नई दिल्ली: भारत मौसम विज्ञान विभाग (Meteorological Department (IMD)) ने गुरुवार को भविष्यवाणी की कि इस साल मानसून 'सामान्य' (normal monsoon) रहने की संभावना है. आईएमडी ने कहा है कि जून और सितंबर के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून (south west monsoon) मौसमी वर्षा, 96% से 104% दीर्घकालिक अवधि औसत (Long Term Average) के बीच होगी. जो सामान्य मानसून के मौसम की ओर इशारा करती है, जबकि मात्रात्मक रूप से वर्षा दीर्घकालिक अवधि औसत (long term average) (LPA) का 99% होने की संभावना है. हालांकि, आईएमडी ने संकेत दिया है कि देश के कुछ क्षेत्रों में मानसून के दौरान सामान्य से कम वर्षा होगी, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में जो हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण सामान्य से कम वर्षा का अनुभव कर रहे हैं. दक्षिण पश्चिम मानसून वर्षा भारत की वार्षिक वर्षा (normal rainfall in India) में 74.9% का योगदान करती है.
आईएमडी डीजी डॉ एम महापात्र ने गुरुवार को कहा कि आईएमडी मई के मध्य में मानसून के लिए एक अद्यतन पूर्वानुमान जारी करेगा. देश भर में वर्षा वितरण पैटर्न का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देखे जा रहे शुष्क मानसून के 'भारत में दशकीय परिवर्तनशीलता' का हिस्सा हैं. उन्होंने कहा कि आईएमडी द्वारा गणना की गई नई अखिल भारतीय दीर्घकालिक अवधि औसत (LPA) वर्षा अब 1971-2020 के आंकड़ों पर आधारित है जो कि 87 सेमी है. मौसम विभाग (Meteorological Department (IMD)) ने 1971-2021 के आंकड़ों के आधार पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए एक नया अखिल भारतीय सामान्य बारिश मानदंड ‘868.6 मिमी’ जारी किया है, जिसका उपयोग देश में वर्षा की माप के लिए किया जाएगा.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने यहां कहा कि यह नया मानदंड दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के मौसम के लिए 87 सेंटीमीटर के आसपास रखा गया है, जो 1961-2010 के बारिश के आंकड़ों के आधार पर गणना की गई पूर्ववर्ती 88 सेंमी की सामान्य बारिश से आंशिक रूप से कम है. मौसम विभाग सामान्य बारिश से विचलन के संदर्भ में मौसम पूर्वानुमान जारी करता है जो कि 50 वर्ष की अवधि में हुई बारिश का दीर्घकालिक अवधि औसत (एलपीए) है.
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‘सामान्य’ बारिश या एलपीए को प्रत्येक 10 साल बाद अद्यतन किया जाता है. एलपीए को पिछली बार अद्यतन करने में देर हुई थी और इसे 2018 में किया जा सका था. तब तक मौसम कार्यालय ने 1951-2001 के एलपीए का, वर्षा को मापने के मानदंड के रूप में उपयोग किया था. महापात्रा ने औसत बारिश में क्रमिक कमी के लिए शुष्क मौसम की प्राकृतिक बहु-दशकीय अवधि परिवर्तनशीलता और अखिल भारतीय स्तर पर बारिश की आर्द्र अवधि को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में दक्षिण-पश्चिम मानसून शुष्क काल-खंड से गुजर रहा है जो 1971-80 के दशक में शुरू हुआ था.
महापात्रा के मुताबिक, 2011-20 के दशक के लिए अखिल भारतीय स्तर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश का दशकीय औसत दीर्घकालिक औसत से 3.8 प्रतिशत कम है. उन्होंने कहा कि अगला दशक, 2021-30 सामान्य के करीब रहेगा और दक्षिण-पश्चिम मानसून के 2031-40 के दशक से आर्द्र अवधि में प्रवेश करने की संभावना है. नई सामान्य बारिश की गणना देश के 703 जिलों में स्थित 4,132 वर्षामापी केंद्रों के आंकड़ों का उपयोग कर की गई है. उन्होंने कहा कि मानसून के दौरान, भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या बढ़ रही है, जबकि मध्यम और कम वर्षा वाले दिनों की संख्या घट रही है.
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आईएमडी ने यह भी कहा कि वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में ला नीना की स्थिति बनी हुई है. जलवायु मॉडल के पूर्वानुमानों ने संकेत दिया है कि मानसून के मौसम के दौरान ला नीना की स्थिति जारी रहने की संभावना है. वर्तमान में, हिंद महासागर के ऊपर तटस्थ IOD स्थितियां मौजूद हैं और नवीनतम पूर्वानुमान से संकेत मिलता है कि तटस्थ IOD स्थितियां दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम की शुरुआत तक जारी रहने की संभावना है. इसके बाद, नकारात्मक आईओडी स्थितियों के लिए बढ़ी हुई संभावना की भविष्यवाणी की जाती है.
जैसा कि प्रशांत और हिंद महासागरों पर समुद्र की सतह के तापमान (एसएसटी) की स्थिति को भारतीय मानसून पर मजबूत प्रभाव के लिए जाना जाता है, आईएमडी इन महासागरीय घाटियों पर समुद्र की सतह की स्थिति के विकास की सावधानीपूर्वक निगरानी कर रहा है. महापात्र ने बताया कि पिछले साल, आईएमडी ने मौजूदा दो चरणों की पूर्वानुमान रणनीति को संशोधित करके देश भर में दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा के लिए मासिक और मौसमी परिचालन पूर्वानुमान जारी करने के लिए एक नई रणनीति लागू की थी. नई रणनीति विभिन्न वैश्विक जलवायु पूर्वानुमान और अनुसंधान केंद्रों से युग्मित वैश्विक जलवायु मॉडल (सीजीसीएम) पर आधारित एक नव-विकसित मल्टी-मॉडल एन्सेम्बल (एमएमई) पूर्वानुमान प्रणाली का उपयोग करती है, जिसमें आईएमडी के मानसून मिशन जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (एमएमसीएफएस) शामिल हैं.
महापात्र ने कहा कि स्थानिक वितरण से पता चलता है कि प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरी भागों और इससे सटे मध्य भारत के कई क्षेत्रों, हिमालय की तलहटी और उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है. पूर्वोत्तर भारत के कई क्षेत्रों, उत्तर पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों और दक्षिण प्रायद्वीप के दक्षिणी भागों में सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना है. उत्तर पूर्व भारत में औसत से कम मानसून और उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों और चरम दक्षिणी प्रायद्वीप को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. लेकिन बारिश के पैटर्न पर जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय प्रभाव की और जांच करने की जरूरत है.