हैदराबाद : कोरोना महामारी की वजह से माता-पिता के सामने स्वास्थ्य से अलग एक नई चुनौती सामने आ गई थी. क्योंकि लॉकडाउन जैसे कई कारणों की वजह से लोगों की आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई, वहीं उन्होंने आवश्यक सेवाओं तक ही अपने को सीमित कर लिया. फलस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य कठिनाइयों, शराब के सेवन और आत्महत्या के विचारों में वृद्धि के साथ महामारी का माता-पिता पर काफी प्रभाव पड़ा. वहीं एक नए अध्ययन से पता चला है कि किस तरह कोविड-19 ने नवजात शिशुओं के माता-पिता को प्रभावित किया.
इस दौरान पाया गया कि माता-पिता में तनाव के मामले सामने आए, फिर भी माताओं ने बेहतर जीवन संतुष्टि जताई. हालांकि 90 फीसदी से अधिक माता-पिता ने महामारी की शुरुआत के बाद से ही अपने परिवार और बच्चे के साथ महत्वपूर्ण समय व्यतीत किया. वहीं 85 फीसदी ने अपनी माता-पिता की भूमिका में अधिक अपनापन का अहसास कराया.
वहीं आश्चर्यजनक रूप से कोरोना महामारी की वजह से वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में अधिकांश माता-पिता ने काफी बेहतर ढंग से काम किया. साथ ही माता व पिता दोनों ने ही बेहतर तालमेल और संतुष्टि को प्रदर्शित किया. हालांकि लॉकडाउन के दौरान माताओं की प्रभावी और विश्वसनीय देखभालकर्ता होने की उनकी क्षमता कम होती दिखी. इस दौरान 45 फीसदी महिलाओं के घर पर अन्य बच्चे भी थे, साथ ही उनकी पढ़ाई का काम भी उन्हें कराना पड़ रहा था.
इतना ही नहीं घर पर सीखने के प्रबंधन के अतिरिक्त बोझ ने इन माताओं को कम प्रभावी महसूस कराया. अवलोकन में पाया गया कि माता-पिता दोनों में निर्विवाद लाभों के साथ बढ़ते परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने काम के पैटर्न को समायोजित करने के लिए लचीलापन होता है.