वाराणसी : पूरी दुनिया रंगों के साथ अबीर और गुलाल से होली खेलते हैं लेकिन, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में होली एक अद्भुत तरीके से मनाई जाती है. यहां होली रंग-गुलाल से नहीं बल्कि जलती चिताओं के राख यानी चिता भस्म से होली खेली जाती है. इस होली को महाश्मशान की होली कहते हैं.
चिता भस्म से खेली जाने वाली ये अद्भुत होली फाल्गुन मास के शुक्ल की द्वादशी के दिन मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि महाश्मशान की होली में भगवान भोलेनाथ अपने औघड़ रूप में काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेलने आते हैं.
काशी के महाश्मशान पर जब औघड़नाथ की ये अद्वितीय और अद्भुत होली में होती है तो, उस वक्त यहां चारो तरफ जलती चिताओं के बीच डमरू और घंटे घड़ियालों की आवाज गूंज रही होती है. पूरा वातावारण हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान हो जाता है.
इस होली के दौरान महाश्मशान पर बनारसी ठंडाई, पान और भांग के साथ बनारसियों की अल्हड़ मस्ती और आपसी सौहार्द देखने को मिलता है. ऐसा लगता है कि मानो स्वयं महादेव महाश्मशान में होली खेलने के लिए आए हैं.
350 साल पुरानी है यह परंपरा
महाश्मशाननाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि, रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म से खेली जाने वाली होली के परंपरा लगभग 350 साल पुरानी है. फाल्गुन शुक्ल एकादशी पर बाबा विश्वनाथ माता गौरी को विदा कराकर लेकर आते हैं, इस मौके पर रंग उत्सव मनाया जाता है और उसके अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली खेली जाती हैं. इस बार यह होली 25 मार्च को खेली जाएगी.
बाबा के मध्यान्ह स्नान के बाद शुरू होता है महोत्सव
मान्यता के मुताबिक बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं. इनके स्नान के बाद सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वह पुण्य बांटते हैं. अंत में बाबा महाश्मशाननाथ स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महाश्मशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है.
महादेव के प्रिय भक्त महोत्सव में होते हैं शामिल
महाश्मशाननाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि इस उत्सव में बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है, वे बाबा सभी के संग होली खेलते हैं. इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं.
इसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग काशी आते हैं. यहां आने वाला हर श्रद्धालु इस अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय होली महोत्सव में शामिल होने के बाद खुद को अलौकिक शक्तियों के बीच खड़ा महसूस करता है. जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा भोलेनाथ को आत्मसार्थ करते है.
मां मसान काली और महाश्मशाननाथ की होती है पूजा
गुलशन कपूर ने बताया कि मणिकर्णिका घाट पर महादेव माता मसान काली के साथ विराजमान है और यहां पर जिनका भी शवदाह होता है उन्हें मां गौरी अपने हाथों में लेती हैं और महादेव उनके कानों में तारक मंत्र देते हैं. जिससे उन मृत आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वह अन्य कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि मसान होली के दिन सबसे पहले बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली के साथ शिव शक्ति की मध्याह्न आरती होती है. इसके बाद बाबा महाश्मशान और और माता मसान काली को चिता भस्म और गुलाल चढ़ाई जाती है. उसके बाद भक्तों के लिए महाश्मशान पर होली की होली शुरू होती है. इस दौरान पूरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल चिता भस्म से भर जाता है.
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ब्रज और काशी की होली में ये है अंतर
बुद्धिजीवियों की माने तो ब्रज व काशी की होली एक बड़ा अंतर माना जाता है. ब्रज की होली भगवान कृष्ण गोप-गोपियों राधा के संग खेलते हैं. उसमें रंग और पिचकारी का प्रयोग होता है, जबकि काशी में भगवान शिव की होली में न वस्त्र होता है ना पिचकारी, न ही कोई और सामग्री. त्रिपुरारी अपने भूत, पिशाच और गणों संग होली खेलते हैं. इस होली में सभी लोग शामिल होते हैं, परंतु महिलाओं और नवविवाहित जोड़ों को महाश्मशाननाथ की इस होली में शामिल होने की मनाही है.