ईटीवी भारत: यह दूतावास अब बिना किसी औपचारिक मान्यता के चल रहा है, समय के महत्वपूर्ण बिंदु पर यह किस स्थिति को दर्शाता है?
उत्तर: हम एक ऐसे भूभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिस पर अब हमारा नियंत्रण नहीं है. दिल्ली में हमारे मिशन और विदेशों में हमारे कई अन्य मिशनों का एक बहुत स्पष्ट जनादेश है. वह यह है कि हम अपने लोगों की सेवा करना जारी रख सकते हैं. हम ऐसा करना जारी रखेंगे. इस ध्वज (इस्लामिक गणराज्य अफगानिस्तान) को बनाए रखेंगे. हम एक लोकतांत्रिक समाज और संविधान के मूल्यों के तहत अफगान नागरिकों की रक्षा और उनके अधिकारों के लिए काम करते रहेंगे.
पिछले 10 महीनों में ऐसा कोई देश नहीं है जिसने उन्हें (तालिबान को) मान्यता दी हो. दुनिया भर में हमारे मिशन उन्हें वैधता से वंचित करने का दबाव बिंदु हैं. हम उनका विरोध तब तक करते रहेंगे जब तक बोलने की आजादी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पूरे समाज को आजादी और गैर:तालिबान गुटों को राजनीतिक आजादी नहीं मिल जाती. तालिबान अब महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर रहा है. वह उनके खिलाफ क्रूरता की अपनी पुरानी नीति पर लौट आया है. वहां हमले बढ़ गए हैं. आधे समाज को जानबूझकर अशिक्षित बनाया जा रहा है. अफगानिस्तान को लंबे समय में आतंकवाद के लिए एक आदर्श केंद्र बनाने की कवायद चल रही है.
ईटीवी भारत: फंसे हुए अफगान छात्रों और अन्य लोगों के लिए नई दिल्ली द्वारा जारी की जा रही वीजा नीति पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर: नई दिल्ली हमेशा से हमारी प्रिय मित्र रही है. चाहे हमें संकट के समय में मानवीय सहायता प्रदान करना हो, जिसमें 50000MT गेहूं, 10000MT जीवन रक्षक दवाएं, जीवन रक्षक सर्दियों के कपड़े शामिल हों, लेकिन नई दिल्ली की 2021 में अफगान छात्रों को 200 वीजा जारी करने की नीति बेहद निराशाजनक है. अफगानिस्तान की आबादी 40 मिलियन है. 10 महीने की अवधि में सिर्फ 200 वीजा यानी हर महीने सिर्फ 20 वीजा के समान है. 10,000 मील दूर होकर भी अमेरिका 180000 अफगानों को 3 सप्ताह के समय में सुरक्षित निकाल सकता है. तो भारत, जो 400 मील से भी कम दूर है, अमृतसर से तो 700 किमी से भी कम दूरी है, और हमारा सबसे विश्वसनीय और सबसे रणनीतिक साझेदार है क्यों अफगान लोगों से मुंह मोड़ रहा है.
चिकित्सा कारणों के हर साल 50000 अफगानी भारत आते थे. बहुत से लोगों को चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है लेकिन अब ये लोग कहीं और जा रहे हैं. भारत को वीजा नीति पर फिर से विचार करना चाहिए. इसे पुनरुद्धार की जरूरत है. हम ऐतिहासिक भागीदार हैं. मित्रवत हैं. यहां के लोगों का अफगान लोगों से संबंध है. हम मानते हैं कि भारत हमारा दोस्त है. अफगानों के मन में भारत के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर है. हमारे पास अभी भी बड़ी संख्या में वास्तविक छात्र हैं जो अपने पहले दूसरे या चौथे वर्ष की पढ़ाई में हैं और काबुल में फंसे हुए हैं. जिनके वीजा तालिबान के सत्ता में आने के बाद रद्द कर दिए गए थे. मुझे लगता है कि भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत वापस नहीं आने देने का फैसला उनके साथ दुर्व्यवहार है. वे रातोंरात तालिबान नहीं बन गए. 15 अगस्त, 2021 को उनके पास वैध वीजा था, 16 को उनके वीजा रद्द कर दिए गए. यह उनके साथ दुर्व्यवहार है हम पिछले 10 महीनों से लगातार भारत सरकार से अनुरोध कर रहे हैं कि ये छात्र भारत में अपनी पढ़ाई जारी रखें. हम वीजा मुद्दे में नीति में बदलाव की उम्मीद करते हैं और हमें उम्मीद है कि सरकार इन उपायों में ढील देगी.
ईटीवी भारत: क्या नई दिल्ली ने दूतावास को या अन्य क्षेत्रों में किसी भी तरह की वित्तीय सहायता देने का आश्वासन दिया है?
उत्तर : हमें भारत सरकार से आवश्यक नैतिक समर्थन मिला है. वे हम पर बहुत मेहरबान रहे हैं. हमारे साथ ऐसे समय में बहुत सम्मान और सम्मान का व्यवहार किया गया है जब दुनिया भर के दूतावासों में हमारे कई कर्मचारियों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया. विदेश मंत्रालय द्वारा हमें दी गई सहायता के लिए हम आभारी हैं. हम एक संप्रभु देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. जो काफी हद तक मिशन की जिम्मेदारी है. यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या हमें अपनी उपस्थिति की आवश्यकता है या हमें इस उपस्थिति की आवश्यकता क्यों है? हम भूभाग और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, वर्तमान सरकार का नहीं. हम लगभग 40 मिलियन लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस मिशन के अस्तित्व की आवश्यकता महत्वपूर्ण है. शीर्ष कारण यह है कि अफगानिस्तान में मानवीय संकट था, भारत सरकार के साथ समन्वयित हमारे लोगों ने अफगानिस्तान के लिए आधा मिलियन कोविड टीका भेजने की स्थिति में हैं. 50000MT गेहूं, 10MT जीवन रक्षक दवाएं और अन्य जरूरी सामान अफगानिस्तान भेजे जा चुके हैं. विभिन्न भारतीय गैर सरकारी संगठनों ने गर्म कपड़े भेजे. हमने पूरे परिवहन की सुविधा प्रदान की, इसलिए मानवीय कारणों से हमारी उपस्थिति की आवश्यकता है. साथ ही व्यापार और वाणिज्य सहित कई अन्य क्षेत्रों में भी हम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
भारत हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. हमारा व्यापार 1.5 अरब डॉलर को छू रहा था. इससे काफी हद तक किसानों को मदद मिली और वह व्यापार अभी भी जारी है. व्यापार काफी हद तक अबाधित है और इस क्षेत्र में भारत ने हमारा बहुत समर्थन किया है, किसानों का बहुत समर्थन किया है, व्यापार में मामूली कमी आई है लेकिन काफी गिरावट नहीं आई है. व्यापार हमारे फोकस का दूसरा क्षेत्र है. हमारी चिंता का तिसरा क्षेत्र शिक्षा है. भारत में करीब 15000 छात्र पढ़ रहे हैं. इनमें बड़ी संख्या में छात्रों को छात्रवृत्ति दी जा रही है.
इस साल की शुरुआत में, ICCR ने अफगानिस्तान को अपने पोर्टल से हटा दिया था. हमें उनसे उन्हें वापस शामिल करने का अनुरोध करना पड़ा. इसलिए, अफगान छात्रों की शिक्षा सहायता की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए हमारी उपस्थिति आवश्यक है. भारत हमारे लिए उदार रहा है. इस साल फिर से हमें 1000 छात्रवृत्तियां ऑफर की गई हैं. हमने 600 छात्रवृत्तियां हासिल की हैं. पिछले साल लगभग 200 अफगान नागरिकों को टेक पाठ्यक्रमों में स्थान मिला था. कुल मिला कर 800 लोग इन कार्यक्रमों से लाभान्वित हो चुके हैं.
ईटीवी भारत: तालिबान और पाक सुरक्षा बलों के बीच डूरंड लाइन पर हमले बढ़े हैं, आप इसे कैसे देखते हैं और दक्षिण एशिया के लिए सुरक्षा खतरों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर: पाकिस्तानी सेना द्वारा हमलों की संख्या में लगातार वृद्धि स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है. अब डूरंड लाइन पर स्थिति बेहद अस्थिर हो गई है. पाकिस्तान की सेना अफगानिस्तान के असैन्य इलाकों को निशाना बना रही है. ऐसा पाकिस्तान सालों से करता आ रहा है. कबायली इलाकों में ऐसे लोग हैं जो पाकिस्तानी सेना से नाखुश हैं. कई जो भारी नुकसान के बाद पाकिस्तान से भाग गए उन्हें भी अब अफगानिस्तान के अंदर पाक सेना द्वारा निशाना बनाया जा रहा है. हम आदिवासी क्षेत्रों, बलूचिस्तान और अन्य इलाकों में हमलों में अचानक वृद्धि देख रहे हैं.
ईटीवी भारत: क्या आपको लगता है कि यूक्रेन में युद्ध ने अफगान संकट को और मुश्किल कर दिया है?
उत्तर: बिल्कुल, हमें जो मानवीय सहायता मिल रही थी, वह अब यूक्रेन को हस्तांतरित की जा रही है. पश्चिम का ध्यान अब काफी हद तक यूक्रेन पर है. अफगानिस्तान अब सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं है. यहां तक कि अफगानिस्तान को आवंटित संसाधनों को यूक्रेन भेज दिया जाता है.
ईटीवी भारत: अब नई दिल्ली में स्थित दूतावास और मुंबई और हैदराबाद में इसके वाणिज्य दूतावासों की आधिकारिक स्थिति क्या है?
उत्तर: पिछले 10 महीनों के दौरान हम चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रहे हैं. हमें मिशन में काम करने वाले लोगों की संख्या को 40 से घटाकर 20 करना है. हमने न केवल दिल्ली में बल्कि मुंबई और हैदराबाद में भी कार्यबल को आधा कर दिया है. हमने सभी प्रमुख खर्चों को अधिकतम संभव स्तरों तक कम कर दिया है, जिसमें एक कार्यालय में काम करने वाले सहयोगियों की संख्या को सीमित करना या कार्यालय के रिक्त स्थान की संख्या को कम करना शामिल है. हमने अपने विभिन्न राजनयिकों को अमेरिका, यूरोप और कनाडा भेजा है. हम कांसुलर सेवाओं, पासपोर्ट विस्तार, दस्तावेजों के नवीनीकरण सत्यापन के माध्यम से राजस्व से संसाधन उत्पन्न करते हैं जो कि मिशन की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए काफी हद तक जीवन रेखा रही है. हमारे पास भारत में बहुत सारी संपत्तियां हैं और हमें किराया नहीं देना पड़ता है. यह एक बड़ा प्लस पॉइंट है. यह हमें खुद को बनाए रखने में मदद करता है.
ईटीवी भारत: दूतावास कब तक खुद को संभाल सकता है?
उत्तर: हम लंबे समय तक जारी रख सकते हैं, कोई दबाव नहीं है.
ईटीवी भारत: क्या आपको लगता है कि अब समय आ गया है कि नई दिल्ली को तालिबान शासन के साथ जुड़ना चाहिए?
उत्तर: मुख्य बात यह है कि एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत के कद को देखते हुए भारत अपने प्रभाव का उपयोग तालिबान पर अफगानिस्तान के प्रति जिम्मेदारी की अधिक भावना प्रदर्शित करने के लिए दबाव बनाने के लिए करना चाहिए. दिल्ली का संदेश निश्चित रूप से मदद करेगा. तालिबान पर जितना अधिक दबाव डाला जाएगा, उतना ही वे अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करेंगे. इस क्षेत्र में दिल्ली का बहुत प्रभाव है. हमारा एक साझा भविष्य है, काबुल की घटनाओं का दिल्ली पर सीधा प्रभाव पड़ता है. हमने ताज होटल, पुलवामा, पठानकोट और अन्य हमले देखे हैं. अफगानिस्तान में आतंकवाद के बढ़ने का सीधा असर दिल्ली पर पड़ रहा है.
ईटीवी भारत: रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान और तुर्कमेनिस्तान के अलावा जिन्होंने हाल के महीनों में किसी अन्य देश ने अफगानिस्तान के तथाकथित इस्लामिक अमीरात के साथ कोई संबंध नहीं बनाया है, इस पर आपका क्या कहना है?
उत्तर: इन सभी देशों की अपनी सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं, इसलिए अब वे तालिबान के साथ कूटनीतिक रिश्ता कायम कर रहे हैं. ताकि उनपर नजदीक से नजर रख सकें. चीन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट पर नजर रखना चाहता है शिनजियांग क्षेत्र में चीन के लिए एक बड़ा खतरा है. वे जानते हैं कि तालिबान का उनके साथ घनिष्ठ संबंध है. हम पूरी दुनिया से यह कहते रहे हैं कि तालिबान और वहां के अन्य आतंकवादी समूहों के बीच सहजीवी संबंध हैं. ईटीआईएम का विकास में तालिबान के विकास पर आधारित है. यदि तालिबान बढ़ता है, तो अन्य आतंकवादी समूह भी फलते:फूलते हैं जैसे जैश ए मोहम्मद, लश्कर:ए:तैयबा और अन्य.
ईटीवी भारत: तालिबान के वापस आने पर क्या आप भारत-अफगानिस्तान संबंधों को कैसे देखते हैं?
उत्तर: पिछले 50 वर्षों में जब भी जनता द्वारा चुनी गई सरकार अफगानिस्तान में बनी दिल्ली के साथ हमारे संबंध उत्कृष्ट रहे. मुझे नहीं लगता कि भारत और तालिबान के बीच संबंध उतने मधुर होंगे जितने कि गणतंत्र के साथ थे. लोगों के साथ संबंध मधुर और सौहार्दपूर्ण होंगे लेकिन तालिबान के साथ नहीं.
ईटीवी भारत: आप अगले 5 वर्षों में अफगानिस्तान के भविष्य को कैसे देखते हैं?
उत्तर: 21वीं सदी में यह साल हमारे लिए शायद सबसे चुनौतीपूर्ण हैं. ये हमारे मेकअप और ब्रेक अप के साल हैं..21वीं सदी की शुरुआत हमारे लिए उल्लेखनीय थी. हमने पिछले 20 वर्षों में बड़े संघर्ष या गृहयुद्ध नहीं देखे, लेकिन आज हम धीरे:धीरे गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं यदि तालिबान जिम्मेदारी की भावना प्रदर्शित करने में विफल रहता है तो आगे बेहद खतरनाक दौर आने वाला है.