ETV Bharat / bharat

पंजाब विधानसभा चुनाव : 'तुरुप का पत्ता' हो सकता है अकाली दल

पंजाब में किसकी सरकार बनेगी, इसका फैसला 10 मार्च को नतीजे आने के बाद ही पता चल पाएगा. लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि किसी एक दल या गठबंधन के लिए निर्णायक सीटें जीतना मुश्किल है. ऐसी स्थिति में अकाली दल तुरूप का पत्ता हो सकता है. पर, आप और कांग्रेस को कम आंकना कहीं से भी उचित नहीं होगा. एक विश्लेषण.

punjab election
डिजाइन फोटो पंजाब चुनाव
author img

By

Published : Feb 14, 2022, 8:17 PM IST

Updated : Feb 14, 2022, 8:48 PM IST

चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा में कुल 117 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए 59 का आंकड़ा चाहिए. जिस पार्टी या गठबंधन को यह आंकड़ा प्राप्त हो जाएगा, सरकार उसकी ही बनेगी. जाहिर है, किसकी सरकार बनेगी, यह तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा. लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी जरूर बन रहीं हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि फिर से कोई नया गठबंधन बन जाए.

दरअसल, पंजाब में मुख्य रूप से तीन पार्टियों की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, या आप गठबंधन का भी नाम दे सकते हैं. कांग्रेस अभी सत्ताधारी पार्टी है. जाहिर है वह तो सत्ता में लौटने का सपना देख ही रही है. शिरोमणि अकाली दल एक बार फिर से सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है. 2017 से ही वह सत्ता से दूर है. बसपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन किया है. वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी, जो इन दोनों ही पार्टियों के मुकाबले नई है, वह भी सरकार बनाने का दावा कर रही है. 2017 में भी आप को लेकर ऐसे ही दावे किए जा रहे थे, लेकिन पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. बाद में उनके कई विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी थी. इन तीनों से हटकर भाजपा गठबंधन की चर्चा बहुत अधिक नहीं हो रही है. इसने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस और अकाली दल के एक धड़े से समझौता किया है. आइए सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं.

बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए जब कैप्टन ने चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया, तो ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस की सरकार एक बार फिर से वापस आएगी. लेकिन 2021 में कई सारी ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुईं, जिसने इस आकलन को ध्वस्त कर दिया. अब हर पार्टी को अपनी जमीन तलाशनी पड़ रही है. कई सारे सिख चेहरे मैदान में आ गए हैं. भाजपा भी नए दलों के साथ गठबंधन में उतर आई. इस वक्त हर सीट पर बहुकोणीय मुकाबला की स्थिति दिख रही है.

ऐसी स्थिति में किसी एक दल की सरकार आसानी से बन जाएगी, इसकी संभावना बहुत क्षीण दिख रही है. हो सकता है चुनाव बाद कुछ नया समीकरण देखने को मिले. चुनाव से चार महीने पहले कांग्रेस ने एक मास्टर स्ट्रोक मारा था. पार्टी ने कैप्टन को हटाकर दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने की घोषणा कर दी. इतना ही नहीं पार्टी ने अब फिर से उनको ही जीत की स्थिति में सीएम बनाने का भी ऐलान कर दिया है. इस बीच अवैध खनन का मामला तूल पकड़ने लगा. इसलिए अभी यह कहना कि कांग्रेस आसानी से सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा प्राप्त कर लेगी, मुश्किल है. 2017 में कांग्रेस को 79 सीटें मिली थीं. पार्टी उम्मीद कर रही है कि चन्नी के चार महीने के कार्यकाल की बदौलत वह फिर से सत्ता में लौटेगी. अभी की स्थिति के अनुसार चुनाव बाद कांग्रेस किसी दल से गठबंधन करेगी, यह कहना कठिन है, शायद नहीं कहें तो ज्यादा बेहतर होगा.

अब बात अकाली और बसपा गठबंधन की करते हैं. किसान आंदोलन के दौरान किसान अकाली दल से नाराज थे. कई स्थानों पर अकाली नेताओं ने भी अपनी ही पार्टी का विरोध किया. विशेषज्ञों का कहना है कि 2017 के बाद खुखबीर सिंह बादल ने अपनी रणनीति बदल ली थी. वे उसी समय से जनता के बीच जाने लग गए थे. इसलिए पिछली बार के मुकाबले बादल की स्थिति अच्छी है. लेकिन उस हद तक अच्छी नहीं कही जा सकती है कि वे अकेले अपने दम पर सरकार बना लें.

2017 में आम आदमी पार्टी के पक्ष में हवा बताई जा रही थी. लेकिन पार्टी को सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिलीं. आप को विपक्षी दल का दर्जा जरूर मिल गया. लेकिन बाद में उनकी पार्टी के नौ विधायकों ने त्याग पत्र दे दिया. फिर से ऐसी कोई स्थिति न आ जाए, पार्टी ने इस बार भगवंत मान को सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. आप को मालवा क्षेत्र से सबसे अधिक उम्मीदें हैं. लेकिन मालवा में पार्टी अपना पताका लहरा ले, फिर भी अगर उसे दोआबा और माझा में भी अच्छी संख्या में सीटें नहीं मिलती हैं, तो उसे 59 सीटें नहीं मिलेंगी. क्योंकि खुद मालवा की आधी सीटों पर बहुकोणीय मुकाबला है. यह किसी को पता नहीं है कि ऊंट किस करवट बैठेगा. और चुनाव बाद पार्टी का किसी दल से गठबंधन होगा, इसकी उम्मीदें नहीं के बराबर हैं. अब भाजपा की स्थिति देख लीजिए.

भाजपा ने अकाली दल से गठबंधन तोड़ लिया है. किसान आंदोलन की वजह से पार्टी ने लोगों के बीच सहानुभूति खो दी है. खासकर ग्रामीण इलाकों में. हालांकि, पार्टी ने कई सिख नेताओं को विश्वास में जरूर लिया है. शहरी इलाकों में पार्टी को स्वीकार्यता मिल रही है. पंजाब लोक कांग्रेस के नेता कैप्टन का भी उन्हें साथ मिल गया. लेकिन माना जा रहा है कि पंजाब लोक कांग्रेस को बहुत अधिक सफलता नहीं मिलेगी, इसके बजाए पार्टी कांग्रेस का कई सीटों पर खेल जरूर बिगाड़ सकती है. इन दोनों दलों का सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी के साथ भी गठबंधन है. ढींढसा सिख विचारधारा वालों के बीच अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. फिर भी यह गठबंधन सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटों से काफी पीछे दिख रहा है.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि पंजाब में किसकी सरकार बनेगी. क्या यहां पर हंग अंसेबली की स्थिति बनती नजर आ रही है. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि ऐसी स्थिति में अकाली दल की स्थिति सबसे अधिक अच्छी होगी, बशर्ते पार्टी को अच्छी खासी सीटें मिल जाए. बहुत संभव है कि अकाली दल फिर से भाजपा के साथ हो जाए. वह उनकी पुरानी साझीदार रह चुकी है. कैप्टन और ढींढसा दोनों को इस पर कोई आपत्ति भी नहीं होगी. बल्कि यह कहें कि अभी से इसके संकेत मिलने लगे हैं, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी.

सूत्र बताते हैं कि हरसिमरत कौर बादल ने भाजपा से बातचीत करके ही भाजपा गठबंधन से नाता तोड़ा था. उनका त्याग पत्र गेम प्लान का हिस्सा था. बादल परिवार और भाजपा के बीच लंबे समय से नजदीक का रिश्ता रहा है. पिछले साल पीएम मोदी ने प्रकाश सिंह बादल के जन्म दिन पर फोन करके बधाई दी थी. इसलिए जाहिर है चुनाव बाद अगर स्थिति ऐसी बनती है, तो दोनों दल फिर से एक बार साथ हो सकते हैं.

एक और फैक्टर है, जो पीएम मोदी के हक में जाएगा, वह है गुरू गोविंद सिंह के छोटे बेटे की शहादत को बाल वीर दिवस के रूप में मनाने का ऐलान. इसकी घोषणा के बाद मुंबई से दमदमी टकसाल के प्रमुख भाई हरनाम सिंह खालसा ने पीएम मोदी की तारीफ की थी. इसके अलावा दिल्ली के प्रमुख सिख नेता मंजिंदर सिंह सिरसा भी अब भाजपा के सदस्य हो चुके हैं. इसलिए भाजपा को अकाली के साथ आने में कई समस्या नहीं होगी.

ये भी पढ़ें : कैप्टन अमरिंदर की बातों पर पीएम मोदी के ठहाके, याद दिलाए 30 साल पुराने दिन

चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा में कुल 117 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए 59 का आंकड़ा चाहिए. जिस पार्टी या गठबंधन को यह आंकड़ा प्राप्त हो जाएगा, सरकार उसकी ही बनेगी. जाहिर है, किसकी सरकार बनेगी, यह तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा. लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी जरूर बन रहीं हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि फिर से कोई नया गठबंधन बन जाए.

दरअसल, पंजाब में मुख्य रूप से तीन पार्टियों की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, या आप गठबंधन का भी नाम दे सकते हैं. कांग्रेस अभी सत्ताधारी पार्टी है. जाहिर है वह तो सत्ता में लौटने का सपना देख ही रही है. शिरोमणि अकाली दल एक बार फिर से सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है. 2017 से ही वह सत्ता से दूर है. बसपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन किया है. वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी, जो इन दोनों ही पार्टियों के मुकाबले नई है, वह भी सरकार बनाने का दावा कर रही है. 2017 में भी आप को लेकर ऐसे ही दावे किए जा रहे थे, लेकिन पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. बाद में उनके कई विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी थी. इन तीनों से हटकर भाजपा गठबंधन की चर्चा बहुत अधिक नहीं हो रही है. इसने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस और अकाली दल के एक धड़े से समझौता किया है. आइए सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं.

बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए जब कैप्टन ने चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया, तो ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस की सरकार एक बार फिर से वापस आएगी. लेकिन 2021 में कई सारी ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुईं, जिसने इस आकलन को ध्वस्त कर दिया. अब हर पार्टी को अपनी जमीन तलाशनी पड़ रही है. कई सारे सिख चेहरे मैदान में आ गए हैं. भाजपा भी नए दलों के साथ गठबंधन में उतर आई. इस वक्त हर सीट पर बहुकोणीय मुकाबला की स्थिति दिख रही है.

ऐसी स्थिति में किसी एक दल की सरकार आसानी से बन जाएगी, इसकी संभावना बहुत क्षीण दिख रही है. हो सकता है चुनाव बाद कुछ नया समीकरण देखने को मिले. चुनाव से चार महीने पहले कांग्रेस ने एक मास्टर स्ट्रोक मारा था. पार्टी ने कैप्टन को हटाकर दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने की घोषणा कर दी. इतना ही नहीं पार्टी ने अब फिर से उनको ही जीत की स्थिति में सीएम बनाने का भी ऐलान कर दिया है. इस बीच अवैध खनन का मामला तूल पकड़ने लगा. इसलिए अभी यह कहना कि कांग्रेस आसानी से सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा प्राप्त कर लेगी, मुश्किल है. 2017 में कांग्रेस को 79 सीटें मिली थीं. पार्टी उम्मीद कर रही है कि चन्नी के चार महीने के कार्यकाल की बदौलत वह फिर से सत्ता में लौटेगी. अभी की स्थिति के अनुसार चुनाव बाद कांग्रेस किसी दल से गठबंधन करेगी, यह कहना कठिन है, शायद नहीं कहें तो ज्यादा बेहतर होगा.

अब बात अकाली और बसपा गठबंधन की करते हैं. किसान आंदोलन के दौरान किसान अकाली दल से नाराज थे. कई स्थानों पर अकाली नेताओं ने भी अपनी ही पार्टी का विरोध किया. विशेषज्ञों का कहना है कि 2017 के बाद खुखबीर सिंह बादल ने अपनी रणनीति बदल ली थी. वे उसी समय से जनता के बीच जाने लग गए थे. इसलिए पिछली बार के मुकाबले बादल की स्थिति अच्छी है. लेकिन उस हद तक अच्छी नहीं कही जा सकती है कि वे अकेले अपने दम पर सरकार बना लें.

2017 में आम आदमी पार्टी के पक्ष में हवा बताई जा रही थी. लेकिन पार्टी को सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिलीं. आप को विपक्षी दल का दर्जा जरूर मिल गया. लेकिन बाद में उनकी पार्टी के नौ विधायकों ने त्याग पत्र दे दिया. फिर से ऐसी कोई स्थिति न आ जाए, पार्टी ने इस बार भगवंत मान को सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. आप को मालवा क्षेत्र से सबसे अधिक उम्मीदें हैं. लेकिन मालवा में पार्टी अपना पताका लहरा ले, फिर भी अगर उसे दोआबा और माझा में भी अच्छी संख्या में सीटें नहीं मिलती हैं, तो उसे 59 सीटें नहीं मिलेंगी. क्योंकि खुद मालवा की आधी सीटों पर बहुकोणीय मुकाबला है. यह किसी को पता नहीं है कि ऊंट किस करवट बैठेगा. और चुनाव बाद पार्टी का किसी दल से गठबंधन होगा, इसकी उम्मीदें नहीं के बराबर हैं. अब भाजपा की स्थिति देख लीजिए.

भाजपा ने अकाली दल से गठबंधन तोड़ लिया है. किसान आंदोलन की वजह से पार्टी ने लोगों के बीच सहानुभूति खो दी है. खासकर ग्रामीण इलाकों में. हालांकि, पार्टी ने कई सिख नेताओं को विश्वास में जरूर लिया है. शहरी इलाकों में पार्टी को स्वीकार्यता मिल रही है. पंजाब लोक कांग्रेस के नेता कैप्टन का भी उन्हें साथ मिल गया. लेकिन माना जा रहा है कि पंजाब लोक कांग्रेस को बहुत अधिक सफलता नहीं मिलेगी, इसके बजाए पार्टी कांग्रेस का कई सीटों पर खेल जरूर बिगाड़ सकती है. इन दोनों दलों का सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी के साथ भी गठबंधन है. ढींढसा सिख विचारधारा वालों के बीच अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. फिर भी यह गठबंधन सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटों से काफी पीछे दिख रहा है.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि पंजाब में किसकी सरकार बनेगी. क्या यहां पर हंग अंसेबली की स्थिति बनती नजर आ रही है. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि ऐसी स्थिति में अकाली दल की स्थिति सबसे अधिक अच्छी होगी, बशर्ते पार्टी को अच्छी खासी सीटें मिल जाए. बहुत संभव है कि अकाली दल फिर से भाजपा के साथ हो जाए. वह उनकी पुरानी साझीदार रह चुकी है. कैप्टन और ढींढसा दोनों को इस पर कोई आपत्ति भी नहीं होगी. बल्कि यह कहें कि अभी से इसके संकेत मिलने लगे हैं, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी.

सूत्र बताते हैं कि हरसिमरत कौर बादल ने भाजपा से बातचीत करके ही भाजपा गठबंधन से नाता तोड़ा था. उनका त्याग पत्र गेम प्लान का हिस्सा था. बादल परिवार और भाजपा के बीच लंबे समय से नजदीक का रिश्ता रहा है. पिछले साल पीएम मोदी ने प्रकाश सिंह बादल के जन्म दिन पर फोन करके बधाई दी थी. इसलिए जाहिर है चुनाव बाद अगर स्थिति ऐसी बनती है, तो दोनों दल फिर से एक बार साथ हो सकते हैं.

एक और फैक्टर है, जो पीएम मोदी के हक में जाएगा, वह है गुरू गोविंद सिंह के छोटे बेटे की शहादत को बाल वीर दिवस के रूप में मनाने का ऐलान. इसकी घोषणा के बाद मुंबई से दमदमी टकसाल के प्रमुख भाई हरनाम सिंह खालसा ने पीएम मोदी की तारीफ की थी. इसके अलावा दिल्ली के प्रमुख सिख नेता मंजिंदर सिंह सिरसा भी अब भाजपा के सदस्य हो चुके हैं. इसलिए भाजपा को अकाली के साथ आने में कई समस्या नहीं होगी.

ये भी पढ़ें : कैप्टन अमरिंदर की बातों पर पीएम मोदी के ठहाके, याद दिलाए 30 साल पुराने दिन

Last Updated : Feb 14, 2022, 8:48 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.