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IIT हैदराबाद ने कृषि अपशिष्टों से बनाया मकान, जानें क्या है खासियत

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-हैदराबाद ने बायो ईंटों से छोटा सा कमान तैयार किया है. यह मकान हर मौसम में आरामदायक है. मकान की दीवारों को बारिश से बचाने के लिए अंदर और बाहर दोनों तरफ सीमेंट का प्लास्टर लगाया गया है. इस पर पढ़िये ईटीवी भारत की यह विशेष रिपोर्ट..

जैविक ईंटें'
जैविक ईंटें'
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Published : Sep 3, 2021, 3:52 PM IST

Updated : Sep 3, 2021, 6:01 PM IST

हैदराबाद : प्रदूषण ने हमारे पर्यावरण पर भारी असर डाला है और पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं. इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए सभी सेक्टर कदम उठा रहे हैं. इस दिशा में आईआईटी हैदराबाद भी तेजी से कदम उठा रहा है. आईआईटी हैदराबाद ने जैविक ईटों से एक छोटा सा कमरा (गार्ड कैबिन) बनाया है. भारत में कृषि अपशिष्ट जलना प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, ऐसे में आईआईटी हैदराबाद का यह कदम गेमचेंजर साबित हो सकता है.

IIT हैदराबाद ने कृषि अपशिष्टों से बनाया मकान

इस कमरे की छत भी बायो-ईंट से बनाई गई है, लेकिन इसके उपर पीवीसी शीट का इस्तेमाल किया गया है, जो छत की गर्मी को कम करती है. मकान की दीवारों को बारिश से बचाने के लिए अंदर और बाहर दोनों तरफ सीमेंट का प्लास्टर लगाया गया है. यह मकान हर मौसम में आरामदायक है.

बता दें कि जैविक ईंटो का निर्माण कृषि अपशिष्टों से किया गया है, जिसका प्रयोग निर्माण कार्यों में किया जा सकता है. प्रारंभिक शोधों से पता चला है कि भारत में भारी मात्रा में कृषि-अपशिष्ट उत्पन्न होता है और नियमित ईंटों के लिए कच्चे माल की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे उपजाऊ ऊपरी मिट्टी का नुकसान और अधिक वायु प्रदूषण हो रहा है. ऐसे में यह ईंटे अहम साबित हो सकती हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह नए रोजगार को पैदा कर सकती है.

बता दें कि आईआईटी ने बिल्ड परियोजना के तहत यह मकान बनाया है.

इस अवसर पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए डिजाइन विभाग के प्रमुख प्रो. दीपक जॉन मैथ्यू ने कहा कि यह नवाचार ग्रामीण किसानों के लिए एक गेमचेंजर साबित हो सकता है, क्योंकि उनका कृषि अपशिष्ट आय का एक जरिया बन सकता है. इसके साथ ही उन्हें रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-हैदराबाद के निदेशक प्रोफेसर बीएस मूर्ति ने कहा कि BUILD परियोजना महामारी के दौरान IIT द्वारा की गई अद्भुत पहलों में से एक है. हमारे छात्रों के पास अद्वितीय विचार है और उन्हें अपने विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए हम उनकी सहायता करते हैं. हम इसे ग्रामीण समुदाय द्वारा व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे.

वहीं प्रोफेसर प्रियब्रत राउत्रे ने कहा कि मुझे प्रोफेसर बी एस मूर्ति (निदेशक-आईआईटीएच) द्वारा शुरू की गई बिल्ड परियोजना के तहत इस परियोजना को पूरा करने में खुशी मिल रही है. मुझे पूरी उम्मीद है कि किसान अपने घर बनाने के लिए इस तकनीक को अपनाएंगे. मैं इस उपलब्धि को अपने पिता को समर्पित करना चाहूंगा, जिन्हें मैंने पिछले साल महामारी के कारण खो दिया था.

यह भी पढ़ें- IIT हैदराबाद ने बनाया दूसरा सबसे बड़ा एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी टेलीस्कोप

इसके लिए 2019 में, प्रियब्रत राउत्रे और केआईआईटी स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के सहायक प्राध्यापक अविक रॉय को रुरल इनोवेटर्स स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव पुरस्कृत किया गया.

हालांकि ये जैविक-ईंटें पकी हुए मिट्टी की ईंटों की तरह मजबूत नहीं हैं और ज्यादा भारी संरचनाओं के निर्माण के लिए इन्हें सीधे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. लेकिन इन्हें लकड़ी या धातु के ढांचे के संयोजन के साथ कम लागत वाले घरों में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा, ये ईंटें ऊष्मा और ध्वनि से सुरक्षा और घरों में आर्द्रता बनाए रखने में मदद करती हैं.

हैदराबाद : प्रदूषण ने हमारे पर्यावरण पर भारी असर डाला है और पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं. इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए सभी सेक्टर कदम उठा रहे हैं. इस दिशा में आईआईटी हैदराबाद भी तेजी से कदम उठा रहा है. आईआईटी हैदराबाद ने जैविक ईटों से एक छोटा सा कमरा (गार्ड कैबिन) बनाया है. भारत में कृषि अपशिष्ट जलना प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, ऐसे में आईआईटी हैदराबाद का यह कदम गेमचेंजर साबित हो सकता है.

IIT हैदराबाद ने कृषि अपशिष्टों से बनाया मकान

इस कमरे की छत भी बायो-ईंट से बनाई गई है, लेकिन इसके उपर पीवीसी शीट का इस्तेमाल किया गया है, जो छत की गर्मी को कम करती है. मकान की दीवारों को बारिश से बचाने के लिए अंदर और बाहर दोनों तरफ सीमेंट का प्लास्टर लगाया गया है. यह मकान हर मौसम में आरामदायक है.

बता दें कि जैविक ईंटो का निर्माण कृषि अपशिष्टों से किया गया है, जिसका प्रयोग निर्माण कार्यों में किया जा सकता है. प्रारंभिक शोधों से पता चला है कि भारत में भारी मात्रा में कृषि-अपशिष्ट उत्पन्न होता है और नियमित ईंटों के लिए कच्चे माल की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे उपजाऊ ऊपरी मिट्टी का नुकसान और अधिक वायु प्रदूषण हो रहा है. ऐसे में यह ईंटे अहम साबित हो सकती हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह नए रोजगार को पैदा कर सकती है.

बता दें कि आईआईटी ने बिल्ड परियोजना के तहत यह मकान बनाया है.

इस अवसर पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए डिजाइन विभाग के प्रमुख प्रो. दीपक जॉन मैथ्यू ने कहा कि यह नवाचार ग्रामीण किसानों के लिए एक गेमचेंजर साबित हो सकता है, क्योंकि उनका कृषि अपशिष्ट आय का एक जरिया बन सकता है. इसके साथ ही उन्हें रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-हैदराबाद के निदेशक प्रोफेसर बीएस मूर्ति ने कहा कि BUILD परियोजना महामारी के दौरान IIT द्वारा की गई अद्भुत पहलों में से एक है. हमारे छात्रों के पास अद्वितीय विचार है और उन्हें अपने विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए हम उनकी सहायता करते हैं. हम इसे ग्रामीण समुदाय द्वारा व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे.

वहीं प्रोफेसर प्रियब्रत राउत्रे ने कहा कि मुझे प्रोफेसर बी एस मूर्ति (निदेशक-आईआईटीएच) द्वारा शुरू की गई बिल्ड परियोजना के तहत इस परियोजना को पूरा करने में खुशी मिल रही है. मुझे पूरी उम्मीद है कि किसान अपने घर बनाने के लिए इस तकनीक को अपनाएंगे. मैं इस उपलब्धि को अपने पिता को समर्पित करना चाहूंगा, जिन्हें मैंने पिछले साल महामारी के कारण खो दिया था.

यह भी पढ़ें- IIT हैदराबाद ने बनाया दूसरा सबसे बड़ा एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी टेलीस्कोप

इसके लिए 2019 में, प्रियब्रत राउत्रे और केआईआईटी स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के सहायक प्राध्यापक अविक रॉय को रुरल इनोवेटर्स स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव पुरस्कृत किया गया.

हालांकि ये जैविक-ईंटें पकी हुए मिट्टी की ईंटों की तरह मजबूत नहीं हैं और ज्यादा भारी संरचनाओं के निर्माण के लिए इन्हें सीधे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. लेकिन इन्हें लकड़ी या धातु के ढांचे के संयोजन के साथ कम लागत वाले घरों में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा, ये ईंटें ऊष्मा और ध्वनि से सुरक्षा और घरों में आर्द्रता बनाए रखने में मदद करती हैं.

Last Updated : Sep 3, 2021, 6:01 PM IST
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