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Sickle Cell Disease : आईसीएमआर ने जारी किए मानक उपचार दिशा निर्देश, ये दी सलाह

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने सिकल सेल रोग को लेकर सलाह दी है कि सांस के रोग के लक्षणों वाले मरीजों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. सिकल सेल रोग मुख्य रूप से भारत में आदिवासी समुदायों के बीच होता है.

ICMR
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद
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Published : May 8, 2023, 7:37 PM IST

नई दिल्ली: सिकल सेल रोग को लेकर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने एक मानक उपचार प्रोटोकॉल तैयार किया है. आईसीएमआर ने कहा कि सांस के रोग के लक्षणों वाले लोग (खांसी, सांस की तकलीफ, सीने में दर्द) या हाइपोक्सिया के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

सिकल सेल रोग (SCD) एक वंशानुगत रक्त रोग है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं और विकृत हो जाती हैं. सेल जल्दी डेड हो जाती हैं, जिससे स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (सिकल सेल एनीमिया) की कमी हो जाती है और रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है जिससे दर्द होता है.

सिकल सेल रोग मुख्य रूप से भारत में आदिवासी समुदायों के बीच होता है. एक अनुमान के अनुसार, एसटी (ST) में 86 जन्म लेनें वालों में से 1 को एससीडी होता है.

बीमारी के लक्षण की बात करें तो सिकल सेल बीमारी के लक्षणों में क्रोनिक एनीमिया, अप्रत्याशित दर्द, हाथ और पैरों में सूजन, जल्दी और अत्यधिक थकान होना, कमजोरी लगना, बार-बार संक्रमण होना, जल्दी जल्दी पेट में संक्रमण होना आदि हैं.

आईसीएमआर ने SCD वाले लोगों का जल्द पता लगाने और अस्पताल में भर्ती होने का सुझाव दिया. उसने कहा कि SCD लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन (रक्त में ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार) को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारी और मृत्यु हो सकती है.

ICMR के अध्ययन में कहा गया है कि SCD की दीर्घकालिक जटिलताओं में ऑर्गन डैमेज होने, हेपेटोपैथी, क्रोनिक किडनी रोग, हाइपरस्प्लेनिज्म, फीमर के एवस्कुलर न्यूरोसिस, पैर के अल्सर आदि शामिल हैं.

यह कहते हुए कि एससीडी वाहक आम तौर पर एसिम्पटोमेटिक होते हैं. आईसीएमआर अध्ययन में कहा गया है कि इसके पीछे मकसद केवल प्रभावित व्यक्तियों की जीवन प्रत्याशा में सुधार करना है. आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि दर्द के शुरुआती स्तर पर पेरासिटामोल, डिक्लोफेनाक या ट्रामाडोल का उपयोग करके दर्द को रोका जा सकता है.

आईसीएमआर के अध्ययन के मुताबिक नवजात शिशु भी SCD से प्रभावित होते हैं. ICMR अध्ययन ने बच्चे में पेनिसिलिन प्रोफिलैक्सिस शुरू करने और टीकाकरण कार्यक्रम में नामांकन के लिए पॉइंट ऑफ़ केयर (POC) परीक्षण का सुझाव दिया.

आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि 'यदि माता सिकल सेल वाहक है तो पिता का परीक्षण अनिवार्य है. यदि पिता का परीक्षण सकारात्मक है, तो प्रभावित नवजात शिशु के जन्म के जोखिम को रोकने के लिए परामर्श और प्रसव पूर्व परीक्षण (आवश्यक सुविधाओं वाले केंद्रों पर) किया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने आदिवासी क्षेत्रों में रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए एससीडी सहायता केंद्र पहले ही शुरू कर दिया है.

पढ़ें- आईआईएससी की सिकल सेल एनीमिया में म्यूटेंट हीमोग्लोबिन को लेकर नई खोज

नई दिल्ली: सिकल सेल रोग को लेकर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने एक मानक उपचार प्रोटोकॉल तैयार किया है. आईसीएमआर ने कहा कि सांस के रोग के लक्षणों वाले लोग (खांसी, सांस की तकलीफ, सीने में दर्द) या हाइपोक्सिया के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

सिकल सेल रोग (SCD) एक वंशानुगत रक्त रोग है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं और विकृत हो जाती हैं. सेल जल्दी डेड हो जाती हैं, जिससे स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (सिकल सेल एनीमिया) की कमी हो जाती है और रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है जिससे दर्द होता है.

सिकल सेल रोग मुख्य रूप से भारत में आदिवासी समुदायों के बीच होता है. एक अनुमान के अनुसार, एसटी (ST) में 86 जन्म लेनें वालों में से 1 को एससीडी होता है.

बीमारी के लक्षण की बात करें तो सिकल सेल बीमारी के लक्षणों में क्रोनिक एनीमिया, अप्रत्याशित दर्द, हाथ और पैरों में सूजन, जल्दी और अत्यधिक थकान होना, कमजोरी लगना, बार-बार संक्रमण होना, जल्दी जल्दी पेट में संक्रमण होना आदि हैं.

आईसीएमआर ने SCD वाले लोगों का जल्द पता लगाने और अस्पताल में भर्ती होने का सुझाव दिया. उसने कहा कि SCD लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन (रक्त में ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार) को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारी और मृत्यु हो सकती है.

ICMR के अध्ययन में कहा गया है कि SCD की दीर्घकालिक जटिलताओं में ऑर्गन डैमेज होने, हेपेटोपैथी, क्रोनिक किडनी रोग, हाइपरस्प्लेनिज्म, फीमर के एवस्कुलर न्यूरोसिस, पैर के अल्सर आदि शामिल हैं.

यह कहते हुए कि एससीडी वाहक आम तौर पर एसिम्पटोमेटिक होते हैं. आईसीएमआर अध्ययन में कहा गया है कि इसके पीछे मकसद केवल प्रभावित व्यक्तियों की जीवन प्रत्याशा में सुधार करना है. आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि दर्द के शुरुआती स्तर पर पेरासिटामोल, डिक्लोफेनाक या ट्रामाडोल का उपयोग करके दर्द को रोका जा सकता है.

आईसीएमआर के अध्ययन के मुताबिक नवजात शिशु भी SCD से प्रभावित होते हैं. ICMR अध्ययन ने बच्चे में पेनिसिलिन प्रोफिलैक्सिस शुरू करने और टीकाकरण कार्यक्रम में नामांकन के लिए पॉइंट ऑफ़ केयर (POC) परीक्षण का सुझाव दिया.

आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि 'यदि माता सिकल सेल वाहक है तो पिता का परीक्षण अनिवार्य है. यदि पिता का परीक्षण सकारात्मक है, तो प्रभावित नवजात शिशु के जन्म के जोखिम को रोकने के लिए परामर्श और प्रसव पूर्व परीक्षण (आवश्यक सुविधाओं वाले केंद्रों पर) किया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने आदिवासी क्षेत्रों में रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए एससीडी सहायता केंद्र पहले ही शुरू कर दिया है.

पढ़ें- आईआईएससी की सिकल सेल एनीमिया में म्यूटेंट हीमोग्लोबिन को लेकर नई खोज

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