वाराणसी: अगर हम रामायण की कथा कुछ ऐसी सुनाएं कि भगवान राम से अधिक मुखर माता सीता थीं. जनजातियों के राम अयोध्या के राजा राम जैसे नहीं थे. माता सीता घूंघट में नहीं रहती थीं बल्कि बाहर निकलकर मुखर संवाद करती थीं. अब कुछ ऐसी ही रामायण हमें पढ़ने को मिलने वाली है. क्योंकि योगी सरकार अब 22 भाषाओं में लिखी गई रामायण का अनुवाद हिंदी में करा रही है. ऐसे में दक्षिण, मिथिला और अन्य क्षेत्रों में राम को कैसे मानते हैं वह पता चलेगा.
रामायण को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने विशेष प्रोजेक्ट शुरू किया है. प्रदेश सरकार अयोध्या शोध संस्थान के जरिए 22 भाषाओं में उपलब्ध रामकथा को हिंदी में अनुवाद करा रही है. अब तक 14 भाषाओं का हिन्दी अनुवाद करके पुस्तकों का प्रकाशन कर दिया गया है. वहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह रामायण में लिखी गई संस्कृत भाषा का अनुवाद कर रहे हैं. इसके साथ ही पूरे भारत के अलग-अलग हिस्सों के साहित्यकार इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. अलग-अलग महर्षियों द्वारा लिखी गई रामायण के अलग-अलग पाठकों को शामिल किया गया है.
मिथिला की सीता मुखर होकर विरोध करने वाली है: प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने बताया कि उत्तर भारत में अयोध्या के राजा राम शालीन, गुणी और विनम्र राजा थे. उत्तर में राम का चरित्र मर्यादा पुरुषोत्तम का है, संघर्षशील है. वहीं, मिथिला के साहित्य में मिलेगा कि जितना राम का बखान है उतना ही माता सीता का भी है. वहां पर वह पर्दे में रहने वाली और पतिव्रता पत्नी नहीं बल्कि गलत को गलत कहने वाली हैं. मुखर होकर विरोध करने वाली हैं. ऐसे ही दक्षिण में रावण की पूजा अधिक की जाती है.
जनजातियों के राम प्रकृति और पशु प्रेमी: प्रोफेसर प्रभाकर सिंह बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य जन-जन तक राम को पहुंचाना है. भारत देश के अलग-अलग हिस्सों में राम को अलग-अलग व्यक्तित्व के रूप में देखा गया है. अलग-अलग कवियों और महर्षियों ने अपनी-अपनी दृष्टि से राम को लेकर के काव्य-महाकाव्य की रचना की है. जैसे दक्षिण में राम का एक अलग रूप होता है, उत्तर में राम को एक अलग व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है, जनजातियों के लिए राम पशु और प्रकृति प्रेमी हैं.
15 भाषओं का हो चुका है हिन्दी अनुवाद: उन्होंने बताया कि तेलुगु, कन्नड़, उड़िया, पंजाबी, गुजराती, अवधी, संस्कृत जैसी अलग-अलग भाषाओं में जो रामकथा लिखी गई है. उस रामकथा को हिंदी में अलग-अलग साहित्यकारों के द्वारा लिखा जा रहा है. अब तक लगभग 15 भाषाओं में काम हो चुका है और आगे प्रक्रिया में है.
राम के व्यक्तित्व को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास: प्रो. सिंह ने बताया कि राम के व्यक्तित्व को एक संघर्षशील, करुणा, प्रेम से परिपूर्ण व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जो विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते. एक ऐसा व्यक्तित्व जो सब का आदर करने वाला, समाज, पशु– पक्षी और प्रतिरोधी का भी ख्याल रखने वाला है. वो एक समावेशी व्यक्तित्व हैं, जो भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा पक्ष है. हमारी संस्कृति में सबको साथ लेकर चलने की बात की जाती है और उसी को इस पुस्तक में रामायण के जरिए दर्शाया गया है.
अलग-अलग विद्वानों ने अलग अलग किया है वर्णन: प्रो. सिंह ने बताया कि वाल्मीकि की रामायण के आधार पर संस्कृत के काव्य नाटक एवं अन्य रचनाओं में रामकथा को अपने-अपने विचार के आधार पर साहित्यकारों ने लिखा है. जैसे आदि कवि वाल्मीकि का रामायण, कालिदास का रघुवंश महाकाव्य, भवभूति का उत्तम रामचरित्र नाटक, आधुनिक काल में रेवा प्रसाद द्विवेदी का उत्तर सीता चरितम, इसके साथ ही अन्य भाषाओं के साथ-साथ रामकथा का हिंदी में भी सर्वाधिक विकास हुआ है. प्रमुख रचना तुलसीदास की रामचरितमानस है. आधुनिक काल में कवि निराला ने भी राम की शक्ति पूजा में राम को एक युग के अनुरूप बताया है. वहीं, शोधार्थियों के लिए भी शोध का एक बेहतर माध्यम बनेगा, जहां वह रामायण पर उपलब्ध इन पुस्तकों के जरिए अपने शोध को और बेहतर बना सकेंगे.
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