कुल्लू: जिला कुल्लू में 5 अक्टूबर से अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जाएगा. राज परिवार के की ओर से इसकी तैयारियां भी पूरी कर ली गई है. वहीं, जिला कुल्लू के विभिन्न इलाकों से देवी-देवताओं के रथ भी अब दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए तैयार किए जा रहे हैं. इस साल दशहरा उत्सव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi in kullu dussehra) भी शामिल होने जा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा को लेकर लोगों में विशेष उत्साह है. वहीं, भगवान रघुनाथ व हनुमान की मूर्तियों को साल 2014 में एक चोर के द्वारा भी चोरी कर लिया गया था. जिसे साल 2015 के जनवरी माह में पुलिस के द्वारा बरामद कर लिया गया था. ऐसे में भगवान रघुनाथ की मूर्ति की चोरी होने पर जिला कुल्लू में शोक की लहर दौड़ गई थी और कई दिनों तक रघुनाथपुर के साथ लगते इलाकों में लोगों के घरों में चूल्हा भी नहीं जला था. ( lord raghunath in kullu dussehra)
8 दिसंबर 2014 को चोरी हुई थी मूर्ति: सुल्तानपुर स्थित ऐतिहासिक मंदिर से नेपाल के रहने वाले चोर ने भगवान रघुनाथ के अलावा नरसिंह, गणपति और शालिग्राम की मूर्तियां, चरण पादुका, पंचमणी, चांदी का शंख-प्लेट, चांदी की पीढ़ी, चांदी के दो लोटे, दो कटोरे और एक धूप स्टैंड भी ले उड़े. कुल एक किलो सोने और दस किलो चांदी की मूर्तियां और अन्य सामान भी गायब हुआ था. 8 दिसंबर 2014 की रात को शातिर मंदिर की छत उखाड़कर रस्सी के सहारे नीचे उतरा और चोरी को अंजाम दिया. सोने और अष्टधातु की इन मूर्तियों की कीमत करोड़ों में आंकी गई है. चोरी के समय चौकीदार मंदिर के साथ लगते कमरे में सोए रहे और मूर्ति चोरी का पता सुबह पुजारियों को चला.
नेपाल के रहने वाले चोर ने की थी चोरी: नेपाल के रहने वाले एक शातिर चोर के द्वारा अष्टधातु से बनी रघुनाथजी सहित हनुमान, नरसिंह, गणपति और सालिग्राम की मूर्तियां तो ले गए, लेकिन मां सीता की मूर्ति पूरी तरह सुरक्षित है. मां सीता की मूर्ति शयनकक्ष में ही कपड़े से लपेटकर रखी गई थी. इसे चोर हड़बड़ाट या जल्दबाजी में देख नहीं पाए. कहते हैं मां सीता की मूर्ति का छोटे आकार का होना भी इसकी एक वजह रही. (Theft of the idol of Lord Raghunath)
अष्टधातु से बनी है भगवान रघुनाथ की मूर्ति: बता दें कि भगवान रघुनाथजी की मूर्ति अष्टधातु से बनी है. मूर्तियां सोने और अष्टधातु की है, यही वजह है कि इन मूर्तियों की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत करोड़ों में है. भगवान रघुनाक की मूर्ति तीन ईंच लंबी है, जबकि मां सीता की मूर्ति इससे भी छोटी है. सदियों से हर रोज रघुनाथजी सहित मां सीता और अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद मूर्तियों को शयनकक्ष में कपड़े में लपेटकर रखा जाता है.
23 जनवरी 2015 को बरामद हुईं मूर्तियां: हिमाचल पुलिस की टीम ने चोर नर प्रसाद जेसी को 22 जनवरी 2015 को अपने नियंत्रण में लिया और 23 जनवरी 2015 को उसने सच उगल दिया. इसके बाद कुल्लू में अलग-अलग स्थानों से चुराई गई मूर्तियों और अन्य सामान को बरामद किया गया. नर प्रसाद प्रोफेशनल मूर्ति चोर है. शातिर इससे पहले हिमाचल, उत्तराखंड और नेपाल के कई मंदिरों में चोरी कर चुका है. इसने रघुनाथ जी की ऐतिहासिक मूर्ति चुराने का प्लान तैयार किया था. मूर्ति चोर दिसंबर महीने के शुरू से ही कुल्लू के रघुनाथ मंदिर की रेकी में जुटा हुआ था. वह इससे पहले कई बार कुल्लू आया और गया. चोरी से पहले उसने चार दिन मंदिर की रेकी की. पुलिस की टीम ने 23 जनवरी को मूर्ति बरामद की थी. हिमाचल पुलिस की टीम ने कुल्लू के बजौरा और ब्यास मोड़ के पास प्रभु रघुनाथ समेत सभी मूर्तियां बरामद की.
भगवान श्री राम ने तैयार की थी मूर्तियां!: कुल्लू के रहने वाले लेखक दयानंद सारस्वत कहते हैं कि रघुनाथ मंदिर से चोरी हुई मूर्ति त्रेता युग की है. यह मूर्तियां अष्टधातु से तैयार की गई हैं. यह मूर्ति भगवान श्रीराम चंद्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ के समय स्वयं तैयार की गई थी. दयानंद सारस्वत कहते हैं कि, चूंकि अश्वमेध यज्ञ में पति-पत्नी का होना अनिवार्य होता है इसलिए भगवान श्री राम ने अपनी मूर्ति भी खुद ही तैयार की था. उन्होंने कहा कि, माता सीता उस समय वनवास पर थीं. अश्वमेध यज्ञ की पूर्णता के लिए पति-पत्नी दोनों को यज्ञ में उपस्थित होना आवश्यक था. सीता की गैर मौजूदगी के कारण श्रीराम व सीता दोनों की यह मूर्तियां तैयार की गई.
...तो इसलिए नहीं है लक्ष्मण की मूर्ति: दयानंद सारस्वत कहते हैं कि चूंकि लक्ष्मण भी यज्ञ में मौजूद थे. इसीलिए भगवान राम के द्वारा उनकी मूर्ति का निर्माण नहीं किया गया. उसके बाद राजा जगत सिंह ने ये मूर्तियां अयोध्या से कुल्लू लाईं. त्रेता युग की होने के कारण इन मूर्तियों की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अरबों की है, लेकिन कुल्लू जिले में लोगों की भगवान रघुनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा है और आज भी भक्त भगवान रघुनाथ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं. दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ, माता सीता, हनुमान नरसिंह व शालिग्राम ढालपुर में अस्थाई शिविर में भक्तों को दर्शन देते हैं और इसमें भगवान रघुनाथ, माता सीता और हनुमान की मूर्ति प्राचीन समय से मंदिर में स्थित है.
राजपरिवार के सदस्य तैयार करते हैं भगवान रघुनाथ के लिए वस्त्र: इस बार भी रघुनाथ जी के वस्त्र का कुछ कपड़ा कुल्लू से खरीदा गया. कुछ कपड़ा दिल्ली से लाया गया है. रघुनाथ जी की छोटी पालकी की छतरी भी तैयार कर ली गई है. पालकी की छतरी दो-तीन साल के बाद तैयार की जाती है और इसका कपड़ा दिल्ली से मंगवाया गया है. हर बार की तरह इस बार भी राजपरिवार की ओर से दशहरा उत्सव से एक माह पूर्व ही वस्त्र तैयार करने का कार्य शुरू कर दिया गया था. नवरात्र से पूर्व ही वस्त्र तैयार कर लिए गए हैं. यहां खास बात यह है कि भगवान के वस्त्र मशीनों से नहीं बनाए जाते, बल्कि राजपरिवार के सदस्य इन्हें अपने हाथ से ही तैयार करते हैं. इसके अलावा उत्सव से एक दिन पहले स्थानीय कारीगर भगवान रघुनाथ जी के आभूषणों की सफाई करेंगे.
रथ में सवार होकर ढालपुर मैदान में पहुंचती हैं मूर्तियां: दशहरा उत्सव में आयोजित होने वाली रथयात्रा में यह मूर्तियां पालकी में सवार होकर ढालपुर मैदान पहुंचती हैं और पालकी से फिर उन्हे भगवान रघुनाथ के रथ में सवार किया जाता है. उसके बाद 7 दिनों तक यह मूर्तियां ढालपुर में भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर में विराजमान रहती हैं, जहां हजारों की संख्या में रोजाना श्रद्धालु इनका दर्शन करते हैं.
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