पटना: बलात्कार पीड़िता (Rape Victim) को लेकर पटना हाईकोर्ट (High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि यदि किसी रेप पीड़िता ने दुष्कर्म के समय संघर्ष नहीं किया या उसके निजी अंगों की क्षति होने का सबूत नहीं हो, तो इसका अर्थ ये नहीं हो सकता कि पीड़िता की सहमति (If Rape Victim Does not Fighting Back it does not Mean Consent) थी. जस्टिस एएम बदर ने आरोपी इस्लाम मियां की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ये स्पष्ट किया. पटना उच्च न्यायालय ने लोवर कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए ये निर्णय सुनाया है.
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'विरोध नहीं करने का मतलब रेप पीड़िता की सहमति नहीं': दरअसल, ये मामला जमुई जिले के एक गांव का है. जहां 9 अप्रैल 2015 को ईंट-भट्टे का मालिक इस्लाम मियां ने भट्टे में काम करने वाली महिला को कमरे में घसीटकर उसके साथ बलात्कार किया था. इसमें हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर लोअर कोर्ट में साबित हो गया है कि महिला द्वारा दिया गया बयान विश्वसनीय और सही है, तो ये रेप आपसी सहमति से नहीं माना जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 375 में स्पष्ट है कि आपसी सहमति होने के बाद ही अपनी इच्छा से यौन संबंध स्थापित किया जा सकता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रेप के समय पीड़िता द्वारा शारीरिक रूप से संघर्ष नहीं किए जाने के सबूत के अभाव में उसकी सहमति नहीं मानी जा सकती है.
क्या है मामला?: पीड़िता 9 अप्रैल 2015 को काम खत्म करने के बाद ईंट-भट्टे के मालिक से मजदूरी मांगने गई तो उसने बोला कि बाद में पैसे दे देंगे. उसके बाद रात को इस्लाम मियां उसके घर गया. उसने उसके बच्चे से उसकी मां के बारे में पूछा. उसके बाद वाह उसे रूम में घसीट कर ले गया. वहां उसने उसके साथ दुष्कर्म किया. बाद में पीड़िता द्वारा शोर मचाने के बाद गांव वालो ने आरोपी को पकड़ लिया.
10 वर्ष की कैद और 10 हजार जुर्माना: सुबह में उसके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई. महिला का पति बाहर रहता था और वह खुद अपने बच्चे के साथ यहां रहती थी. इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट द्वारा रेप और गलत तरीका से घर में घुसने के मामले दस वर्ष की कैद और दस हजार के आर्थिक दंड को सही ठहराया.
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