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मध्यप्रेदश : सरकार का एक साल, खर्च बेहिसाब, ले ना डूबे कर्ज का अर्थशास्त्र

वर्तमान शिवराज सरकार को एक साल पूरा हो गया है. जानकार मानते हैं कि इस एक साल में सरकार की माली हालत खस्ता है. अपने खर्चे चलाने के लिए सरकार ने भारी भरकम कर्ज ले लिया है.

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Published : Mar 25, 2021, 9:56 AM IST

shivraj singh chauhan
shivraj singh chauhan

भोपाल : प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सरकार भले ही तरक्की के तमाम दावे कर रही हो, लेकिन उसके आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं. मध्य प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार के खर्चों में कोई कटौती देखने को नहीं मिल रही है. इसका सीधा असर जनता पर पड़ना तय है.

ले ना डूबे कर्ज का अर्थशास्त्र

जनता की जेब पर होगा असर

पिछले साल कोरोना काल में राज्य की आय को झटका लगा था. माली हालत खराब हो गई थी. वैसे ही हालात अब भी बनते नजर आ रहे हैं. प्रदेश सरकार ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक पांच बार में करीब 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है. आर्थिक जानकारों का कहना है कि सरकार अपने राजनैतिक फायदे के लिए कर्ज ले रही है. जिसका सीधा असर जनता पर पड़ना तय है. भाजपा इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है. पार्टी का मानना है कि सरकार जरूरी खर्चे चलाने के लिए कर्ज ले रही है. कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश की भाजपा सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है.

हर व्यक्ति पर साढ़े तीन लाख से ज्यादा का कर्ज

आर्थिक मामलों के जानकार राजेंद्र कोठारी मानते हैं कि राजनैतिक फायदा तो हर सरकार उठाती है, चाहे वो किसी भी पार्टी की हो. सरकार को अपने आर्थिक तंत्र को भी देखना पड़ता है. वर्तमान में प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज के कारण हर व्यक्ति पर करीब साढ़े तीन लाख रुपए का बोझ आ चुका है. आगे भी ऐसा ही रहा तो गरीब-किसान और आम जनता की क्या हालत होगी. बड़ा सवाल ये है कि कर्ज का ये अर्थशास्त्र प्रदेश को कहां ले जाएगा. कोठारी का कहना है कि एक तरफ सरकार विज्ञापनों पर खर्च कर रही है, तो दूसरी ओर आम आदमी पर कर्ज थोपा जा रहा है.

'विकास के लिए कर्ज जरूरी'

भाजपा प्रवक्ता धैर्यवर्धन शर्मा कहते हैं कि लोन लेना विकासशील अर्थव्यवस्था की पहचान है. हर सरकार जन कल्याणकारी नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए हर साल लोन लेती है. कर्ज भी राज्य की क्षमता के हिसाब से ही मिलता है. कर्ज को नकारात्मक रूप में नहीं देखना चाहिए. ज्यादातर विकासशील अर्थव्यवस्था में लोन विकास के पहिए को स्पीड देता है.

कर्ज का अर्थशास्त्र
कर्ज का अर्थशास्त्र

'श्वेत पत्र लाए सरकार'

कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार दर्ज के दलदल में फंस चुकी है. प्रदेश सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए तक पैसे नहीं हैं. अपनी ब्रांडिंग करने के लिए सरकार प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार का खजाना खाली है. विकास कार्य रुके हुए हैं. नतीजा ये, कि जनता परेशान है. राज्य के आर्थिक हालात पर प्रदेश सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए.

पढ़ें :- पूर्व सीएम फडणवीस ने की गृह सचिव से मुलाकात, सौंपे अहम दस्तावेज

तीन महीने में 10 हजार करोड़ का कर्ज

राज्य सरकार जनवरी के बाद से अभी तक पांच बार में 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है. 17 फरवरी को राज्य सरकार ने 10 साल के लिए 3000 करोड़ का कर्ज लिया था. नौ फरवरी को राज्य सरकार ने तीन हजार करोड़ का कर्ज लिया था. ये कर्ज भी 10 साल के लिए लिया गया था. दो फरवरी को राज्य सरकार ने 2000 करोड़ का कर्ज लिया था. ये कर्ज सरकार ने 16 साल के लिए बाजार से लिया था. 25 जनवरी को राज्य सरकार ने 1000 करोड़ का कर्ज दिया था. ये कर्ज भी छह साल के लिए लिया गया था. 20 जनवरी को राज्य सरकार ने ओपन मार्केट से 1000 करोड़ का कर्ज लिया था. मार्च 2020 की स्थिति में देखा जाए तो मध्य प्रदेश सरकार पर 2 लाख 1989 करोड़ रुपए का कर्जा हो चुका है. मार्च 2020 के बाद से राज्य सरकार करीब 30 हजार करोड़ का कर्जा और ले चुकी है.

हालात बेकाबू ना हो जाएं

ये बात सही है कि विकास के पहिए को दौड़ाने के लिए अक्सर अर्थव्यवस्थाएं कर्ज लेती हैं. ये कर्ज भी एक सीमा तक ही झेला जा सकता है. इस बात के भी प्रमाण हैं कि कई बार कर्ज के बोझ तले अर्थ व्यवस्थाएं दम तोड़ देती हैं. शिवराज सरकार अगर कर्ज ले रही है, तो उसे चुकाना भी होगा. कर्ज चुकाने के लिए जेब आम जनता, किसान और कारोबारी की ही खाली होगी. कर्ज कहीं से भी, किसी भी मकसद के लिए लिया जाए. उसका भार तो जनता को ही उठाना होता है.

भोपाल : प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सरकार भले ही तरक्की के तमाम दावे कर रही हो, लेकिन उसके आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं. मध्य प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार के खर्चों में कोई कटौती देखने को नहीं मिल रही है. इसका सीधा असर जनता पर पड़ना तय है.

ले ना डूबे कर्ज का अर्थशास्त्र

जनता की जेब पर होगा असर

पिछले साल कोरोना काल में राज्य की आय को झटका लगा था. माली हालत खराब हो गई थी. वैसे ही हालात अब भी बनते नजर आ रहे हैं. प्रदेश सरकार ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक पांच बार में करीब 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है. आर्थिक जानकारों का कहना है कि सरकार अपने राजनैतिक फायदे के लिए कर्ज ले रही है. जिसका सीधा असर जनता पर पड़ना तय है. भाजपा इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है. पार्टी का मानना है कि सरकार जरूरी खर्चे चलाने के लिए कर्ज ले रही है. कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश की भाजपा सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है.

हर व्यक्ति पर साढ़े तीन लाख से ज्यादा का कर्ज

आर्थिक मामलों के जानकार राजेंद्र कोठारी मानते हैं कि राजनैतिक फायदा तो हर सरकार उठाती है, चाहे वो किसी भी पार्टी की हो. सरकार को अपने आर्थिक तंत्र को भी देखना पड़ता है. वर्तमान में प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज के कारण हर व्यक्ति पर करीब साढ़े तीन लाख रुपए का बोझ आ चुका है. आगे भी ऐसा ही रहा तो गरीब-किसान और आम जनता की क्या हालत होगी. बड़ा सवाल ये है कि कर्ज का ये अर्थशास्त्र प्रदेश को कहां ले जाएगा. कोठारी का कहना है कि एक तरफ सरकार विज्ञापनों पर खर्च कर रही है, तो दूसरी ओर आम आदमी पर कर्ज थोपा जा रहा है.

'विकास के लिए कर्ज जरूरी'

भाजपा प्रवक्ता धैर्यवर्धन शर्मा कहते हैं कि लोन लेना विकासशील अर्थव्यवस्था की पहचान है. हर सरकार जन कल्याणकारी नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए हर साल लोन लेती है. कर्ज भी राज्य की क्षमता के हिसाब से ही मिलता है. कर्ज को नकारात्मक रूप में नहीं देखना चाहिए. ज्यादातर विकासशील अर्थव्यवस्था में लोन विकास के पहिए को स्पीड देता है.

कर्ज का अर्थशास्त्र
कर्ज का अर्थशास्त्र

'श्वेत पत्र लाए सरकार'

कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार दर्ज के दलदल में फंस चुकी है. प्रदेश सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए तक पैसे नहीं हैं. अपनी ब्रांडिंग करने के लिए सरकार प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार का खजाना खाली है. विकास कार्य रुके हुए हैं. नतीजा ये, कि जनता परेशान है. राज्य के आर्थिक हालात पर प्रदेश सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए.

पढ़ें :- पूर्व सीएम फडणवीस ने की गृह सचिव से मुलाकात, सौंपे अहम दस्तावेज

तीन महीने में 10 हजार करोड़ का कर्ज

राज्य सरकार जनवरी के बाद से अभी तक पांच बार में 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है. 17 फरवरी को राज्य सरकार ने 10 साल के लिए 3000 करोड़ का कर्ज लिया था. नौ फरवरी को राज्य सरकार ने तीन हजार करोड़ का कर्ज लिया था. ये कर्ज भी 10 साल के लिए लिया गया था. दो फरवरी को राज्य सरकार ने 2000 करोड़ का कर्ज लिया था. ये कर्ज सरकार ने 16 साल के लिए बाजार से लिया था. 25 जनवरी को राज्य सरकार ने 1000 करोड़ का कर्ज दिया था. ये कर्ज भी छह साल के लिए लिया गया था. 20 जनवरी को राज्य सरकार ने ओपन मार्केट से 1000 करोड़ का कर्ज लिया था. मार्च 2020 की स्थिति में देखा जाए तो मध्य प्रदेश सरकार पर 2 लाख 1989 करोड़ रुपए का कर्जा हो चुका है. मार्च 2020 के बाद से राज्य सरकार करीब 30 हजार करोड़ का कर्जा और ले चुकी है.

हालात बेकाबू ना हो जाएं

ये बात सही है कि विकास के पहिए को दौड़ाने के लिए अक्सर अर्थव्यवस्थाएं कर्ज लेती हैं. ये कर्ज भी एक सीमा तक ही झेला जा सकता है. इस बात के भी प्रमाण हैं कि कई बार कर्ज के बोझ तले अर्थ व्यवस्थाएं दम तोड़ देती हैं. शिवराज सरकार अगर कर्ज ले रही है, तो उसे चुकाना भी होगा. कर्ज चुकाने के लिए जेब आम जनता, किसान और कारोबारी की ही खाली होगी. कर्ज कहीं से भी, किसी भी मकसद के लिए लिया जाए. उसका भार तो जनता को ही उठाना होता है.

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