शिमला : ब्रिटिश हुकूमत के समय हिमाचल में रेलवे के नाम पर कालका-शिमला रेल ट्रैक विख्यात रहा है. कांगड़ा, जोगेंद्रनगर, ऊना में भी रेल का नाम सुना-सुना सा है, लेकिन आजादी के बाद केंद्र की सरकारें पहाड़ी राज्य में रेल विस्तार को लेकर उदासीन ही रही हैं. यह बात अलग है कि नई सदी में सामरिक महत्व की भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे मार्ग को पूरा करने के लिए सक्रियता दिखाई दे रही है. हालांकि, पूरे हिमाचल में रेल विस्तार की योजना अभी भी कोसों दूर है.
पूर्व पीएम स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी हिमाचल को अपना दूसरा घर बताते रहे हैं. परंतु इस दूसरे घर में रेल नेटवर्क का विस्तार करने में खास ध्यान किसी ने नहीं दिया. आने वाले केंद्रीय बजट को देखें, तो इस बार हिमाचल प्रदेश भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे मार्ग को लेकर आशा जता रहा है. देश की सुरक्षा और सामरिक नजरिए से देखें, तो 475 किलोमीटर लंबी भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे लाइन के लिए अब तक सैटेलाइट इमेज प्रणाली के जरिए 22 बार सर्वे करवाया गया है. भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली-लेह के तौर पर सबसे ऊंची इस रेलवे लाइन पर 30 रेलवे स्टेशन बनाए जाने प्रस्तावित हैं.
बजट से प्रदेश को हैं काफी उम्मीदें
हिमाचल के सीएम व अन्य नेता समय-समय पर केंद्र से इस विषय को उठाते आए हैं. यदि पिछले बजट की बात करें, तो केंद्र ने ट्रैक एक्सपेंशन को फिलहाल स्थगित किया हुआ था, लिहाजा हिमाचल को कुछ नहीं मिला. इसी तरह वर्ष 2019-20 में प्रदेश की चार रेल परियोजनाओं को 154 करोड़, दस लाख रुपये का आवंटन किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार अपने दूसरे घर हिमाचल की सुध ली है. हालांकि, ये राशि बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन चंडीगढ़-बद्दी रेल मार्ग के लिए एक अरब रुपये धन का आवंटन किया है. अलबत्ता ऊना-हमीरपुर रेल लाइन के लिए महज दस लाख रुपये ही मिले हैं. इस बार अंतरिम बजट में हिमाचल की चार रेल परियोजनाओं को पहले के मुकाबले कुछ अधिक धन आवंटित किया गया है. उस दौर में हिमाचल से संबंध रखने वाले केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री जेपी नड्डा ने बयान दिया था कि यूपीए सरकार ने 2009 से 2014 तक हिमाचल को कुल 108 करोड़ रुपये दिए. वहीं, एनडीए सरकार वर्ष 2015-16 के बजट में हिमाचल के रेल प्रोजेक्ट्स को 350 करोड़ रुपये व वर्ष 2016-17 में 370 करोड़ रुपये दिए.
रेल योजनाओं में पीछे ही रहा हिमाचल
वर्ष 2018-19 में हिमाचल की रेल परियोजनाओं के लिहाज से कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई थी. अलबत्ता नेरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने के लिए देशभर की परियोजनाओं के साथ ही हिमाचल की जोगेंद्रनगर-कांगड़ा रेल लाइन भी शामिल हुई थी. देखा जाए तो आजादी के बाद से हिमाचल की अनदेखी होती आई है. यहां अंग्रेजों के जमाने की रेल लाइनों का विस्तार न के बराबर हुआ है. कालका-शिमला रेल मार्ग केवल शिमला तक ही सीमित है. इसे रोहड़ू तक ले जाने की बात कई बार हुई है. इसके लिए सर्वे भी नहीं किया जा रहा है. यदि वर्ष 2016-17 के रेल बजट की बात की जाए, तो पहले से घोषित तीन रेल परियोजनाओं के लिए उस समय जरूर 370 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. पहले से चल रही तीन परियोजनाओं में नंगल-तलवाड़ा के लिए सौ करोड़ रुपये, चंडीगढ़-बद्दी रेल लाइन के लिए 80 करोड़ रुपये व भानुपल्ली-बिलासपुर रेल लाइन के लिए 190 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. इसके अलावा बजट में पठानकोट-जोगेंद्रनगर को ब्रॉडगेज करने के साथ ही जोगेंद्रनगर से मंडी के लिए रेल लाइन को लेकर सर्वे राशि तय की गई थी.
सर्वे का झुनझुना मिला पर रेल लाइन नहीं
हिमाचल में रेल विस्तार के लिहाज से सर्वे का झुनझुना जरूर इस पहाड़ी राज्य को मिलता रहा है. यदि वर्ष 2016-17 के रेल बजट की बात करें, तो उस दौरान हिमाचल को परवाणु से दाड़लाघाट रेल लाइन के सर्वे के लिए 2.33 लाख रुपये के बजट का प्रावधान किया गया था. इसके अलावा बद्दी से बिलासपुर की 50 किलोमीटर की प्रस्तावित लाइन के सर्वे के लिए 3.40 लाख, बिलासपुर से रामपुर 7.12 लाख, अंब से कांगड़ा की 75 किलोमीटर की दूरी के लिए 5.25 लाख रुपये की राशि सर्वे के लिए तय की गई थी. धर्मशाला से पालमपुर 40 किलोमीटर के लिए 2.99 लाख, ऊना से हमीरपुर की 90 किलोमीटर की लाइन के लिए 11.10 लाख, जोगेंद्रनगर से मंडी के लिए 4 लाख व पठानकोट से जोगेंद्रनगर के 181 किलोमीटर रेल लाइन के सर्वे को 26 लाख रुपये की राशि मिली थी.
2014-15 के बजट में हिमाचल का नाम तक नहीं
जितनी बार भी रेल बजट पेश हुए, हिमाचल को अधिकतर लॉलीपॉप ही मिलता रहा. वर्ष 2014-15 के रेल बजट में, तो हिमाचल को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था. उस समय रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे थे. उनके बजट में हिमाचल का नाम तक नहीं था. यदि इससे पहले के रेल बजट की बात की जाए, तो 2013-14 के रेल बजट में हिमाचल के हिस्से केवल 14 करोड़ रुपये आए थे. वर्ष 2019 में अंतरिम बजट के हिस्से के तौर पर रेल बजट की पुस्तकों के मुताबिक हिमाचल में कुल 83.74 किलोमीटर लंबी नंगल-तलवाड़ा ब्रॉडगेज रेल लाइन के लिए अंतरिम बजट में 30 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. इसी तरह 33.23 किलोमीटर लंबी चंडीगढ़-बद्दी प्रस्तावित रेल लाइन के लिए 24 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था. इस रेल प्रोजेक्ट का काम भू अधिग्रहण में हो रही देरी की वजह से अटका हुआ है. भानुपल्ली-बिलासपुर रेल मार्ग के लिए 2019 में बजट में 100 करोड़ यानी एक अरब रुपये का प्रावधान था.
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है हिमाचल
सामरिक महत्व के इस ट्रैक पर केंद्र की भी नजर है. इसके अलावा कुल 50 किमी लंबी ऊना-हमीरपुर रेल लाइन के लिए महज दस लाख रुपये का बजट 2019 में जारी हुआ था. हिमाचल में कुल चार रेल प्रोजेक्ट्स में तीन प्रोजेक्ट हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर के क्षेत्र से संबंधित हैं और एक प्रोजेक्ट शिमला के सांसद सुरेश कश्यप के चुनाव क्षेत्र में आता है. हिमाचल में औद्योगिक विकास की रफ्तार को और तेज करने के लिए रेल विस्तार बहुत जरूरी है. खासकर चंडीगढ़-बद्दी रेल मार्ग का जल्द निर्माण होना लाजिमी है. ऐसा इसलिए कि हिमाचल का बड़ा औद्योगिक क्षेत्र इसी रेल मार्ग से कवर होगा. हिमाचल में सोलन जिला में बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ यानी बीबीएन सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है. इसे एशिया का फार्मा हब भी कहा जाता है. विश्व की सभी बड़ी दवा कंपनियां यहां यूनिट्स लगा कर काम कर रही हैं. बीबीएन में सालाना 40 हजार करोड़ रुपये का दवा उत्पादन का आंकड़ा है. यदि चंडीगढ़-बद्दी रेल मार्ग तैयार हो जाए, तो फार्मा सेक्टर सहित अन्य उद्योगों को बड़ा लाभ होगा.
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इसके अलावा यहां कलपुर्जों के निर्माण की भी यूनिट्स हैं. यहां उद्योग की जरूरतों के लिए सौ करोड़ से अधिक की लागत वाला टेक्नीकल सेंटर भी खुला है, लेकिन रेल नेटवर्क न होने से सारी ढुलाई सड़क मार्ग से ही होती है. हिमाचल लंबे अरसे से चंडीगढ़-बद्दी रेल लाइन का मामला उठा रहा है. पहले चरण में इसके लिए 95 करोड़ रुपये मंजूर हुए और 2019 में 100 करोड़ रुपये मिले थे.