नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी राजनीतिक दल का प्रचार नहीं हो रहा है तो प्रधानमंत्री मोदी के सेल्फी प्वाइंट से किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुक्रवार को ये टिप्पणी सत्ताधारी पार्टी पर अपनी पिछले नौ साल की उपलब्धियों के प्रचार के लिए सेना और सरकारी अधिकारियों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की. इस मामले में अगली सुनवाई 30 जनवरी को होगी.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री एक निर्वाचित व्यक्ति हैं, जो संवैधानिक पद पर आसीन हैं. प्रधानमंत्री किसी के लिए राजनीतिक विरोधी हो सकते हैं, लेकिन अगर सार्वजनिक धन का इस्तेमाल सरकार की योजनाओं के प्रचार में हो रहा है तो इसमें किसी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए. तब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि इस प्लेटफार्मों का इस्तेमाल सरकार की योजनाओं के प्रचार तक सीमित नहीं है बल्कि इनका इस्तेमाल राम मंदिर, गुजरात दंगों और धारा 370 हटाने पर भाषण देने के लिए भी होता है.
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सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने कहा कि इन यात्राओं के जरिये सरकार अंतिम पायदान के व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाना चाहती है. उन्होंने हाईकोर्ट को सेना की इन यात्राओं से होने वाले फायदों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि सुदूर इलाकों में रहने वाले लोगों को इन यात्राओं का लाभ मिला है. सरकार केवल पिछले नौ सालों की उपलब्धियों का ही प्रचार नहीं कर रही है.
बता दें, हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा था कि किसी कल्याणकारी योजना का प्रचार क्यों नहीं होना चाहिए ? योजनाओं के प्रचार में मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री की तस्वीरें होती हैं. हर मुख्यमंत्री ऐसा करता है. तब याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि केवल पिछले नौ सालों की योजनाओं के प्रचार के लिए ही सेना और सरकारी अधिकारियों का दुरुपयोग किया जा रहा है.
तब कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति तात्कालिक योजनाओं के बारे में जानना चाहता है. अगर कोई 50 साल पहले की योजनाओं के बारे में जानना चाहता है तो इसके लिए प्राइम मिनिस्टर्स म्यूजियम है. याचिका जगदीप एस छोकर और ई ए एस शर्मा ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार नौ साल की उपलब्धियों के प्रचार-प्रसार के लिए सैन्यबलों का गलत इस्तेमाल कर रही है. याचिका में कहा गया है कि यह नियमों के खिलाफ है और किसी राजनीतिक पार्टी के हितों को बढ़ावा देने जैसा है. याचिकाकर्ता ने इसे पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा कहा है.
इसे लेकर याचिकाकर्ता ने पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सत्तारूढ़ दल पर चुनावी लाभ के लिए लोक सेवकों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल करने की इजाजत दे दी थी. इसके बाद याचिकाकर्ताओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है.
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