कन्नूर : कन्नूर (Kannur) में कोट्टियूर इरिट्टी (Kottiyur Iritti) के रहने वाले भाई-बहन लगभग 15 साल पहले, जब वे बच्चे थे तब उन्हें एचआईवी एड्स (HIV AIDS) हो गया था. जिसके बाद समाज में इन भाई-बहनों का बहिष्कार किया जाने लगा. जब स्कूल में पढ़ने वाले अन्य बच्चों के माता-पिता ने इन भाई-बहनों को स्कूल में प्रवेश देने के विरोध में स्कूल में धरना दिया तब यह दृश्य काफी हृदय विदारक था. तब से सभी चुनौतियों और प्रतिकूलताओं को झेलते हुए दोनों ने किसी तरह अब अपनी स्नातक की डिग्री हासिल कर ली है. हालांकि, उनकी बीमारी अभी भी नौकरी के रास्ते में आड़े आ रही है. जिसे लेकर वे केरल सरकार (Kerala Government) और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन (Chief Minister Pinarayi Vijayan) से मदद की गुहार लगाई है.
बहन बीएससी साइकोलॉजी (BSc Psychology) में ग्रेजुएट हैं और भाई ने कॉमर्स में ग्रेजुएशन पूरा किया है. उनकी एक बड़ी बहन भी हैं, जिसने 2017 में बायोटेक्नोलॉजी (Biotechnology) में एम टेक पूरा किया है. एक इंटरव्यू के बाद वह एर्नाकुलम (Ernakulam) में एक प्राइवेट कंपनी के लिए चुनी गई, लेकिन इसके बाद उसे नौकरी नहीं दी गई. कई अन्य कंपनियों के साथ भी उनके अनुभव समान थे. आखिरकार, पिछले साल, उसने पीएससी और बैंक कोचिंग के लिए जाना शुरू कर दिया. उनकी मां कहती हैं कि परिवार कई सालों से नेक दिल लोगों के सहारे रह रहा है, क्योंकि उनमें से कोई भी काम पर नहीं जा सका है. इसके बाद वह सुरक्षित नौकरियों के बिना नहीं रह सकते.
अभिनेता सुरेश गोपी ने की बड़ी मदद
जानकारी के अनुसार दोनों भाई-बहन कोट्टियूर के अंबालाक्कुन्नू कोट्टमचिरा (Ambalakkunnu Kottamchira) के रहने वाले हैं. इनकी मां को यह बीमारी अपने पति से हुई थी. उसके माध्यम से, बड़ी बेटी को छोड़कर उनके दो बच्चे एचआईवी पॉजिटिव पाए गए. लेकिन जब समाज में कई लोगों ने उनका बहिष्कार किया, तब कुछ नेक दिल इंसान उनके साथ खड़े थे. अभिनेता सुरेश गोपी का हस्तक्षेप तब एक ऐसी घटना थी जिसने मीडिया का ध्यान खींचा था. बाद के अभियान ऐसे थे जैसे अभिनेता ने परिवार को गोद ले लिया हो. हालांकि, पीड़ित बहन स्पष्ट करती हैं कि यह सच नहीं था. उसका कहना है कि कुछ मदद के अलावा, हमारा जीवन अकेला और कलंकित था.
नौकरी की दरकार
जब तक उनमें से किसी एक को सुरक्षित नौकरी नहीं मिल जाती, इस परिवार का भविष्य उनके सामने एक प्रश्न चिह्न बना रहेगा. यह सहानुभूति नहीं है, जिसकी उन्हें आवश्यकता है, बल्कि उनके जीवन को बनाए रखने के लिए एक सुरक्षित नौकरी है. यह हमारे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस परिवार का इस तरह ख्याल रखा जाए कि उन्हें अब किसी की मदद नहीं लेनी पड़े. जिन अधिकारियों ने अब तक परिवार पर दया नहीं की है, उन्हें कम से कम इन बच्चों के सामने नए दरवाजे खोलने चाहिए, ताकि वे किसी और की तरह जीवन जी सकें.
पढ़ेंः सलाद के लिए जल्लाद बना शराबी... पत्नी-बेटे पर फावड़े से किया हमला, पत्नी की मौत