नई दिल्ली : राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान और ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वावधान में अवार्ड समारोह वर्चुअली आयोजित किया गया.
यह पुरस्कार उन उम्मीदवारों को दिए जाते हैं जिन्हें दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना (डीडीयू-जीकेवाई) और मंत्रालय की ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों (आरएसईटीआई) योजनाओं के माध्यम से विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित किया गया था. बाद में उन्हें नियुक्त किया गया और संगठनों में काम दिया गया.
पुरस्कार समारोह में नागेंद्र नाथ सिन्हा, सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय, डॉ जी नरेंद्र कुमार, महानिदेशक, एनआईआरडीपीआर, अलका उपाध्याय अपर सचिव ग्रामीण विकास मंत्रालय और अमित कटारिया संयुक्त सचिव (कौशल) ग्रामीण विकास मंत्रालय शामिल हुए.
पंडित दीन दयाल उपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नागेंद्र नाथ सिन्हा ने कहा कि उनका एकात्म मानववाद का दर्शन और अंत्योदय, अंतिम व्यक्ति का उदय इस घटना से गहराई से जुड़ा हुआ है. दिव्यांगजनों के लिए सही अवसर को देखते हुए, वे ऊंची उड़ान भर सकते हैं और यही हमारे दिव्यांग खिलाड़ियों ने 2021 के पैरालिंपिक में भारत और दुनिया के सामने प्रदर्शित किया.
सिन्हा ने हुनरबाज पुरस्कार विजेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उनका जीवन दूसरों के लिए एक मॉडल है. चुनौतियों का सामना कैसे करें और आत्मनिर्भर कैसे बनें. उन नियोक्ताओं के साथ एक गोल मेज आयोजित करने की इच्छा है जो वर्तमान में डीडीयू-जीकेवाई प्रशिक्षित उम्मीदवारों को नियुक्त कर रहे हैं और जो अपने कार्यबल में शामिल करने के लिए सक्रिय रूप से ड्राइव करते हैं. साथ ही उन राष्ट्रीय और बहु-राष्ट्रीय संगठनों के साथ जो विविधता और समावेश एजेंडा की दिशा में काम कर रहे हैं.
सिन्हा ने कहा कि इससे ग्रामीण भारत के दिव्यांगजन युवाओं के लिए डीडीयू-जीकेवाई और आरएसईटीआई के माध्यम से ऐसे संगठनों का उपयुक्त कौशल, प्लेसमेंट और संरक्षण प्राप्त करने के दायरे और विकल्पों का और विस्तार होगा.
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में डॉ जी नरेंद्र कुमार, महानिदेशक,एनआईआरडीपीआर ने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 69 फीसदी विकलांग व्यक्ति ग्रामीण भारत में हैं. अध्ययन साबित करते हैं कि विकलांग श्रमिकों की उत्पादकता दूसरों की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक है. साथ ही, विकलांग कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की दर दूसरों की तुलना में बहुत कम है. यह निश्चित रूप से नियोक्ताओं के लिए एक आकर्षक प्रस्ताव है.
महानिदेशक ने अधिक संभावनाओं का पता लगाने के लिए और दिव्यांगजन उम्मीदवारों के प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए स्किल काउंसिल के साथ संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला. इसमें लगे अलग-अलग विकलांग लोगों की पूर्व शिक्षा (आरपीएल) की मान्यता पर ध्यान केंद्रित किया.
डीडीयू-जीकेवाई कार्यक्रम में प्रशिक्षित और नियुक्त किए गए कई उम्मीदवारों की सफलता की कहानियों को याद करते हुए अलका उपाध्याय ने उल्लेख किया कि डीडीयू-जीकेवाई से जुड़े प्रत्येक उम्मीदवार की यात्रा एक और सफलता की कहानी है. डीडीयू-जीकेवाई को अन्य कौशल कार्यक्रमों से अलग तरीके से लागू किया गया है और इसमें मजबूत मानक संचालन प्रक्रियाएं हैं.
अमित कटारिया, संयुक्त सचिव (कौशल) ने इस अवसर पर बोलते हुए याद दिलाया कि प्रशिक्षण एजेंसियों और नियोक्ताओं दोनों को उन चुनौतियों के प्रति संवेदनशील और जागरूक होना चाहिए जो हमारे दिव्यांग युवाओं की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व पहुंच में बाधाओं के संदर्भ में हैं.
पीडब्ल्यूडी (दिव्यांग) युवाओं की आवश्यकताओं को मुख्यधारा में लाने के लिए एक अधिक सुसंगत, और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता है. मजबूत प्रक्रियाओं को स्थापित किया जाना है जिसमें वे कौशल पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं और अपने आत्मसम्मान को बरकरार रखने के लिए एक रास्ता खोजते हैं. इससे निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है.
उन्होंने कहा कि मंत्रालय का उद्देश्य समावेशिता को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना है जिसमें समाज के सभी वर्गों के युवा आगे आ सकें और भारत को दुनिया का 'कौशल हब' बनाने की इस प्रक्रिया में भाग ले सकें. उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल अपने लिए एक सफल करियर बनाने के लिए जीवन में चुनौतियों का सामना करने वाले उम्मीदवारों को सम्मानित करने का अवसर है, बल्कि दिव्यांगजन के प्रति मंत्रालय की प्रतिबद्धता को दोहराने का भी अवसर है.
पुरस्कार प्राप्त करने वाले कुछ उम्मीदवारों ने भी दर्शकों को संबोधित किया और अपनी जीवन यात्रा और कौशल प्रशिक्षण से उनके जीवन में आए अंतर के बारे में बताया. नियोक्ताओं और प्रशिक्षण भागीदारों ने भी उम्मीदवारों को कौशल और रोजगार देने के अपने अनुभवों को साझा किया और समावेश की यात्रा में नई दिशाओं का पता लगाने के लिए सुझाव भी दिए.
(आईएएनएस)