाफ भारत की तरफ से हमेशा बातचीत का रवैया अपनाया जाता रहा है. लेकिन गलवान के बाद भारत ने अपना रुख पूरी तरह से बदल दिया.
- गलवान की झड़प के बाद भारत ने भी एलएसी पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी.
- अगस्त में चीनी सेना की घुसपैठ की कोशिश नाकाम की और कुछ अहम चोटियों पर बढ़त भी बनाई.
- चीन की बातचीत की पेशकश को नकारा और दो टूक कहा कि पहले चीनी सेना पूर्व निर्धारित जगह पर पीछे हटे.
- भारत सरकार ने चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी चोट पहुंचाई. चीन के कई ऐप बैन कर दिए गए और कई विकास कार्यों के लिए चीनी कंपनियों के साथ हुए करार भी रद्द कर दिए गए. देश की जनता में भी चीन के खिलाफ गुस्सा था जिसका सीधा असर चीनी उत्पादों पर पड़ा.
-सैन्य अधिकारियों से लेकर विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री तक ने चीन के साथ रिश्तों को लेकर तल्ख रवैया अपनाए रखा. विदेश मंत्री जयशंकर ने तो साफ कहा कि चीन के साथ भारत के रिश्ते चौराहे पर खड़े हैं.
गलवान हिंसा के बाद सरकार की प्रतिक्रिया
- 20.06.2020 : भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के नियमों में बदलाव किया. इससे एलएसी पर तैनात कमांडरों को कार्रवाई की पूरी स्वतंत्रता दी गई.
- 01.07.2020 : भारत चीन के खिलाफ आर्थिक आक्रमण का प्रयास किया. चीनी कंपनियों को भारतीय राजमार्ग परियोजनाओं में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई, चीन, भारत में इन्वेस्ट नहीं कर सकेगा, चीन से आयत रोक दी गई.
- 29.06.2020 : भारत सरकार ने 59 मोबाइल एप्लिकेशन पर प्रतिबंध लगा दिया जिसमें ज्यादातर चीनी एप जैसे कि टिक टोक, यूसी ब्राउजर और वीचैट शामिल थे.
- 02.09.2020 : भारत ने लोकप्रिय गेम पबजी (PUBG) सहित 118 चीन मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया.
कूटनीतिक और विदेशी स्तर की बातचीत
- 06.07.2020 : राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने चीनी विदेश मंत्री वानाफ यी से बात की जिसके बाद चीन और भारत की सैन्य टुकड़ियां पीछे हटीं.
- 03.09.2020 : चीनी रक्षा मंत्री ने रूस में चल रहे सीओ ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठक की.
- 04.09.2020 : राजनाथ ने मॉस्को में एलएसी तनाव के बीच शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के दौरान चीन समकक्ष से मुलाकात की. दो घंटे 20 मिनट तक चली बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एलएसी पर यथास्थिति की बहाली के लिए जोर दिया.
चीन की प्रतिक्रिया
गलवान संघर्ष के लिए चीन भारत को दोषी ठहराता रहा. चीन की तरफ से कई बार आधिकारिक बयान दिए गए कि भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को उकसाया जिसके बाद बात खूनी संघर्ष तक पहुंच गई. शुरुआत में चीन इस खूनी संघर्ष में खुद को बढ़त देता रहा और अपने सैनिकों की मौत छिपाता रहा. शुरुआत में चीन ने इस खूनी संघर्ष के दौरान मौजूद अपने सैनिकों को सम्मानित भी किया लेकिन कुछ महीनों बाद खुद अपने 4 से 5 सैनिकों के शहादत की बात कबूली थी.
गलवान के बाद हिंदी-चीनी का रिश्ता बदल गया
हिंदी-चीनी भाई-भाई, ये नारा साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच हर मोर्चे पर बोला जाता रहा है. गलवान से पहले भारत-चीन के रिश्तों में लद्दाख से लेकर अरुणाचल और पाकिस्तान का साथ देने जैसे मुद्दों पर खटास बनी रहती थी लेकिन बातचीत का दरवाजा हमेशा खुला रहता था लेकिन गलवान के बाद आर्थिक मोर्चे से लेकर सैन्य और कूटनीतिक मोर्चे पर भारत हमेशा फ्रंटफुट पर रहा. जानकार मानते हैं कि चीन को भी समझ आ गया है कि भारत अब शांत बैठकर सिर्फ बातचीत के सहारे रहने वाला नहीं है.
गलवान संघर्ष का एक साल और आगे की राह
गलवान में हुई खूनी झड़प के बाद एक बात तो साबित हो गई है कि चीन भरोसे के लायक नहीं है. भले भारत इस बात से वाकिफ था लेकिन इससे पहले भारत सिर्फ बातचीत के रुख पर कायम रहता था. 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद एलएसी पर सैनिकों की शहादत ने भारत को एकतरफा कदम उठाने वाली रवायत तोड़ने पर मजबूर कर दिया. अब भारत शायद चीन के साथ बातचीत के मोर्चे पर बराबर की भागीदारी चाहेगा. व्यापार से लेकर चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ भी भारत की तरफ से तल्खी दिखाई गई है. जो भारत में फलते फूलते चीनी व्यापार के भविष्य के लिए एक संदेश है.
गलवान के बाद भारत के फ्रंट फुट पर आने से चीन को संदेश तो गया ही है, दुनियाभर के देशों ने भी भारत का साथ दिया है. वैसे भी दोस्तों के नाम पर चीन के साथ पाकिस्तान जैसे गिने चुने देश हैं. एशिया में चीन के कई पड़ोंसी उसकी विस्तारवादी नीति का दंश झेल चुके हैं. जिसका विरोध एशिया से लेकर पूरी दुनिया के देश करते हैं. ऐसे में गलवान के बाद भारत की रणनीति में आए बदलाव से चीन को भी समझना होगा कि ये 1962 का भारत नहीं है.
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