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यदि आपने न्यायिक अधिकारी से दुर्व्यवहार किया तो माफी का प्रश्न ही कहां है : सुप्रीम कोर्ट - order of Madhya Pradesh High Court

अदालत की अवमानना (Contempt of Court Case) के तहत आरोपों से घिरे दो पुलिसकर्मियों की अर्जियों पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने कहा कि यदि आपने किसी न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया है, तो माफी स्वीकार करने का प्रश्न ही कहां है.

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Published : Dec 3, 2021, 9:11 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यदि आपने न्यायिक अधिकारी से दुर्व्यवहार किया है तो माफी का प्रश्न ही कहां है. दरअसल, दो पुलिसकर्मियों पर न्याय प्रशासन में कथित रूप से दखल देने को लेकर आरोप तय किए गए हैं.

शीर्ष अदालत इन पुलिसकर्मियों द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के 2018 के आदेश के विरूद्ध अलग-अलग दायर की गई अर्जियों पर सुनवाई कर रही थी. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने कहा था कि 2017 में एक न्यायिक अधिकारी का कथित रूप से अपमान करने को लेकर इन पुलिसकर्मियों के विरूद्ध अदालत की अवमानना कानून के प्रावधानों के तहत मामला बनता है.

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर एवं न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ (A bench of Justice AM Khanwilkar and Justice CT Ravikumar) ने इन अर्जियों पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. इन याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने इस मामले में उच्च न्यायालय के सामने बिना शर्त माफी मांग ली है लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया और कानून के प्रावधानों के तहत आरोप तय कर दिए गए.

याचिकाकर्ता उस वक्त कांस्टेबल के पद पर था. पीठ ने कहा कि यदि आपने न्यायिक अधिकारी से दुर्व्यवहार किया है तो माफी स्वीकार करने का प्रश्न ही कहां है. दूसरे याचिकाकर्ता, जो उस समय संबंधित थाने के प्रभारी थे, के वकील अमित आनंद तिवारी ने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उनके मुवक्किल ने न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया.

पहले याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता कांस्टेबल थे और उन्हें इस आरोप पर अदालत की अवमानना करने को लेकर आरोपित किया गया है कि उन्होंने न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया. उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अनजाने में हुआ. हमें पता नहीं था कि वह न्यायिक अधिकारी हैं.

यह भी पढ़ें- जानें, दिल्ली प्रदूषण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की मीडिया की खिंचाई

वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस वाहन के चालक थे. पीठ ने कहा कि यह आपका बचाव है. वकील ने घटना का ब्योरा देते हुए कहा कि पुलिस एक चोर का पीछा कर रही थी और मजिस्ट्रेट की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी, जिसके कारण यातायात बाधित था. जब उन्होंने यह कहा कि याचिकाकर्ता को यह ज्ञात नहीं था कि संबंधित व्यक्ति न्यायिक मजिस्ट्रेट है, तब पीठ ने कहा कि स्थानीय पुलिस को इलाके के न्यायाधीशों को जानना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यदि आपने न्यायिक अधिकारी से दुर्व्यवहार किया है तो माफी का प्रश्न ही कहां है. दरअसल, दो पुलिसकर्मियों पर न्याय प्रशासन में कथित रूप से दखल देने को लेकर आरोप तय किए गए हैं.

शीर्ष अदालत इन पुलिसकर्मियों द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के 2018 के आदेश के विरूद्ध अलग-अलग दायर की गई अर्जियों पर सुनवाई कर रही थी. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने कहा था कि 2017 में एक न्यायिक अधिकारी का कथित रूप से अपमान करने को लेकर इन पुलिसकर्मियों के विरूद्ध अदालत की अवमानना कानून के प्रावधानों के तहत मामला बनता है.

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर एवं न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ (A bench of Justice AM Khanwilkar and Justice CT Ravikumar) ने इन अर्जियों पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. इन याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने इस मामले में उच्च न्यायालय के सामने बिना शर्त माफी मांग ली है लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया और कानून के प्रावधानों के तहत आरोप तय कर दिए गए.

याचिकाकर्ता उस वक्त कांस्टेबल के पद पर था. पीठ ने कहा कि यदि आपने न्यायिक अधिकारी से दुर्व्यवहार किया है तो माफी स्वीकार करने का प्रश्न ही कहां है. दूसरे याचिकाकर्ता, जो उस समय संबंधित थाने के प्रभारी थे, के वकील अमित आनंद तिवारी ने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उनके मुवक्किल ने न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया.

पहले याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता कांस्टेबल थे और उन्हें इस आरोप पर अदालत की अवमानना करने को लेकर आरोपित किया गया है कि उन्होंने न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया. उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अनजाने में हुआ. हमें पता नहीं था कि वह न्यायिक अधिकारी हैं.

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वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस वाहन के चालक थे. पीठ ने कहा कि यह आपका बचाव है. वकील ने घटना का ब्योरा देते हुए कहा कि पुलिस एक चोर का पीछा कर रही थी और मजिस्ट्रेट की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी, जिसके कारण यातायात बाधित था. जब उन्होंने यह कहा कि याचिकाकर्ता को यह ज्ञात नहीं था कि संबंधित व्यक्ति न्यायिक मजिस्ट्रेट है, तब पीठ ने कहा कि स्थानीय पुलिस को इलाके के न्यायाधीशों को जानना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

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