नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना ने गुरुवार को एक आभासी (वर्चुअल) द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इनमें हल्दीबाड़ी-चिल्हाटी रेल लिंक का उद्घाटन, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में डाक टिकट जारी करने समेत बापू डिजिटल प्रदर्शनी, बा-बंगमाता दीवार और हाइड्रोकार्बन से लेकर कृषि क्षेत्र तक के समझौते शामिल हैं. इन समझौतों ने कुल मिलाकर दोनों देशों के बीच संबंधों को गहरा करने और विकास का मार्ग प्रशस्त किया.
हालांकि, तीस्ता नदी जल करार एक मुश्किल समझौता रहा है, जिस पर अभी हस्ताक्षर होना है. यह मसला 35 साल से अधिक से लटका हुआ है, जिसका अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है. दोनों देशों के बीच एक समझौता तो हुआ लेकिन अभी तक उस पर हस्ताक्षर नहीं किया जा सका.
ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में बांग्लादेश में भारत के पूर्व राजदूत रहे पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने कहा कि अब तक जो भी समझौते किए गए हैं वे कर पाने लायक हैं. दोनों देशों के बीच संप्रभुता, समुद्री सीमा, भूमि सीमा , कनेक्टिविटी, तटीय पोत परिवहन से संबंधित समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं.
लेकिन नदी जल का बंटवारा आसान मुद्दा नहीं है. यह एक बहुत ही जटिल मुद्दा है और यह भारत की घरेलू राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है, क्योंकि पश्चिम बंगाल जल बंटवारे के लिए उस समझौते से सहमत नहीं है, जिसका मसौदा तैयार किया गया है. 54 नदियां भारत और बांग्लादेश की सीमा से होकर बहती हैं. हमारा केवल एक समझौता है- गंगा जल समझौता , जिस पर वर्ष 1996 में 30 वर्षों के लिए हस्ताक्षर किया गया था और जिसकी जल्द ही समीक्षा होने वाली है.
वह कहते हैं कि कुल मिलाकर पानी की उपलब्धता विभिन्न कारणों से कम होती जा रही है- एक है जनसांख्यिकी, जनसंख्या में बढ़ोतरी आदि. चावल की खेती के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है, जलवायु परिवर्तन और जल विद्युत का भी पानी नहीं मिल पाने में योगदान है. खासकर ऐसे मौसम में जब बारिश कम होती है. उन्होंने आगे कहा कि कम बारिश वाले मौसम और बहुत अधिक बारिश वाले मौसम के बीच पानी की उपलब्धता का कोई मेल नहीं है. यह प्रबंधन का भी एक मुद्दा है. आप एक मौसम में इतना अधिक पानी और दूसरे में पानी की कमी का इंतजाम कैसे करते हैं ?
पूर्व राजदूत ने समझाते हुए कहा कि इसलिए यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है और नदी के ऐसे बड़े बेसिन के संदर्भ में इसे देखने की जरूरत है, जिसमें नेपाल और भूटान भी शामिल हैं, जहां से इनमें से कई नदियां निकलती हैं. यह एक दीर्घकालिक समस्या है और इसे रातोंरात आसानी से सुलझाया नहीं जा सकता. ऐसा इस वजह से कि यह इतना जटिल है कि बातचीत के लिए एक मेज पर आना भी बहुत दूर का मुद्दा है. इसमें अन्य देश भी शामिल हैं, पानी की उपलब्ध होना भी एक मुद्दा है. इसे शायद उन चीजों के साथ होना चाहिए जैसे कि खेती का तरीका किस तरह बदल सकता है जिसमें कम पानी का उपयोग होता हो.. ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वैश्विक तापमान बढ़ने यानी ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए तीस्ता जल-बंटवारे के फार्मूले का विरोध किया. ग्लोबल वार्मिंग नदी को जल देने वाले ग्लेशियरों पर अपना प्रभाव डाल रहा है. राजग सरकार ने द्विपक्षीय सौदा करने के लिए संविधान का अनुच्छेद 253 लागू नहीं करने का फैसला किया. संविधान का यह अनुच्छेद केंद्र को किसी राज्य की आपत्ति के बावजूद किसी भी अंतर्राष्ट्रीय या द्विपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने की अनुमति देता है.
क्या तीस्ता नदी में चीन मायने रखता है ?
तीस्ता नदी के प्रबंधन के लिए चीन बांग्लादेश को लगभग 1 अरब डॉलर दे रहा है, जो भारत के लिए चिंता का विषय बन गया है. जब भारत और बांग्लादेश तीस्ता नदी के जल को साझा करने पर सहमत हुए, (इस करार पर अभी हस्ताक्षर होना बाकी है ) तो चीन कोई कारक नहीं था. लेकिन अब बांग्लादेश में तीस्ता नदी प्रबंधन के लिए चीन का भी एक दृष्टिकोण है और ऐसा लगता है कि तीस्ता नदी जल करार पर फिर से विचार करने को लेकर सवाल पैदा हो गया है.
पूर्व राजदूत पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने कहा कि विशेष रूप से तीस्ता नदी उत्तरी बंगाल में है. यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे भारत पसंद करेगा क्योंकि यह बहुत संवेदनशील क्षेत्र है. चीनी नागरिक की तरह नहीं आते हैं संभवतः छद्म भेष में या अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में भेजते हैं, जिसके कारण भारत का चीन के साथ संबंध खराब हो गया है. हम सिलीगुड़ी कॉरिडोर के दक्षिण तीस्ता में चीनी परियोजनाओं का जोखिम नहीं उठा सकते हैं. यह हमारे लिए बहुत संवेदनशील क्षेत्र है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर पश्चिम बंगाल से असम और सिक्किम तक जाता है.
इसलिए मुझे लगता है कि भारत की ओर से इस तरह की परियोजना का विरोध किया जाएगा और बांग्लादेश को यह समझना होगा कि यह चीन के लोगों को लाने के लिहाज से एक संवेदनशील क्षेत्र है, जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकता है. मेरे विचार से भारत निश्चित रूप से इसका विरोध करेगा.
तीस्ता नदी करार को लेकर फिर से बातचीत करने पर चक्रवर्ती ने कहा कि मुझे लगता है कि नदी जल करार को लेकर फिर से बातचीत हो सकती है. दोनों देश फिर से बैठ सकते हैं और देख सकते हैं कि सबसे अच्छा क्या हो सकता है, लेकिन मुद्दा यह है कि अगर इस मामले में दिया जाने वाला जल कम किया जाएगा तो बांग्लादेश भी इसे पसंद नहीं करेगा. यदि भारत पश्चिम बंगाल की मांग को बढ़ावा देता है कि उन्हें पानी की जरूरत है तो और मुश्किल होगी. यह एक जटिल मुद्दा है.
भारत-बांग्लादेश का चीन से मुकाबला
पूर्व राजदूत पिनाक रंजन का कहना है कि चीन अलग-अलग तरीकों से बंगाल की खाड़ी में घुसना चाहता है ठीक उसी तरह जैसे उसने पाकिस्तान और ग्वादर के जरिए अरब सागर में प्रवेश किया है. यह एक गेम प्लान है. चीन एशिया में आधिपत्य जमाने की कोशिश कर रहा है ताकि वह शीर्ष पर रहे. हमें यह देखना होगा कि दोनों देश कितनी अच्छी तरह से इसका इंतजाम कर पा रहे हैं और विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी में उसके इस रुख का मुकाबला कर सकते हैं. इसलिए हमें अपने पड़ोसियों को अपने पास रखना चाहिए जिससे विशेष रूप से चीन क्या कर रहा है यह देखते हुए भारत अपने हितों पर नजर रख सके.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने समकक्ष शेख हसीना के साथ गुरुवार को आभासी शिखर सम्मेलन के दौरान अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में बांग्लादेश को भारत की ‘पड़ोस पहले’ नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बताया. पूर्व राजदूत ने कहा कि आभासी बैठक का महत्व यह है कि शीर्ष नेतृत्व के बीच निरंतर संपर्क बना हुआ है. ऐसा एक करीबी और मित्रतापूर्ण पड़ोसी के साथ होना चाहिए. बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण पड़ोसी और भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है.
हसीना ने कहा कि दोनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं और संपर्क को एक दूसरे से जोड़ते वैश्विक और क्षेत्रीय मूल्यों की कड़ी को आगे बढ़ा सकते हैं. जैसे कि चिल्हाटी- हल्दीबाड़ी रेल लिंक का पुनरुद्धार की पहल इस प्रक्रिया के लिए उत्प्रेरक होगी. हसीना ने इस शिखर सम्मेलन का उपयोग तीस्ता जल के बंटवारे और म्यांमार में रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए किया. ये ऐसे दो मुद्दे हैं जिन पर ढाका ने नई दिल्ली से बार-बार सहयोग मांगा है.
मोदी ने विजय दिवस के अवसर पर बंगाली में हसीना का अभिवादन करके अपनी टिप्पणी शुरू की. इसे 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. बंगाली भाषा में बात करते हुए हसीना ने कहा कि 17 दिसंबर का दिन उनके और उनके परिवार के लिए एक विशेष दिन था क्योंकि 1971 में उस दिन भारतीय सेना के मेजर अशोक तारा ने उनको, उनकी मां , बहन और भाई को पाकिस्तानी सेनाओं से मुक्त कराया था.
पाकिस्तान के 1971 के जनसंहार पर विदेश मंत्रालय ने मीडिया से कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जाता है कि बांग्लादेश के लोगों के खिलाफ सरकार प्रायोजित उत्पीड़न के कारण 30 लाख से अधिक लोग मारे गए और दो लाख से अधिक महिलाओं का उत्पीड़न और बलात्कार हुआ. उसमें आगे कहा गया कि हम प्रधानमंत्री शेख हसीना की ओर से व्यक्त की गई भावनाओं का गहराई से सम्मान करते हैं.
भारत-बांग्लादेश आभासी शिखर सम्मेलन के बाद प्रेस वार्ता के दौरान विदेश मंत्रालय में बांग्लादेश-म्यांमार की संयुक्त सचिव स्मिता पंत ने कहा कि द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में दोनों पक्षों ने म्यांमार के राखीन प्रांत से विस्थापितों की सुरक्षित, जल्द और दीर्घकालिक वापसी पर सहमति जताई और इसकी जरूरत पर प्रकाश डाला.
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने 26 मार्च, 2021 को बांग्लादेश यात्रा के लिए पीएम शेख हसीना के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है. यह एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन था, जिसमें महत्वपूर्ण परियोजनाओं के उद्घाटन और सहयोग के सभी क्षेत्रों में विस्तृत चर्चा शामिल थी.