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हिमाचल के नामकरण में डॉ. परमार की नहीं, 28 रियासतों के राजाओं की चली

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Published : Jan 24, 2021, 10:53 PM IST

हिमाचल प्रदेश का नामकरण सोलन शहर के दरबारी हॉल में हुआ था. सोलन शहर के दरबारी हॉल में 28 रियासतों के राजाओं ने एक साथ अपना शासन छोड़ और एक स्वर में इस खूबसूरत प्रांत का नाम हिमाचल रखने की बात कही थी. बैठक में हिमाचल निर्माता कहे जाने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार भी मौजूद थे. जानिए हिमाचल नामकरण से जुड़ी पूरी कहानी.

हिमाचल प्रदेश का नामकरण
हिमाचल प्रदेश का नामकरण

सोलन : देवभूमि के नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश उत्तर में जम्मू कश्मीर, पश्चिम में पंजाब, दक्षिण में उत्तर प्रदेश और पूर्व में उत्तराखंड से घिरा है. 55 हजार 673 वर्ग किलोमीटर में फैला हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है. विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक हिमाचल में ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं, गहरी घाटियां, सुंदर झरने और हरियाली देखते ही बनती है.

हिमाचल प्रदेश का इतिहास

ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत का हिस्सा रहे हिमाचल प्रदेश को 26 जनवरी 1950 को हिमाचल को पार्ट-सी स्टेट का दर्जा मिला. इसके बाद 1 नवंबर, 1956 को हिमाचल को केंद्र शासित राज्य बनाया गया और फिर एक लंबे इंतजार के बाद 25 जनवरी 1971 के दिन हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बर्फ के फाहों के बीच शिमला के रिज मैदान में जनसभा से 18 वें राज्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश की घोषणा की.

हिमाचल के नामकरण पर विशेष रिपोर्ट

यहां हुआ था हिमाचल प्रदेश का नामकरण

यह तो वह इतिहास है, जिसे देश-प्रदेश के लगभग सभी लोग जानते हैं. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश का नामकरण सोलन शहर के दरबारी हॉल में हुआ था.

सोलन शहर के दरबारी हॉल में 28 रियासतों के राजाओं ने एक साथ अपना शासन छोड़ और एक स्वर में इस खूबसूरत प्रांत का नाम हिमाचल रखने की बात कही. राजशाही शैली में बना यह भवन बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबार था, जहां बघाट रियासत के राजा जनता की समस्याओं को सुना करते थे.

हिमालयन एस्टेट नाम रखना चाहते थे डॉ. परमार

साल 1948 में 28 जनवरी के दिन दरबारी हॉल में 28 रियासतों के राजाओं के साथ बैठक का आयोजन हुआ. इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के 28 रियासतों के राजाओं ने अपनी सत्ता छोड़ने का ऐलान किया. उस समय इस बैठक में हिमाचल निर्माता कहे जाने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार भी मौजूद थे.

डॉ. परमार चाहते थे कि उत्तराखंड राज्य का जौनसर-बाबर क्षेत्र भी हिमाचल में शामिल हो. वे चाहते थे कि इस प्रांत का नाम हिमालयन एस्टेट रखा जाए, लेकिन 28 रियासत के राजाओं ने एक स्वर में प्रांत का नाम हिमाचल प्रदेश रखने की आवाज बुलंद की.

वल्लभभाई पटेल ने प्रस्ताव पर लगाई मुहर

राजाओं की मांग पर प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश रखने पर सहमति बनी और इसके लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया. इस प्रस्ताव मंजूरी के लिए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को भेजा गया, जिन्होंने प्रस्ताव पर मुहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया. इसके बाद से ही हिमाचल प्रदेश को स्थाई नाम मिला.

पढ़ें- गलत निकला दुनिया की सबसे उम्रदराज महिला होने के दावा, 130 नहीं ये है सही उम्र

दरबारी हॉल में आज भी मौजूद हैं उस समय की तीन कुर्सियां

वहीं, दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद हैं. इसके अलावा दरबारी द्वार पर की गई बेहद सुंदर नकाशी को देखा जा सकता है. लेकिन हॉल का सही रख रखाव और अनदेखी की वजह से दरबारी हॉल बदहाली पर आंसू बहा रहा है.

अब इस हॉल का इस्तेमाल लोक निर्माण विभाग कर रहा है. दरबारी हॉल को पहचान दिलाना तो दूर इस स्थान का अस्तित्व तक खतरे में है. इसकी ओर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही प्रशासन. अगर स्थिति यही रही तो हम अन्य धरोहरों की तरह इस धरोहर को भी अपने हाथों से गंवा देंगे.

सोलन : देवभूमि के नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश उत्तर में जम्मू कश्मीर, पश्चिम में पंजाब, दक्षिण में उत्तर प्रदेश और पूर्व में उत्तराखंड से घिरा है. 55 हजार 673 वर्ग किलोमीटर में फैला हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है. विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक हिमाचल में ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं, गहरी घाटियां, सुंदर झरने और हरियाली देखते ही बनती है.

हिमाचल प्रदेश का इतिहास

ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत का हिस्सा रहे हिमाचल प्रदेश को 26 जनवरी 1950 को हिमाचल को पार्ट-सी स्टेट का दर्जा मिला. इसके बाद 1 नवंबर, 1956 को हिमाचल को केंद्र शासित राज्य बनाया गया और फिर एक लंबे इंतजार के बाद 25 जनवरी 1971 के दिन हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बर्फ के फाहों के बीच शिमला के रिज मैदान में जनसभा से 18 वें राज्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश की घोषणा की.

हिमाचल के नामकरण पर विशेष रिपोर्ट

यहां हुआ था हिमाचल प्रदेश का नामकरण

यह तो वह इतिहास है, जिसे देश-प्रदेश के लगभग सभी लोग जानते हैं. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश का नामकरण सोलन शहर के दरबारी हॉल में हुआ था.

सोलन शहर के दरबारी हॉल में 28 रियासतों के राजाओं ने एक साथ अपना शासन छोड़ और एक स्वर में इस खूबसूरत प्रांत का नाम हिमाचल रखने की बात कही. राजशाही शैली में बना यह भवन बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबार था, जहां बघाट रियासत के राजा जनता की समस्याओं को सुना करते थे.

हिमालयन एस्टेट नाम रखना चाहते थे डॉ. परमार

साल 1948 में 28 जनवरी के दिन दरबारी हॉल में 28 रियासतों के राजाओं के साथ बैठक का आयोजन हुआ. इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के 28 रियासतों के राजाओं ने अपनी सत्ता छोड़ने का ऐलान किया. उस समय इस बैठक में हिमाचल निर्माता कहे जाने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार भी मौजूद थे.

डॉ. परमार चाहते थे कि उत्तराखंड राज्य का जौनसर-बाबर क्षेत्र भी हिमाचल में शामिल हो. वे चाहते थे कि इस प्रांत का नाम हिमालयन एस्टेट रखा जाए, लेकिन 28 रियासत के राजाओं ने एक स्वर में प्रांत का नाम हिमाचल प्रदेश रखने की आवाज बुलंद की.

वल्लभभाई पटेल ने प्रस्ताव पर लगाई मुहर

राजाओं की मांग पर प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश रखने पर सहमति बनी और इसके लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया. इस प्रस्ताव मंजूरी के लिए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को भेजा गया, जिन्होंने प्रस्ताव पर मुहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया. इसके बाद से ही हिमाचल प्रदेश को स्थाई नाम मिला.

पढ़ें- गलत निकला दुनिया की सबसे उम्रदराज महिला होने के दावा, 130 नहीं ये है सही उम्र

दरबारी हॉल में आज भी मौजूद हैं उस समय की तीन कुर्सियां

वहीं, दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद हैं. इसके अलावा दरबारी द्वार पर की गई बेहद सुंदर नकाशी को देखा जा सकता है. लेकिन हॉल का सही रख रखाव और अनदेखी की वजह से दरबारी हॉल बदहाली पर आंसू बहा रहा है.

अब इस हॉल का इस्तेमाल लोक निर्माण विभाग कर रहा है. दरबारी हॉल को पहचान दिलाना तो दूर इस स्थान का अस्तित्व तक खतरे में है. इसकी ओर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही प्रशासन. अगर स्थिति यही रही तो हम अन्य धरोहरों की तरह इस धरोहर को भी अपने हाथों से गंवा देंगे.

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