नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक पिता की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पिछले साल नवंबर में कश्मीर में हैदरपोरा मुठभेड़ में मारे गए अपने बेटे का शव सौंपने की मांग की थी. न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि एक बार दफनाए जाने के बाद शरीर को बाहर निकाला नहीं जाना चाहिए.
मृतक को पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया था, और इसका कोई सबूत नहीं है कि शव को उचित रूप से दफन नहीं किया गया. पीठ ने कहा कि वह पिता की भावनाओं का सम्मान करती है, लेकिन अदालत भावनाओं पर मामलों का फैसला नहीं कर सकती. अदालत ने मोहम्मद लतीफ माग्रे द्वारा दायर अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा सुनाया गया फैसला सही था.
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को परिवार को मुआवजे के संबंध में हाईकोर्ट के निर्देश का पालन करने और उन्हें कब्र पर नमाज अदा करने की अनुमति देने का निर्देश दिया. जम्मू-कश्मीर प्रशासन का प्रतिनिधित्व स्थायी वकील तरुना अर्धेंदुमौली प्रसाद ने किया. उन्होंने अपनी दलील में कहा कि आठ महीने बीत चुके हैं, शरीर सड़ चुका होगा और अब शव को निकालने से केवल कानून-व्यवस्था बाधित होगी. उन्होंने अपने बेटे को खो दिया है लेकिन वह एक आतंकवादी था.
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माग्रे ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसमें उनके बेटे के शरीर को निकालने की अनुमति नहीं दी गई थी. पिछले साल 15 नवंबर को श्रीनगर के बाहरी इलाके में हुई मुठभेड़ में आमिर माग्रे समेत चार लोग मारे गए थे. याचिका अधिवक्ता नुपुर कुमार के माध्यम से दायर की गई थी.