नई दिल्ली : कोरोना वायरस से फैली महामारी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य जैसा की प्रधानमंत्री ने कहा था, आपदा को अवसर में बदलना है. भारत और चीन के बीच व्याप्त तनाव को देखते हुए यह सुरक्षा के क्षेत्र में सटीक बैठता है.
प्रतिष्ठित स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, भारत सऊदी अरब के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शस्त्र आयातक है. इसमें राफेल लड़ाकू विमान जैसे प्रमुख सैन्य प्लेटफार्मों से लेकर पैदल सेना के बुनियादी हथियार तक शामिल हैं. भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद रक्षा पर दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश है.
इसका कारण साफ है. भारत के पश्चिम में पाकिस्तान है और पूर्व में चीन. दोनों ही देशों को भारत का विश्व पटल पर खुद को स्थापित करते देखना हजम नहीं हो रहा है. इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को आवश्यकता के रूप में स्वीकार किया जा रहा है.
इसी को ध्यान में रखते हुए बजट 2021-22 में नए उपकरण और प्लेटफार्म खरीदने के बजट को दो भागों में बांटा गया है. इसमें घरेलू और विदेशी खरीद शामिल है. बजट में घरेलू रक्षा खरीद के लिए 70,221 करोड़ रुपये की एक बड़ी राशि निर्धारित की गई है.
इससे विशेष रूप से छोटे व मध्यम उद्यमों और स्टार्ट-अप को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. इसके परिणामस्वरूप रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.
कुछ महत्वपूर्ण कदम
भारत सरकार द्वारा इस दिशा में कई अन्य महत्वपूर्ण उपायों की घोषणा की गई है. जैसे एक 'निगेटिव लिस्ट' बनाना. इस सूची में रक्षा से संबंधित वह 101 महत्वपूर्ण वस्तुएं हैं, जिनके आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है. इसी तरह एक और सूची सरकार जल्द लेकर आएगी. इससे स्थानीय उद्योग एक समय सीमा के भीतर विनिर्माण चुनौती लेने के लिए मजबूर होंगे.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट करके बताया कि इस सूची में आर्टिलरी गन, असॉल्ट राइफलें, कोरवेट, सोनार सिस्टम और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट जैसे उच्च तकनीक के हथियार सिस्टम शामिल हैं.
केंद्र सरकार ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ 48,000 करोड़ रुपये का सौदा किया है. इसके तहत एचएएल 83 स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट एमके 1 ए तेजस बनाकर देगी. इसी तरह का एक और सौदा लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर के लिए भी हो सकता है.
छोटे और मझोले उद्यमों और स्टार्ट-अप्स के लिए 10,000 करोड़ रुपये के कोष का प्रावधान किया गया है. इसके तहत नियमों को आसान बनाया गया है, ताकि स्वदेशी विकास और रक्षा उपकरणों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जा सके.
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चिन्हित किए गए भविष्य/नई प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए डीआरडीओ के आठ उन्नत प्रौद्योगिकी केंद्रों की स्थापना करने की योजना बनाई गई है.
भारत में विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) को प्रोत्साहित करते हुए, घरेलू रक्षा क्षेत्र के साथ संयुक्त उद्यम विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है. रक्षा उत्पादन और निर्यात प्रोत्साहन नीति (डीपीईपीपी 2020) और रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 (डीएपी) में आत्मनिर्भरता एक महत्वपूर्ण विषय है.
कहना आसान पर करना मुश्किल
रक्षा में 'आत्मानिर्भर' मॉडल रक्षा मंत्रालय, सशस्त्र बलों और स्वदेशी रक्षा-आधारित उद्योगों के बीच संबंधों पर आधारित है. हालांकि, वर्तमान में यह बहुत गहरे नहीं हैं.
रक्षा उद्योग और सरकार के बीच जैसे संबंध अमेरिका और पश्चिम यूरोप में हैं, वह भारत में नहीं हैं. उस तरह के संबंधों को विकसित होने में समय लगेगा.
पाकिस्तान और चीन के साथ बीते कुछ वर्षों में भारत के संबंध खराब ही हुए हैं. ऐसे में भारत को दो मोर्चों पर एक साथ लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए. इसको ध्यान में रखते हुए भारत के रक्षा क्षेत्र की आवश्यक्ताएं अति आवश्यक होंगी.
चूंकि स्वदेशी उद्योग को विकसित होने के लिए कम से कम एक निश्चित अवधि का समय लगेगा, परियोजना की सफलता के बारे में बात करना, तो दूर की बात है. इस स्थिति में सैन्य जरूरतों को कैसे पूरा किया जाएगा यह एक महत्वपूर्ण सवाल है.
एक तरफ भारत आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहा है और दूसरी तरफ रक्षा क्षेत्र में एफडीआई को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है. सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम संशय पैदा करता है.
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अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकी विकसित करने में तमाम तरह की बाधाएं हैं. हालांकि, ऐसा देश जिसके रक्षा निर्यात में 2015 से 2019 के बीच लगभग 700 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, वहां आत्मनिर्भरता को हासिल करना मुश्किल, तो है पर नामुमकिन नहीं.