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Hindu family celebrating Urs in Karnataka: कर्नाटक में दिखी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, हिंदू फैमिली मना रहीं उर्स - उर्स

कर्नाटक में हावेरी जिले के कोननतांबिगे गांव में 5 दिवसीय उर्स शुरू हो गया है. कोननतांबिगे गांव में उर्स मनाए जाने की खास बात यह है कि यहां गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, फिर भी यहां उर्स बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

Hindu family celebrating Uru
हिंदू फैमिली मना रहीं उर्स
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Published : Mar 13, 2023, 12:19 PM IST

हावेरी (कर्नाटक): जिन गांवों में मुस्लिम परिवार रहते हैं, वहां उर्स मनाना आम बात है. इसी तरह जिन गांवों में हिंदू और मुसलमान रहते हैं, वहां दोनों धर्मों के लोग मिलकर उर्स मनाते देखे जा सकते हैं, लेकिन कर्नाटक के हावेरी जिले में एक ऐसा गांव में हैं जहां एक मुस्लिम फैमिली नहीं फिर भी लोग धूमधाम से उर्स मनाते हैं.

हावेरी तालुक के कोननतांबिगे गांव में हिंदुओं उर्स मनाया जाता है. यहां उर्स रविवार (कल) से शुरू हो गया है और तक 5 दिनों तक चलेगा. गांव के बाहरी इलाके में यमनूर भी हिंदू परिवार बड़े हर्षोल्लास के साथ उर्स मनाते हैं. उर्स उत्सव के भाग के रूप में यमनूर राजभक्त मूर्ति के देवता का एक जुलूस भी आयोजित किया जाता है.

कोननतांबिगे गांव के पास वरदा नदी के तट पर एक विशेष पूजा के बाद उर्स की शुरुआत की जाती है. इस दौरान गांव में एक जुलूस भी निकाला जाता है. यह जुलूस नदी किनारे से शुरू होकर गांव के मुख्य मार्गों से होकर निकलता है. जुलूस के गुजरते ही सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने राजभक्त की पूजा की. मान्यता है कि इस तरह से भगवान को प्रणाम करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

ये भी पढ़ें- Mathura News : हिंदू महासभा ने कहा- औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाई ईदगाह, अब उसके वंशज लड़ रहे केस

बता दें कि राजभक्त की मूर्ति को गांव के एक घर में स्थापित किया जाता है. वरदा नदी में स्नान करने के बाद लोग उर्स में लगी दुकानों से मुक्तुम चीनी, नमक, घोड़े, ध्वजा चढ़ाने और तेल सहित विभिन्न वस्तुओं को खरीदते हैं और भगवान राजभक्त को चढ़ाते हैं.

किसान परिवार अपने खेतों में उगाई सब्जियां और अनाज भी देते हैं. इसके अलावा, नवजात शिशुओं सहित छोटे बच्चों को मंदिर में लाया जाता है और उनके माथे को गड्डुगे (भगवान बैठने की जगह) से छूकर पूजा की जाती है. साथियों (सूफी आध्यात्मिक मार्गदर्शक) द्वारा विभिन्न मंत्रोच्चार किए जाते हैं और भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है.

ये भी पढ़ें- UP: काशी विश्वनाथ में बाबा के स्पर्श दर्शन के लिए अब देना होगा शुल्क

200 साल से मनाया जा रहा उर्स: गांव में उर्स करीब 200 साल से मनाया जा रहा है, जबकि इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, तो पड़ोसी यालागच्छा गांव सहित विभिन्न गांवों से पीरों (सूफी आध्यात्मिक मार्गदर्शक) को बुलाकर उर्स मनाया जाता है. पांच दिवसीय उर्स के लिए महाराष्ट्र, गोवा सहित कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंचते हैं.

उर्स के तहत गांव में तीन दिनों तक कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. उर्स के दिन आस-पास के गांवों के मुसलमान आते हैं और राजभक्त के दर्शन करते हैं और प्रार्थना करते हैं. यालगच्छा गांव सहित पांच पीर पांच दिनों तक उर्स मनाते हैं.

बाद में यमनूर मंदिर में राजभक्त की मूर्ति स्थापित की जाएगी. मंगलेकर का परिवार साल भर वहां पूजा करता है. इस आध्यात्मिक उरुस को मनाकर कोननतांबिगे के ग्रामीणों ने अन्य गांवों के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की है.

हावेरी (कर्नाटक): जिन गांवों में मुस्लिम परिवार रहते हैं, वहां उर्स मनाना आम बात है. इसी तरह जिन गांवों में हिंदू और मुसलमान रहते हैं, वहां दोनों धर्मों के लोग मिलकर उर्स मनाते देखे जा सकते हैं, लेकिन कर्नाटक के हावेरी जिले में एक ऐसा गांव में हैं जहां एक मुस्लिम फैमिली नहीं फिर भी लोग धूमधाम से उर्स मनाते हैं.

हावेरी तालुक के कोननतांबिगे गांव में हिंदुओं उर्स मनाया जाता है. यहां उर्स रविवार (कल) से शुरू हो गया है और तक 5 दिनों तक चलेगा. गांव के बाहरी इलाके में यमनूर भी हिंदू परिवार बड़े हर्षोल्लास के साथ उर्स मनाते हैं. उर्स उत्सव के भाग के रूप में यमनूर राजभक्त मूर्ति के देवता का एक जुलूस भी आयोजित किया जाता है.

कोननतांबिगे गांव के पास वरदा नदी के तट पर एक विशेष पूजा के बाद उर्स की शुरुआत की जाती है. इस दौरान गांव में एक जुलूस भी निकाला जाता है. यह जुलूस नदी किनारे से शुरू होकर गांव के मुख्य मार्गों से होकर निकलता है. जुलूस के गुजरते ही सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने राजभक्त की पूजा की. मान्यता है कि इस तरह से भगवान को प्रणाम करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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बता दें कि राजभक्त की मूर्ति को गांव के एक घर में स्थापित किया जाता है. वरदा नदी में स्नान करने के बाद लोग उर्स में लगी दुकानों से मुक्तुम चीनी, नमक, घोड़े, ध्वजा चढ़ाने और तेल सहित विभिन्न वस्तुओं को खरीदते हैं और भगवान राजभक्त को चढ़ाते हैं.

किसान परिवार अपने खेतों में उगाई सब्जियां और अनाज भी देते हैं. इसके अलावा, नवजात शिशुओं सहित छोटे बच्चों को मंदिर में लाया जाता है और उनके माथे को गड्डुगे (भगवान बैठने की जगह) से छूकर पूजा की जाती है. साथियों (सूफी आध्यात्मिक मार्गदर्शक) द्वारा विभिन्न मंत्रोच्चार किए जाते हैं और भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है.

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200 साल से मनाया जा रहा उर्स: गांव में उर्स करीब 200 साल से मनाया जा रहा है, जबकि इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, तो पड़ोसी यालागच्छा गांव सहित विभिन्न गांवों से पीरों (सूफी आध्यात्मिक मार्गदर्शक) को बुलाकर उर्स मनाया जाता है. पांच दिवसीय उर्स के लिए महाराष्ट्र, गोवा सहित कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंचते हैं.

उर्स के तहत गांव में तीन दिनों तक कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. उर्स के दिन आस-पास के गांवों के मुसलमान आते हैं और राजभक्त के दर्शन करते हैं और प्रार्थना करते हैं. यालगच्छा गांव सहित पांच पीर पांच दिनों तक उर्स मनाते हैं.

बाद में यमनूर मंदिर में राजभक्त की मूर्ति स्थापित की जाएगी. मंगलेकर का परिवार साल भर वहां पूजा करता है. इस आध्यात्मिक उरुस को मनाकर कोननतांबिगे के ग्रामीणों ने अन्य गांवों के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की है.

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