नई दिल्ली : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि भारत में हृदय रोग (सीवीडी) के कारण होने वाली मौत दुनिया भर में इस राेग से हाेने वाली माैत के एक का पांचवां हिस्सा है.
विडंबना यह है कि सबसे ज्यादा मौतें युवा पीढ़ी में हो रही हैं. डब्ल्यूएचओ ने कहा कि युवा पीढ़ी में तंबाकू के उपयोग के कारण इसकी अधिक आशंका बढ़ गई है.
आंकड़ों के अनुसार, तंबाकू के कारण हाेने वाली हृदय रोग से 16 फीसदी माैत 30-44 आयु वर्ग के बीच लाेगाें की हाेती है. आंकड़ों के अनुसार, इसकी वजह से 25 प्रतिशत मौतें 45-59 आयु वर्ग के बीच होती हैं वहीं 19 प्रतिशत हृदय रोग से होने वाली मौतें 60-69 आयु वर्ग के बीच होती है.
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, एशियन सोसाइटी ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन के अध्यक्ष डॉ तामोरिश कोले ने ईटीवी भारत को बताया कि भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 272 की मृत्यु दर वैश्विक औसत 235 की तुलना में बहुत अधिक है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है.
एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में भारत में दिल का दौरा पड़ने से 23,246 लोगों की मौत हुई, 2018 में 25,746 लोगों की मौत हुई और 2019 में 28,005 लोगों की मौत हुई. कोले ने कहा कि धूम्रपान, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, डिस्लिपिडेमिया हृदय रोग से होने वाली मौतों के कुछ प्रमुख कारण हैं.
इसमें जलवायु परिवर्तन का भी बहुत ज्यादा असर देखने काे मिल रहा है. इसकी वजह से भी स्थिति चिंताजनक हाे गई है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का हृदय के स्वास्थ्य सहित पूरे शारीरिक स्वास्थ्य पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं.
लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण हृदय संबंधी बीमारियाें के मामले अधिक देखने काे मिलते हैं.
प्रदूषण की वजह से भारत में सालाना सैकड़ों हजारों मौतें होती हैं. कोले ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग ने पहले ही लोगों के स्वास्थ्य को इतना प्रभावित कर दिया है कि दुनिया कोविड-19 महामारी से भले ही जूझ रही है लेकिन जलवायु परिवर्तन पर आपातकालीन कार्रवाई को रोका नहीं जा सकता है.
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