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पाक से चीन को मिलने वाली पश्चिमी सैन्य तकनीक चिंता की बात : वायुसेना प्रमुख

पिछले सालों में चीन और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सहयोग काफी बढ़ा है. इसे देखते हुए भारतीय वायुसेना प्रमुख ने पाकिस्तान के जरिए चीन तक पश्चिमी सैन्य तकनीक और जानकारी के प्रसार की आशंकाओं को रेखांकित किया. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी
एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी
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Published : Oct 6, 2021, 7:44 PM IST

नई दिल्ली : चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) और अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में चीन और पाकिस्तान के बीच पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंधों में और अधिक मजबूती आई है. इससे भारत के सामने दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका वास्तव में मजबूत हो जाती है.

मगर मंगलवार को, भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने यह स्पष्ट किया कि भारत को दो भागीदार देशों के बीच संबंधों से डरने की कोई बात नहीं थी. भारत दो मोर्चों पर संघर्ष का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है.

पांच दिन पहले ही वायुसेना प्रमुख के रूप में पदभार संभालने वाले एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा कि हमारी मुख्य चिंता यह है कि पश्चिमी सैन्य तकनीक और रणनीति पाकिस्तान के जरिए चीन के हाथों में जा सकती है.

एक सवाल का जवाब देते हुए वायुसेना प्रमुख चौधरी ने कहा, 'यह केवल दो साझेदार देशों के बीच का संबंध है, इससे डरने की कोई बात नहीं है, एकमात्र मुद्दा पश्चिमी तकनीक के प्रसार की चिंता है, जो पाकिस्तान से चीन तक जाती है.'

दशकों से, पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया क्षेत्र में अमेरिका के साथ भागीदारी की और अपनी सेना को अमेरिका और पश्चिमी तकनीक और संपत्तियों से लैस किया. साल 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा शुरू किए गए आतंक के खिलाफ युद्ध की शुरुआत के साथ यूएस-पाक सैन्य संबंधों को एक और गति मिली.

अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों ने युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में पाकिस्तान की अपरिहार्यता और प्रभाव के कारण पाकिस्तान को सहन किया. हालांकि आतंकी संगठन तालिबान, अल-कायदा और हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान का समर्थन गुप्त रखा गया था.

02 मई. 2011 को, अमेरिकी विशेष बलों की टीम ने पाकिस्तान के एबटाबाद में एक सुरक्षित घर पर हमला कर अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था. अमेरिका ने पाकिस्तान के अधिकारियों को अंधेरी में रखकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में कड़वाहड़ आ गई.

पाकिस्तान ने करीबी सहयोग के लिए अपने सैन्य अधिकारियों को चीनी सेना के बीजिंग और चेंगदू में स्थित मुख्यालयों में तैनात किया है.

चीन पहले से ही पाकिस्तानी सेना को थल, वायु और नौसैनिक प्लेटफार्मों से लैस कर रहा है, जिसमें लड़ाकू विमान, पनडुब्बी और युद्धपोत शामिल हैं. वहीं, चीन उस भू-रणनीतिक परिस्थिति का लाभ उठा सकता है जो पाकिस्तान पश्चिमी सैन्य मंचों और उत्पादों को रिवर्स-इंजीनियर करने के प्रयासों के अलावा समुद्र तक पहुंच प्रदान करता है.

दूसरी ओर, भारत के लिए चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान विदेश से मिल रहे प्लेटफार्म को योजनाबद्ध तरीके से लंबी अवधि के लिए तैनात कर सकता है. उदाहरण के लिए, भारत को दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने के लिए लगभग 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन चाहिए, जो अगले 10-15 वर्षों में संभव नहीं लगता.

यह भी पढ़ें- सशस्त्र सेनाओं के बीच समन्वय के लिए वायुसेना प्रतिबद्ध : एयर चीफ मार्शल

वायुसेना प्रमुख ने भी कहा है कि इस दशक में लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या लगभग 35 हो जाएगी. बता दें कि वर्तमान में भारत की लड़ाकू स्क्वाड्रन की क्षमता लगभग 31 है.

भारतीय वायुसेना प्रमुख ने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही है कि उनका बहु-क्षेत्रीय संचालन पर प्रमुख जोर है, जिसे उन्होंने युद्ध का भविष्य बताया है.

नई दिल्ली : चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) और अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में चीन और पाकिस्तान के बीच पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंधों में और अधिक मजबूती आई है. इससे भारत के सामने दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका वास्तव में मजबूत हो जाती है.

मगर मंगलवार को, भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने यह स्पष्ट किया कि भारत को दो भागीदार देशों के बीच संबंधों से डरने की कोई बात नहीं थी. भारत दो मोर्चों पर संघर्ष का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है.

पांच दिन पहले ही वायुसेना प्रमुख के रूप में पदभार संभालने वाले एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा कि हमारी मुख्य चिंता यह है कि पश्चिमी सैन्य तकनीक और रणनीति पाकिस्तान के जरिए चीन के हाथों में जा सकती है.

एक सवाल का जवाब देते हुए वायुसेना प्रमुख चौधरी ने कहा, 'यह केवल दो साझेदार देशों के बीच का संबंध है, इससे डरने की कोई बात नहीं है, एकमात्र मुद्दा पश्चिमी तकनीक के प्रसार की चिंता है, जो पाकिस्तान से चीन तक जाती है.'

दशकों से, पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया क्षेत्र में अमेरिका के साथ भागीदारी की और अपनी सेना को अमेरिका और पश्चिमी तकनीक और संपत्तियों से लैस किया. साल 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा शुरू किए गए आतंक के खिलाफ युद्ध की शुरुआत के साथ यूएस-पाक सैन्य संबंधों को एक और गति मिली.

अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों ने युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में पाकिस्तान की अपरिहार्यता और प्रभाव के कारण पाकिस्तान को सहन किया. हालांकि आतंकी संगठन तालिबान, अल-कायदा और हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान का समर्थन गुप्त रखा गया था.

02 मई. 2011 को, अमेरिकी विशेष बलों की टीम ने पाकिस्तान के एबटाबाद में एक सुरक्षित घर पर हमला कर अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था. अमेरिका ने पाकिस्तान के अधिकारियों को अंधेरी में रखकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में कड़वाहड़ आ गई.

पाकिस्तान ने करीबी सहयोग के लिए अपने सैन्य अधिकारियों को चीनी सेना के बीजिंग और चेंगदू में स्थित मुख्यालयों में तैनात किया है.

चीन पहले से ही पाकिस्तानी सेना को थल, वायु और नौसैनिक प्लेटफार्मों से लैस कर रहा है, जिसमें लड़ाकू विमान, पनडुब्बी और युद्धपोत शामिल हैं. वहीं, चीन उस भू-रणनीतिक परिस्थिति का लाभ उठा सकता है जो पाकिस्तान पश्चिमी सैन्य मंचों और उत्पादों को रिवर्स-इंजीनियर करने के प्रयासों के अलावा समुद्र तक पहुंच प्रदान करता है.

दूसरी ओर, भारत के लिए चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान विदेश से मिल रहे प्लेटफार्म को योजनाबद्ध तरीके से लंबी अवधि के लिए तैनात कर सकता है. उदाहरण के लिए, भारत को दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने के लिए लगभग 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन चाहिए, जो अगले 10-15 वर्षों में संभव नहीं लगता.

यह भी पढ़ें- सशस्त्र सेनाओं के बीच समन्वय के लिए वायुसेना प्रतिबद्ध : एयर चीफ मार्शल

वायुसेना प्रमुख ने भी कहा है कि इस दशक में लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या लगभग 35 हो जाएगी. बता दें कि वर्तमान में भारत की लड़ाकू स्क्वाड्रन की क्षमता लगभग 31 है.

भारतीय वायुसेना प्रमुख ने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही है कि उनका बहु-क्षेत्रीय संचालन पर प्रमुख जोर है, जिसे उन्होंने युद्ध का भविष्य बताया है.

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