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मद्रास HC की महत्वपूर्ण टिप्पणी, 'कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता की शिक्षा नहीं देता' - Indian Constitution

मद्रास उच्च न्यायालय सोमवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं सिखाता.

Madras High Court, Court News
मद्रास उच्च न्यायालय
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Published : Aug 9, 2021, 3:05 PM IST

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने सोमवार को कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाने की शिक्षा नहीं देता. इसके साथ ही अदालत ने एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को 'हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ अनुदान' (एचआरसीई) विभाग की सलाहकार समिति के अध्यक्ष पद से हटाने का अनुरोध किया गया था.

याचिका में कहा गया था कि स्टालिन को विभाग का अध्यक्ष तब तक नहीं होना चाहिए जब तक कि वह हिंदू देवता के सामने हिन्दू धर्म का पालन करने की शपथ नही लेते. मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति पी डी आदिकेशवुलु ने याचिका खारिज करने के साथ ही याचिकाकर्ता को पांच साल तक के लिए किसी भी तरह की जनहित याचिका दायर करने से प्रतिबंधित कर दिया.

धर्म में पूर्वाग्रह का कोई स्थान नहीं

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि एचआरसीई विभाग की नियमावली में एक नियम है जिसके अनुसार उसके सभी कर्मचारियों तथा अधिकारियों को कार्यभार ग्रहण करने से पहले हिन्दू देवता के सामने शपथ लेनी होती है कि वह हिन्दू धर्म का पालन करेगा. पीठ ने कहा कि धर्म के पालन के संबंध में पूर्वाग्रह और बदले की भावना को त्यागना पड़ता है.

पढ़ें: हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों को बिना शर्त टीसी जारी करने का दिया निर्देश

पीठ ने कहा कि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है तथा संविधान भी भगवान या संविधान के नाम पर शपथ लेने की अनुमति देता है. अदालत ने कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं सिखाता. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की भावनाओं की न तो सराहना की जा सकती है न ही इसे बर्दाश्त किया जा सकता है.

(पीटीआई-भाषा)

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने सोमवार को कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाने की शिक्षा नहीं देता. इसके साथ ही अदालत ने एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को 'हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ अनुदान' (एचआरसीई) विभाग की सलाहकार समिति के अध्यक्ष पद से हटाने का अनुरोध किया गया था.

याचिका में कहा गया था कि स्टालिन को विभाग का अध्यक्ष तब तक नहीं होना चाहिए जब तक कि वह हिंदू देवता के सामने हिन्दू धर्म का पालन करने की शपथ नही लेते. मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति पी डी आदिकेशवुलु ने याचिका खारिज करने के साथ ही याचिकाकर्ता को पांच साल तक के लिए किसी भी तरह की जनहित याचिका दायर करने से प्रतिबंधित कर दिया.

धर्म में पूर्वाग्रह का कोई स्थान नहीं

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि एचआरसीई विभाग की नियमावली में एक नियम है जिसके अनुसार उसके सभी कर्मचारियों तथा अधिकारियों को कार्यभार ग्रहण करने से पहले हिन्दू देवता के सामने शपथ लेनी होती है कि वह हिन्दू धर्म का पालन करेगा. पीठ ने कहा कि धर्म के पालन के संबंध में पूर्वाग्रह और बदले की भावना को त्यागना पड़ता है.

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पीठ ने कहा कि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है तथा संविधान भी भगवान या संविधान के नाम पर शपथ लेने की अनुमति देता है. अदालत ने कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं सिखाता. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की भावनाओं की न तो सराहना की जा सकती है न ही इसे बर्दाश्त किया जा सकता है.

(पीटीआई-भाषा)

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