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Hingot Yudh 2023: इंदौर में कलंगी और तुर्रा के बीच हुआ 'अग्नियुद्ध', एक-दूसरे पर बरसाए हिंगोट, 35 लोग घायल

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 13, 2023, 10:42 PM IST

200 साल से ज्यादा की परंपरा का सोमवार को इंदौर के गौतमपुरा में निर्वहन किया गया. इंदौर में तुर्रा और कलंगी के बीच हिंगोट युद्ध खेला गया. इस युद्ध में लोगों ने एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट छोड़े. इस युद्ध में कई लोग घायल भी हुए हैं.

Hingot Yudh 2023
हिंगोट युद्ध 2023
इंदौर में हुआ हिंगोट युद्ध

इंदौर। दीपावली पर देश भर में उत्सव के साथ तमाम तरह की परंपराएं भी जुड़ी हुई है. सदियों से जिनका पालन लोग करते आ रहे हैं. इंदौर के गौतमपुरा में ऐसी ही एक परंपरा है, हिंगोट युद्ध. जिसमें दो गांव की टीम एक दूसरे पर हिंगोट नमक फल से तैयार होने वाले अग्निबाण का उपयोग करती है. जिसमें कई लोग हर साल घायल भी हो जाते हैं. सालों की इस परंपरा के मुताबिक आज फिर गौतमपुरा में पूरे जोश और उत्साह के साथ हिंगोट युद्ध खेला गया. जिसमें दोनों टीमों के करीब 35 लोग घायल भी हुए. जिनमें से एक को इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया है.

तुर्रा और कलंगी के बीच हुआ युद्ध: दरअसल, मान्यता है कि इंदौर के गौतमपुरा में हर साल यहां के देवनारायण मंदिर के सामने तुर्रा और कलंगी नमक दो टीमों के बीच अग्नि अस्त्रों से एक दूसरे पर हमला करने का हिंगोट युद्ध होता है. यह दोनों ही दल दीपावली के अगले दिन यहां के देवनारायण मंदिर के सामने स्थित मैदान में पारंपरिक पूजा के बाद बाकायदा साफा और हाथ में हिंगोट लिए ढाल के साथ मैदान में उतरते हैं. हिंगोट युद्ध के हर सदस्य के हाथ में जलती हुई लकड़ी अथवा अगरबत्ती होती है.

Hingot Yudh 2023
गौतमपुरा में हुआ हिंगोट युद्ध

हिंगोट युद्ध देखने पहुंचते है कई लोग: जिसके जरिए उनके पास झूले में रखे हुए दर्जनों हिंगोट को जलाकर सामने वाली टीम के ऊपर निशान लगाकर फेंका जाता है. इसके बाद शाम ढलते ही दोनों टीमों के योद्धाओं के बीच हिंगोट को जलाकर रॉकेट की तरह एक दूसरे पर हमला करने का दौर शुरू हो जाता है. इन दोनों ही गांव की टीम के हिंगोट युद्ध को देखने के लिए क्षेत्र के आसपास के गांव के लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं. हर बार हिंगोट लगने से कई लोग घायल होते हैं, इसलिए दर्शकों की सुरक्षा के लिए दोनों तरफ करीब 12 फीट ऊंची जाली लगाई जाती है. जिससे की हिंगोट के हमले से आम जनता को बचाया जा सके.

एक-दूसरे पर छोड़े जाते हैं जलते हुए हिंगोट: करीब दो से तीन घंटे चलने वाले इस युद्ध में सैकड़ों की तादात में हिंगोट एक दूसरे पर छोड़े जाते हैं. खास बात यह है कि दोनों ही टीम के सदस्यों की संख्या निश्चित रहती है. जिनके पास जितने हिंगोट होते हैं. वह मैदान में उतरकर विरोधी टीम पर हिंगोट को जलाकर हमला करता है. इस युद्ध में दोनों टीमों के बीच हार या जीत का कोई फैसला नहीं होता, लेकिन इसके बावजूद दोनों ही टीम के सदस्यों के बीच हिंगोट युद्ध को लेकर उत्साह चरम पर रहता है. हिंगोट युद्ध के दौरान दोनों ही टीम के खलीफा अथवा रेफरी भी साथ में होते हैं. जो खेल का समय अथवा व्यवस्था और नियम का भी पालन करते हैं.

Hingot Yudh 2023
जलते हुए हिंगोट छोड़ते लोग

यहां पढ़ें...

कई लोग होते हैं घायल: इस दौरान इंदौर जिला प्रशासन की टीम और स्वास्थ्य विभाग का दल मौके पर ही तैनात रहता है. जिससे की हिंगोट से घायल होने वाले दल के सदस्यों का मौके पर ही इलाज किया जा सके. दिन ढलते ही शुरू होने वाले हिंगोट युद्ध अंधेरा गहराते ही संपन्न हो जाता है. दरअसल, हिंगोट युद्ध के कारण को लेकर कोई स्पष्ट मान्यता तो नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि सालों पहले गौतमपुरा क्षेत्र की सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात जवान आक्रमण कार्यों पर हिंगोट से हमला करते थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था. उसके बाद यह यहां की मान्यता बन गई. जो अब युद्ध के रूप में सदियों से जारी है.

traditions associated
हिंगोट युद्ध के योद्धा

ऐसे तैयार होता है हिंगोट: दरअसल, हिंगोट एक फल होता है. जिसे क्षेत्र में इंगोरिया नामक पेड़ का फल कहा जाता है. इसे पेड़ से एक महीने पहले ही तोड़कर उसके अंदर के गूदे को अलग कर दिया जाता है और उसके कठोर बाहरी आवरण को धूप में सूखने के बाद फल के कठोर आवरण के भीतर बारूद कंकड़ और पोटाश भरा जाता है. बारूद भरे जाने के बाद यह हिंगोट बम का रूप ले लेता है. इसके बाद फल पर लकड़ी बांधी जाती है, जो हिंगोट फल को जलाए जाने पर रॉकेट की तरह उसे आगे बढ़ाने में मदद करती है.

इंदौर में हुआ हिंगोट युद्ध

इंदौर। दीपावली पर देश भर में उत्सव के साथ तमाम तरह की परंपराएं भी जुड़ी हुई है. सदियों से जिनका पालन लोग करते आ रहे हैं. इंदौर के गौतमपुरा में ऐसी ही एक परंपरा है, हिंगोट युद्ध. जिसमें दो गांव की टीम एक दूसरे पर हिंगोट नमक फल से तैयार होने वाले अग्निबाण का उपयोग करती है. जिसमें कई लोग हर साल घायल भी हो जाते हैं. सालों की इस परंपरा के मुताबिक आज फिर गौतमपुरा में पूरे जोश और उत्साह के साथ हिंगोट युद्ध खेला गया. जिसमें दोनों टीमों के करीब 35 लोग घायल भी हुए. जिनमें से एक को इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया है.

तुर्रा और कलंगी के बीच हुआ युद्ध: दरअसल, मान्यता है कि इंदौर के गौतमपुरा में हर साल यहां के देवनारायण मंदिर के सामने तुर्रा और कलंगी नमक दो टीमों के बीच अग्नि अस्त्रों से एक दूसरे पर हमला करने का हिंगोट युद्ध होता है. यह दोनों ही दल दीपावली के अगले दिन यहां के देवनारायण मंदिर के सामने स्थित मैदान में पारंपरिक पूजा के बाद बाकायदा साफा और हाथ में हिंगोट लिए ढाल के साथ मैदान में उतरते हैं. हिंगोट युद्ध के हर सदस्य के हाथ में जलती हुई लकड़ी अथवा अगरबत्ती होती है.

Hingot Yudh 2023
गौतमपुरा में हुआ हिंगोट युद्ध

हिंगोट युद्ध देखने पहुंचते है कई लोग: जिसके जरिए उनके पास झूले में रखे हुए दर्जनों हिंगोट को जलाकर सामने वाली टीम के ऊपर निशान लगाकर फेंका जाता है. इसके बाद शाम ढलते ही दोनों टीमों के योद्धाओं के बीच हिंगोट को जलाकर रॉकेट की तरह एक दूसरे पर हमला करने का दौर शुरू हो जाता है. इन दोनों ही गांव की टीम के हिंगोट युद्ध को देखने के लिए क्षेत्र के आसपास के गांव के लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं. हर बार हिंगोट लगने से कई लोग घायल होते हैं, इसलिए दर्शकों की सुरक्षा के लिए दोनों तरफ करीब 12 फीट ऊंची जाली लगाई जाती है. जिससे की हिंगोट के हमले से आम जनता को बचाया जा सके.

एक-दूसरे पर छोड़े जाते हैं जलते हुए हिंगोट: करीब दो से तीन घंटे चलने वाले इस युद्ध में सैकड़ों की तादात में हिंगोट एक दूसरे पर छोड़े जाते हैं. खास बात यह है कि दोनों ही टीम के सदस्यों की संख्या निश्चित रहती है. जिनके पास जितने हिंगोट होते हैं. वह मैदान में उतरकर विरोधी टीम पर हिंगोट को जलाकर हमला करता है. इस युद्ध में दोनों टीमों के बीच हार या जीत का कोई फैसला नहीं होता, लेकिन इसके बावजूद दोनों ही टीम के सदस्यों के बीच हिंगोट युद्ध को लेकर उत्साह चरम पर रहता है. हिंगोट युद्ध के दौरान दोनों ही टीम के खलीफा अथवा रेफरी भी साथ में होते हैं. जो खेल का समय अथवा व्यवस्था और नियम का भी पालन करते हैं.

Hingot Yudh 2023
जलते हुए हिंगोट छोड़ते लोग

यहां पढ़ें...

कई लोग होते हैं घायल: इस दौरान इंदौर जिला प्रशासन की टीम और स्वास्थ्य विभाग का दल मौके पर ही तैनात रहता है. जिससे की हिंगोट से घायल होने वाले दल के सदस्यों का मौके पर ही इलाज किया जा सके. दिन ढलते ही शुरू होने वाले हिंगोट युद्ध अंधेरा गहराते ही संपन्न हो जाता है. दरअसल, हिंगोट युद्ध के कारण को लेकर कोई स्पष्ट मान्यता तो नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि सालों पहले गौतमपुरा क्षेत्र की सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात जवान आक्रमण कार्यों पर हिंगोट से हमला करते थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था. उसके बाद यह यहां की मान्यता बन गई. जो अब युद्ध के रूप में सदियों से जारी है.

traditions associated
हिंगोट युद्ध के योद्धा

ऐसे तैयार होता है हिंगोट: दरअसल, हिंगोट एक फल होता है. जिसे क्षेत्र में इंगोरिया नामक पेड़ का फल कहा जाता है. इसे पेड़ से एक महीने पहले ही तोड़कर उसके अंदर के गूदे को अलग कर दिया जाता है और उसके कठोर बाहरी आवरण को धूप में सूखने के बाद फल के कठोर आवरण के भीतर बारूद कंकड़ और पोटाश भरा जाता है. बारूद भरे जाने के बाद यह हिंगोट बम का रूप ले लेता है. इसके बाद फल पर लकड़ी बांधी जाती है, जो हिंगोट फल को जलाए जाने पर रॉकेट की तरह उसे आगे बढ़ाने में मदद करती है.

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