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अस्पतालों को अभी अग्नि परीक्षा पास करनी है

महाराष्ट्र के भंडारा जिला अस्पताल में आग की घटना ने सभी को झकझोर दिया. 3 महीने से कम 10 बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी, लेकिन अभी भी कई अस्पताल सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं.

hospitals yet to pass the test of fire
अस्पतालों में नहीं है सुरक्षा के खास इंतजाम
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Published : Jan 11, 2021, 6:56 PM IST

हैदराबाद : महाराष्ट्र का भंडारा जिला अस्पताल दिल दहला देने वाली त्रासदी का गवाह था. पिछले शनिवार को भंडारा अस्पताल के नवजात देखभाल इकाई में इतनी भयंकर आग लगी कि देखते-देखते 3 महीने से कम उम्र के 10 शिशुओं की मौत हो गई. मौके पर पहुंची फायर ब्रिगेड ने किसी तरह 7 शिशुओं की जान बचाई. बीमारी के कारण पहले से अस्पताल में भर्ती कराए गए शिशुओं की मौत से बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है.

भंडारा जिला अस्पताल में आग की इस घटना ने सितंबर के महीने में कोल्हापुर के सरकारी अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में आग से तीन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों की मौत की याद दिला दी. इसी तरह अगस्त में अहमदाबाद के श्रेया अस्पताल के कोरोना आईसीयू वार्ड में आग लगने से आठ लोगों की मौत हो गई थी. इसी अवधि के आसपास विजयवाड़ा के स्वर्ण महल में आग लगने से दस लोगों की जान चली गई थी. इसके अलावा नवंबर के अंतिम सप्ताह में गुजरात के कोविड केयर सेंटर में भी पांच लोगों की मौत हो गई थी.

देश की सर्वोच्च अदालत ने जताई चिंता

देश के अस्पतालों की दयनीय स्थितियों पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी अस्पतालों की सुरक्षा ऑडिट करने का आदेश दिया था. अदालत ने कोविड-19 देखभाल केंद्रों में अग्नि सुरक्षा का ऑडिट करने के लिए प्रत्येक अस्पताल के लिए एक विशेष जिला समिति और एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने को कहा था. मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि सैकड़ों अस्पताल बिना आग विभाग से मंजूरी के चल रहे हैं. वहीं, अस्पताल के सुरक्षा मानदंडों और जवाबदेही की कमी के चलते अस्पतालों द्वारा आग से खेलने के कारण कई जीवन खो रहे हैं.

10 हजार से ज्यादा लोगों की गई जान

NCRB के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में देश में 11,037 आग दुर्घटनाएं हुईं. जिसमें 10,915 लोगों की जान चली गई. उन्नत देश जागरूकता फैलाने के माध्यम से और प्रौद्योगिकी के समर्थन से आग की दुर्घटनाओं को रोकने में सक्षम हैं. हमारे देश में अग्निशमन सेवाएं अपने प्रदर्शन में भयावह बनी हुई हैं. आग से बचाव के नियमों का कड़ाई से पालन करने की प्रतिबद्धता की कमी के कारण अस्पताल मौत का शिकार बन रहे हैं. 2010 और 2019 के बीच दस वर्षों की अवधि में, देश भर के 33 अस्पतालों में आग दुर्घटनाएं हुईं. 2011 में दक्षिण कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में हुए अग्नि हादसे में 95 लोगों की मौत हो गई थी. 2016 में भुवनेश्वर के सैम अस्पताल में शॉर्ट सर्किट के कारण लगी आग से 23 लोगों की मौत हो गई थी.

पढ़ें: सांस रोकने से कोविड 19 संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है: आईआईटी मद्रास

वर्ष 2014 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे कि अस्पतालों में आग की दुर्घटनाओं को कैसे रोका जाए. संगठन ने निर्धारित किया था कि मरीजों को केवल आपातस्थिति में ही निकाला जाना चाहिए और ध्यान हमेशा आग को रोकने पर होना चाहिए. धुआं डिटेक्टरों और जल छिड़काव आग दुर्घटनाओं को रोकने के लिए बुनियादी आवश्यकताएं हैं. भंडारा जिला सामान्य अस्पताल में इन बुनियादी सुविधाओं की भी कमी थी. यदि इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति को रोकना है, तो सभी अस्पतालों को व्यापक अग्नि निवारण तंत्र की स्थापना करके अग्नि परीक्षा देना चाहिए. अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा केवल तभी संभव है जब वे अपने उपयोग पर अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के अलावा नवीनतम तकनीकी गैजेट्स को अपनाएं.

हैदराबाद : महाराष्ट्र का भंडारा जिला अस्पताल दिल दहला देने वाली त्रासदी का गवाह था. पिछले शनिवार को भंडारा अस्पताल के नवजात देखभाल इकाई में इतनी भयंकर आग लगी कि देखते-देखते 3 महीने से कम उम्र के 10 शिशुओं की मौत हो गई. मौके पर पहुंची फायर ब्रिगेड ने किसी तरह 7 शिशुओं की जान बचाई. बीमारी के कारण पहले से अस्पताल में भर्ती कराए गए शिशुओं की मौत से बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है.

भंडारा जिला अस्पताल में आग की इस घटना ने सितंबर के महीने में कोल्हापुर के सरकारी अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में आग से तीन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों की मौत की याद दिला दी. इसी तरह अगस्त में अहमदाबाद के श्रेया अस्पताल के कोरोना आईसीयू वार्ड में आग लगने से आठ लोगों की मौत हो गई थी. इसी अवधि के आसपास विजयवाड़ा के स्वर्ण महल में आग लगने से दस लोगों की जान चली गई थी. इसके अलावा नवंबर के अंतिम सप्ताह में गुजरात के कोविड केयर सेंटर में भी पांच लोगों की मौत हो गई थी.

देश की सर्वोच्च अदालत ने जताई चिंता

देश के अस्पतालों की दयनीय स्थितियों पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी अस्पतालों की सुरक्षा ऑडिट करने का आदेश दिया था. अदालत ने कोविड-19 देखभाल केंद्रों में अग्नि सुरक्षा का ऑडिट करने के लिए प्रत्येक अस्पताल के लिए एक विशेष जिला समिति और एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने को कहा था. मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि सैकड़ों अस्पताल बिना आग विभाग से मंजूरी के चल रहे हैं. वहीं, अस्पताल के सुरक्षा मानदंडों और जवाबदेही की कमी के चलते अस्पतालों द्वारा आग से खेलने के कारण कई जीवन खो रहे हैं.

10 हजार से ज्यादा लोगों की गई जान

NCRB के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में देश में 11,037 आग दुर्घटनाएं हुईं. जिसमें 10,915 लोगों की जान चली गई. उन्नत देश जागरूकता फैलाने के माध्यम से और प्रौद्योगिकी के समर्थन से आग की दुर्घटनाओं को रोकने में सक्षम हैं. हमारे देश में अग्निशमन सेवाएं अपने प्रदर्शन में भयावह बनी हुई हैं. आग से बचाव के नियमों का कड़ाई से पालन करने की प्रतिबद्धता की कमी के कारण अस्पताल मौत का शिकार बन रहे हैं. 2010 और 2019 के बीच दस वर्षों की अवधि में, देश भर के 33 अस्पतालों में आग दुर्घटनाएं हुईं. 2011 में दक्षिण कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में हुए अग्नि हादसे में 95 लोगों की मौत हो गई थी. 2016 में भुवनेश्वर के सैम अस्पताल में शॉर्ट सर्किट के कारण लगी आग से 23 लोगों की मौत हो गई थी.

पढ़ें: सांस रोकने से कोविड 19 संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है: आईआईटी मद्रास

वर्ष 2014 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे कि अस्पतालों में आग की दुर्घटनाओं को कैसे रोका जाए. संगठन ने निर्धारित किया था कि मरीजों को केवल आपातस्थिति में ही निकाला जाना चाहिए और ध्यान हमेशा आग को रोकने पर होना चाहिए. धुआं डिटेक्टरों और जल छिड़काव आग दुर्घटनाओं को रोकने के लिए बुनियादी आवश्यकताएं हैं. भंडारा जिला सामान्य अस्पताल में इन बुनियादी सुविधाओं की भी कमी थी. यदि इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति को रोकना है, तो सभी अस्पतालों को व्यापक अग्नि निवारण तंत्र की स्थापना करके अग्नि परीक्षा देना चाहिए. अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा केवल तभी संभव है जब वे अपने उपयोग पर अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के अलावा नवीनतम तकनीकी गैजेट्स को अपनाएं.

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