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आठ दिसंबर से पहले कब हुआ भारत बंद और कितना हुआ नुकसान - भारत बंद

हड़ताल की वजह चाहे जो भी हो, नुकसान पूरे देश को उठाना पड़ता है. आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित होती हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एक दिन की देशव्यापी हड़ताल की वजह से 25 हजार करोड़ से अधिक का नुकसान होता है. कई बार हड़ताल बुलाने से पहले बातचीत की गुंजाइश रहती भी है, इसके बावजूद राजनीतिक वजहों से हड़ताल बुला ली जाती है. आइए जानते हैं हाल ही में बुलाए गए भारत बंद के बारे में.

भारत बंद
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Published : Dec 7, 2020, 9:49 PM IST

हैदराबाद : आठ दिसंबर को भारत बंद बुलाया गया है. इससे पहले इसी साल 26 नवंबर को देशव्यापी बंद रखा गया था. 10 मजदूर संगठनों द्वारा बुलाई गई इस हड़ताल से देश को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. दो सितंबर 2015 को बंदी की वजह से एक दिन में देश को 25 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचा था. आइए जानते हैं आखिर कब-कब भारत बंद बुलाया गया और इसकी क्या वजहें थीं.

2018 में एससी-एसटी कानून पर बंद का आह्वान

दरअसल, 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में कहा कि 1989 के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का इस्तेमाल निर्दोष नागरिकों को 'ब्लैकमेल' करने के लिए किया जा रहा है. इसलिए लोक सेवकों और निजी कर्मचारियों को सुरक्षित रखने के लिए नया निर्देश जारी किया जा रहा है.

इसके मुताबिक इन अधिकारियों के नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बाद ही इन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. निजी कर्मचारियों के मामले में, संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को इसकी अनुमति देनी चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम को नागरिकों के खिलाफ पुलिस द्वारा शोषण या उत्पीड़न के लिए एक चार्टर में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है. एक निर्दोष नागरिक का उत्पीड़न, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, कानून के खिलाफ है. शीर्ष अदालत ने यह भी निर्धारित किया था कि प्राथमिकी दर्ज होने से पहले एक प्राथमिक जांच की जानी चाहिए कि क्या यह मामला अत्याचार अधिनियम के मापदंडों के भीतर आता है और यदि यह अपमानजनक या प्रेरित है.

21 मार्च को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि वे इस फैसले की समीक्षा कर रहे हैं. कांग्रेस ने कहा कि इस फैसले की तुरंत समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि इससे दलित समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना बढ़ेगी. सत्ताधारी दलों के दलित सांसदों ने कानून मंत्री से मिलकर तुरंत रिव्यू पिटीशन दायर करने की मांग की.

राष्ट्रीय गठबंधन ने एससी / एसटी (पीओए) अधिनियम को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह तेजी से कदम उठाए. लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल के प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि दलितों का सबसे मजबूत साधन चला गया.

छह सितंबर 2018 को मुख्य रूप से दलित समुदाय के सदस्यों ने विरोध रखा. विरोध प्रदर्शन में छिटपुट हिंसा भी हुई. हालांकि, सरकार ने समीक्षा याचिका दायर कर रखी थी.

सरकार ने अपनी समीक्षा याचिका में सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसका 20 मार्च का फैसला एससी / एसटी समुदायों के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करेगा, इसलिए अधिनियम के प्रावधानों को बहाल करने का आदेश दें.

26 नवंबर, 2020 को भारत बंद

ट्रेड यूनियनों ने कृषि कानूनों के साथ अन्य कई मांगों को लेकर देशव्यापी बंद रखा. इसमें मुख्य रूप से 10 मजदूर संगठनों ने हिस्सा लिया था. ये थे - इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर सभा, भारतीय व्यापार संघ का केंद्र, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड सेंटर, एआईयूटीयूसी, ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर, सेल्फ-एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन और यूनाइटेड स्टेट यूनियन कांग्रेस.

इनकी मुख्य मांगें थीं - कृषि कानून वापस हो. इनकम टैक्स नहीं देने वाले परिवारों के लिए 7500 रु प्रति माह की व्यवस्था की जाए. जरूरत मंद लोगों के लिए 10 किलो मुफ्त राशन दिया जाए. मनरेगा का दायरा बढ़े. इन्हें 200 दिनों का काम दिया जाए. सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण बंद हो. सभी नागरिकों के लिए पेंशन योजना लागू हो.

इस हड़ताल में ऑल इंडिया बैंक एसोसिएशन, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन और बैंक एंप्लॉय फेडरेशन ऑफ इंडिया हड़ताल में शामिल थी.

दो सितंबर, 2015 की हड़ताल

दो सितंबर 2015 को ट्रेड यूनियनों की देशव्यापी हड़ताल के कारण बैंकिंग और अन्य सेवाओं पर असर पड़ा. व्यापार मंडलों ने अर्थव्यवस्था को 25,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया. व्यापारिक मंडल ने कहा कि यह एक विघटनकारी कार्य है. इससे देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ती है.

उद्योग निकाय सीआईआई ने सरकार द्वारा अपनाए गए त्रिपक्षीय परामर्श की प्रक्रिया के बारे में कहा कि श्रम कानून में सुधार और देश में निवेश और रोजगार सृजन के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए महत्वपूर्ण है.

यह भी पढ़ें: भारत बंद : कौन-कौन हैं शामिल और सेवाएं कितनी होंगी प्रभावित, जानें

सीआईआई के तत्कालीन अध्यक्ष सुमित मजुमदार ने कहा कि हड़ताल का असर भले ही आंशिक रहा, लेकिन देश की छवि पर गहरा असर पड़ता है. हमारी अर्थव्यवस्था इस तरह के व्यवधानों को बर्दाश्त नहीं कर सकती है और सभी घटकों को देश को आगे ले जाने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है. हम बातचीत और चर्चा के माध्यम से सभी लंबित मुद्दों को हल करने के लिए ट्रेड यूनियनों से ईमानदारी से अपील करते हैं.

एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा कि आवश्यक सेवाओं के व्यवधान के वित्तीय प्रभाव से अर्थव्यवस्था को 25,000 करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हो सकता है, जिससे कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान हो सकते हैं.

23 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, 12 निजी क्षेत्र के बैंकों, 52 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और 13,000 से अधिक सहकारी बैंकों के कामकाज प्रभावित हुए थे.

एफडीआई सुधारों के खिलाफ हड़ताल

इसी प्रकार से सितंबर 2012 में भी हड़ताल बुलाई गई थी. सरकार के खिलाफ दिन भर के बंद के कारण 2,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था. नुकसान मुख्य रूप से दैनिक वेतन भोगियों के नुकसान, उत्पादन की हानि और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के कारण था. एफडीआई सुधारों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन रखा गया था.

तब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था, 'जब आप विरोध करते हैं, तो आपको उस तरीके से विरोध नहीं करना चाहिए जिससे आर्थिक नुकसान होता है.'

सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि सीमित विरोध ठीक था, लेकिन यह इस हद तक नहीं होना चाहिए कि लोगों के हित के लिए 'नुकसान का कारण' हो.

हैदराबाद : आठ दिसंबर को भारत बंद बुलाया गया है. इससे पहले इसी साल 26 नवंबर को देशव्यापी बंद रखा गया था. 10 मजदूर संगठनों द्वारा बुलाई गई इस हड़ताल से देश को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. दो सितंबर 2015 को बंदी की वजह से एक दिन में देश को 25 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचा था. आइए जानते हैं आखिर कब-कब भारत बंद बुलाया गया और इसकी क्या वजहें थीं.

2018 में एससी-एसटी कानून पर बंद का आह्वान

दरअसल, 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में कहा कि 1989 के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का इस्तेमाल निर्दोष नागरिकों को 'ब्लैकमेल' करने के लिए किया जा रहा है. इसलिए लोक सेवकों और निजी कर्मचारियों को सुरक्षित रखने के लिए नया निर्देश जारी किया जा रहा है.

इसके मुताबिक इन अधिकारियों के नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बाद ही इन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. निजी कर्मचारियों के मामले में, संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को इसकी अनुमति देनी चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम को नागरिकों के खिलाफ पुलिस द्वारा शोषण या उत्पीड़न के लिए एक चार्टर में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है. एक निर्दोष नागरिक का उत्पीड़न, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, कानून के खिलाफ है. शीर्ष अदालत ने यह भी निर्धारित किया था कि प्राथमिकी दर्ज होने से पहले एक प्राथमिक जांच की जानी चाहिए कि क्या यह मामला अत्याचार अधिनियम के मापदंडों के भीतर आता है और यदि यह अपमानजनक या प्रेरित है.

21 मार्च को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि वे इस फैसले की समीक्षा कर रहे हैं. कांग्रेस ने कहा कि इस फैसले की तुरंत समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि इससे दलित समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना बढ़ेगी. सत्ताधारी दलों के दलित सांसदों ने कानून मंत्री से मिलकर तुरंत रिव्यू पिटीशन दायर करने की मांग की.

राष्ट्रीय गठबंधन ने एससी / एसटी (पीओए) अधिनियम को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह तेजी से कदम उठाए. लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल के प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि दलितों का सबसे मजबूत साधन चला गया.

छह सितंबर 2018 को मुख्य रूप से दलित समुदाय के सदस्यों ने विरोध रखा. विरोध प्रदर्शन में छिटपुट हिंसा भी हुई. हालांकि, सरकार ने समीक्षा याचिका दायर कर रखी थी.

सरकार ने अपनी समीक्षा याचिका में सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसका 20 मार्च का फैसला एससी / एसटी समुदायों के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करेगा, इसलिए अधिनियम के प्रावधानों को बहाल करने का आदेश दें.

26 नवंबर, 2020 को भारत बंद

ट्रेड यूनियनों ने कृषि कानूनों के साथ अन्य कई मांगों को लेकर देशव्यापी बंद रखा. इसमें मुख्य रूप से 10 मजदूर संगठनों ने हिस्सा लिया था. ये थे - इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर सभा, भारतीय व्यापार संघ का केंद्र, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड सेंटर, एआईयूटीयूसी, ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर, सेल्फ-एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन और यूनाइटेड स्टेट यूनियन कांग्रेस.

इनकी मुख्य मांगें थीं - कृषि कानून वापस हो. इनकम टैक्स नहीं देने वाले परिवारों के लिए 7500 रु प्रति माह की व्यवस्था की जाए. जरूरत मंद लोगों के लिए 10 किलो मुफ्त राशन दिया जाए. मनरेगा का दायरा बढ़े. इन्हें 200 दिनों का काम दिया जाए. सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण बंद हो. सभी नागरिकों के लिए पेंशन योजना लागू हो.

इस हड़ताल में ऑल इंडिया बैंक एसोसिएशन, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन और बैंक एंप्लॉय फेडरेशन ऑफ इंडिया हड़ताल में शामिल थी.

दो सितंबर, 2015 की हड़ताल

दो सितंबर 2015 को ट्रेड यूनियनों की देशव्यापी हड़ताल के कारण बैंकिंग और अन्य सेवाओं पर असर पड़ा. व्यापार मंडलों ने अर्थव्यवस्था को 25,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया. व्यापारिक मंडल ने कहा कि यह एक विघटनकारी कार्य है. इससे देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ती है.

उद्योग निकाय सीआईआई ने सरकार द्वारा अपनाए गए त्रिपक्षीय परामर्श की प्रक्रिया के बारे में कहा कि श्रम कानून में सुधार और देश में निवेश और रोजगार सृजन के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए महत्वपूर्ण है.

यह भी पढ़ें: भारत बंद : कौन-कौन हैं शामिल और सेवाएं कितनी होंगी प्रभावित, जानें

सीआईआई के तत्कालीन अध्यक्ष सुमित मजुमदार ने कहा कि हड़ताल का असर भले ही आंशिक रहा, लेकिन देश की छवि पर गहरा असर पड़ता है. हमारी अर्थव्यवस्था इस तरह के व्यवधानों को बर्दाश्त नहीं कर सकती है और सभी घटकों को देश को आगे ले जाने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है. हम बातचीत और चर्चा के माध्यम से सभी लंबित मुद्दों को हल करने के लिए ट्रेड यूनियनों से ईमानदारी से अपील करते हैं.

एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा कि आवश्यक सेवाओं के व्यवधान के वित्तीय प्रभाव से अर्थव्यवस्था को 25,000 करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हो सकता है, जिससे कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान हो सकते हैं.

23 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, 12 निजी क्षेत्र के बैंकों, 52 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और 13,000 से अधिक सहकारी बैंकों के कामकाज प्रभावित हुए थे.

एफडीआई सुधारों के खिलाफ हड़ताल

इसी प्रकार से सितंबर 2012 में भी हड़ताल बुलाई गई थी. सरकार के खिलाफ दिन भर के बंद के कारण 2,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था. नुकसान मुख्य रूप से दैनिक वेतन भोगियों के नुकसान, उत्पादन की हानि और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के कारण था. एफडीआई सुधारों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन रखा गया था.

तब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था, 'जब आप विरोध करते हैं, तो आपको उस तरीके से विरोध नहीं करना चाहिए जिससे आर्थिक नुकसान होता है.'

सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि सीमित विरोध ठीक था, लेकिन यह इस हद तक नहीं होना चाहिए कि लोगों के हित के लिए 'नुकसान का कारण' हो.

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