ETV Bharat / bharat

Himachal Flood Side Effect : आपदा में आटा गीला, ₹1000 की बोरी ₹800 किराया, घर पहुंचने तक हर चीज के दोगुने हो रहे दाम

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के कई गांवों में आपदा अपने साथ महंगाई लेकर आई है. आलम ये है कि 1000 रुपये के आटे की बोरी घर पहुंचते-पहुंचते 1800 और 1000 रुपये का एलपीजी सिलेंडर किचन तक पहुंचते-पहुंचते 1600 रुपये का हो जाता है. आखिर क्या है पूरा माजरा, जानने के लिए पढ़ें पूरी ख़बर (Himachal Flood Side Effect)

Himachal Flood Side Effect
आपदा में आटा गीला, ₹1000 की बोरी ₹800 किराया
author img

By

Published : Aug 7, 2023, 8:36 PM IST

कुल्लू : भूख लगने पर मोबाइल पर एक क्लिक में आपका मनपसंद खाना घर पहुंच जाता है. कहीं जाना हो तो एक क्लिक पर कैब आपके दरवाजे पर पहुंच जाती है. लेकिन दुनिया में हर किसी के पास इतनी सहूलियतें नहीं है. हिमाचल प्रदेश में आई भीषण आपदा के बाद जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट तो रही है लेकिन यहां जिंदगी जीने के लिए जरूरी सामान जुटाना फिलहाल सबसे बड़ी जद्दोजहद है. इन दिनों मीडिया और सोशल मीडिया में पाकिस्तान की महंगाई के चर्चे हैं. लेकिन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भी इन दिनों रोजमर्रा के सामान की कीमत घर पहुंचते पहुंचते लगभग दोगुना हो जाता है. यहां आपदा का साइडइफेक्ट या यूं कहें आफ्टर इफेक्ट महंगाई के रूप में सामने आ रहा है.

1000 रुपये की आटे की बोरी 800 रुपये ढुलाई- कंगाली में आटा गीला होने की कहावत आपने सुनी होगी, लेकिन कुल्लू जिले के कई गांव इस कहावत को साक्षात झेल रहे हैं. पहले आसमान से बरसी आफत में कईयों का सबकुछ बह गया और अब जिंदा रहना ही सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. ऐसा नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में महंगाई बढ़ गई है. दरअसल महंगाई की ये मार आपदा की वजह से पड़ रही है. भारी बारिश और लैंड स्लाइड के कारण सड़कें टूट गई हैं, नदियों पर बने पुल बह गए हैं. जिसके कारण आटा, दाल, चावल जैसी चीजें लाने के लिए कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. इतनी दूर से सामान जुटाने के लिए घोड़े और खच्चरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. 1000 रुपये की आटे या चावल की बोरी को घर तक पहुंचाने के लिए 600 से 800 रुपये देने पड़ रहे हैं.

Himachal Flood Side Effect
1000 रुपये की आटे की बोरी 800 रुपये ढुलाई

सामान की ढुलाई पड़ रही महंगी- कुल्लू जिले की मणिकर्ण और सैंज घाटी पर इस बार कुदरत की ऐसी मार पड़ी कि सैलाब का पानी को निकल गया है लेकिन इसके निशान अब जिंदगी की राह मुश्किल कर रहे हैं. मणिकर्ण से बरशैणी सड़क मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुआ है. 20 किलोमीटर का यह सड़क मार्ग छोटे वाहनों की आवाजाही के लिए शुरू कर दिया गया है लेकिन बड़े वाहनों के लिए फिलहाल इंतजार करना होगा. यही वजह है कि बरशैणी पंचायत और आस-पास के रहने वाले लोगों को राशन लेने के लिए मणिकर्ण का रुख करना पड़ रहा है. ऐसे में लोगों को या तो छोटे वाहनों में सामान ढोना पड़ रहा है या फिर उन्हें घोड़े खच्चर की मदद लेनी पड़ रही है. जिसका अतिरिक्त किराया कंगाली में आटा गीला कर रहा है. सैंज और मणिकर्ण की करीब 6 पंचायतों के 30 से ज्यादा गांव की इन दिनों यही सबसे बड़ी परेशानी है.

Himachal Flood Side Effect
ढुलाई के कारण हर चीज के दाम दोगुने हो जाते हैं

किराना दुकानों में सामान खत्म- आपदा के शुरुआती दौर में प्रशासन ने हैलीकॉप्टर के जरिये सैंज और मणिकर्ण जैसे इलाकों में गांव-गांव राशन भी पहुंचाया था लेकिन अब गांव में राशन खत्म हो गया है. गांव की दुकानों में भी राशन से लेकर अन्य सामान खत्म हो चुका है क्योंकि सड़के ठीक ना होने के चलते किराना की दुकान में सामान की सप्लाई नहीं पहुंच रही है. ऐसे में सबसे नजदीकी बाजार 25 से 30 किलोमीटर दूर है. बाजार से घर के लिए राशन लाने के लिए लोगों को घोड़े, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है. जिसके लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं और जेब पर बोझ बढ़ता जा रहा है.

Himachal Flood Side Effect
राशन समेत रोजमर्रा की चीजें कई किलोमीटर दूर से लानी पड़ रही हैं

हर सामान का दाम लगभग डबल- आटे और चावल की बोरी अगर बाजार में 1000 रुपये की मिल रही है तो उसे घर तक पहुंचाने के लिए 600 से 800 रुपये देने पड़ रहे हैं. LPG सिलेंडर की सप्लाई भी सड़क ना होने के कारण ठप है ऐसे में बाजार से रसोई तक सिलेंडर पहुंचाने के लिए 600 रुपये देने पड़ेंगे. 20 रुपये की पानी की बोतल घर तक पहुंचते-पहुंचते 35 रुपये की पड़ रही है. कुल मिलाकर सामान की ढुलाई लोगों की आर्थिक सेहत बिगाड़ रही है. इन इलाकों में आपदा के बाद से बिजली भी नहीं है, लेकिन इन लोगों के लिए चुनौतियों का पहाड़ इससे भी ऊंचा है.

मुश्किलें और भी हैं- इस इलाके के लोगों की मुश्किल सिर्फ राशन या रोजमर्रा की चीजें लाने तक ही सीमित नहीं हैं. देहुरी धार पंचायत के प्रधान भगतराम बताते हैं कि खेतों में फल और सब्जियों की फसल तैयार है. जिन्हें इस वक्त लोग बेचने के लिए बाजार और मंडियों तक जाते हैं लेकिन सड़क ना होने के कारण टमाटर समेत अन्य सब्जियां पीठ पर लादकर बाजार पहुंचाई जा रही हैं. इसी तरह इन दिनों अगर कोई बीमार पड़ जाए तो अस्पताल तक जाने वाली सड़क तक मरीज को बड़ी मुश्किल से पहुंचाया जाता है.

Himachal Flood Side Effect
मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए करनी पड़ती है कड़ी मशक्कत

किराना दुकान वाले नहीं ला रहे सामान- इन दिनों इस इलाके में हर किसी का दर्द एक सा है. बरशैणी में दुकान चलाने वाले रोशन लाल कहते हैं कि दुकान खाली पड़ी है लेकिन सड़क बंद होने के कारण उनकी दुकान में किसी चीज की सप्लाई नहीं हो पा रही है. वो घोड़े खच्चर की मदद से भी अपनी दुकान में सामान नहीं ला सकते क्योंकि सामान की ढुलाई के लिए जेब तो ढीली करनी पड़ेगी लेकिन वो दुकान में सामान को MRP से ज्यादा नहीं बेच सकते.

Himachal Flood Side Effect
टमाटर समेत अन्य फसलें पैदल ही पहुंचा रहे बाजार

लोगों की मांग क्या है- मणिकर्ण से लेकर सैंज घाटी के विभिन्न ग्रामीण इलाकों का यही हाल है. स्थानीय ग्रामीण हरी राम, रोशन लाल, महेंद्र सिंह, निर्मल ठाकुर का कहना है कि बीते महीने आई आपदा में उनके इलाके में कई पुल बह गए थे. इन पुलों के सहारे उनकी राह आसान होती थी लेकिन अब लंबा रास्ता तय करना पढ़ता है और पैदल ही सामान ढोना पढ़ रहा है या घोड़ें, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है. ग्रामीणों की मांग है कि उनके इलाके में जल्द से जल्द झूला पुल स्थापित किए जाने चाहिए ताकि लोगों को कम से कम घर द्वार तक राशन लाने में सहूलियत हो सके.

देहुरी धार पंचायत के प्रधान भगतराम और पूर्व प्रधान निर्मला देवी का कहना है कि उनके इलाके में झूला पुल लगाने का काम तो शुरू कर दिया गया है लेकिन वह काफी धीमी रफ्तार से हो रहा है. अगर ये काम वक्त पर हो जाए तो बाजार से सामान लाने से लेकर मंडी तक फल सब्जी पहुंचाने और मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने की राह कुछ आसान हो जाए. गौरतलब है कि पहाड़ी इलाकों में नदी नालों पर झूला पुल एक अस्थायी लेकिन बहुत ही कारगर व्यवस्था होती है.

क्या कहता है प्रशासन- लोक निर्माण विभाग के मैकेनिकल विंग के अधिशासी अभियंता जीएल ठाकुर ने बताया कि रोपा में झूला पुल लगाने का काम शुरू कर दिया गया है और जल्द ही बाकी पुल का काम भी शुरू कर दिया जाएगा ताकि लोगों को दिक्कतों का सामना ना करना पड़े. जिला उपायुक्त कुल्लू आशुतोष गर्ग ने कहा कि विभाग को इन इलाकों में झूला पुल लगाने का काम तेज गति से पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं. इसके अलावा सड़कों की बहाली का काम भी किया जा रहा है. जल्द ही मणिकर्ण से बरशैणी सड़क को बड़े वाहनों के लिए खोल दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें: 2 दिन में 75 किलोमीटर पैदल चलकर जिला मुख्यालय पहुंचे ग्रामीण, बाढ़ में बह गए रास्ते और पुल, हाथ जोड़कर कहा मदद करो सरकार

कुल्लू : भूख लगने पर मोबाइल पर एक क्लिक में आपका मनपसंद खाना घर पहुंच जाता है. कहीं जाना हो तो एक क्लिक पर कैब आपके दरवाजे पर पहुंच जाती है. लेकिन दुनिया में हर किसी के पास इतनी सहूलियतें नहीं है. हिमाचल प्रदेश में आई भीषण आपदा के बाद जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट तो रही है लेकिन यहां जिंदगी जीने के लिए जरूरी सामान जुटाना फिलहाल सबसे बड़ी जद्दोजहद है. इन दिनों मीडिया और सोशल मीडिया में पाकिस्तान की महंगाई के चर्चे हैं. लेकिन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भी इन दिनों रोजमर्रा के सामान की कीमत घर पहुंचते पहुंचते लगभग दोगुना हो जाता है. यहां आपदा का साइडइफेक्ट या यूं कहें आफ्टर इफेक्ट महंगाई के रूप में सामने आ रहा है.

1000 रुपये की आटे की बोरी 800 रुपये ढुलाई- कंगाली में आटा गीला होने की कहावत आपने सुनी होगी, लेकिन कुल्लू जिले के कई गांव इस कहावत को साक्षात झेल रहे हैं. पहले आसमान से बरसी आफत में कईयों का सबकुछ बह गया और अब जिंदा रहना ही सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. ऐसा नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में महंगाई बढ़ गई है. दरअसल महंगाई की ये मार आपदा की वजह से पड़ रही है. भारी बारिश और लैंड स्लाइड के कारण सड़कें टूट गई हैं, नदियों पर बने पुल बह गए हैं. जिसके कारण आटा, दाल, चावल जैसी चीजें लाने के लिए कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. इतनी दूर से सामान जुटाने के लिए घोड़े और खच्चरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. 1000 रुपये की आटे या चावल की बोरी को घर तक पहुंचाने के लिए 600 से 800 रुपये देने पड़ रहे हैं.

Himachal Flood Side Effect
1000 रुपये की आटे की बोरी 800 रुपये ढुलाई

सामान की ढुलाई पड़ रही महंगी- कुल्लू जिले की मणिकर्ण और सैंज घाटी पर इस बार कुदरत की ऐसी मार पड़ी कि सैलाब का पानी को निकल गया है लेकिन इसके निशान अब जिंदगी की राह मुश्किल कर रहे हैं. मणिकर्ण से बरशैणी सड़क मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुआ है. 20 किलोमीटर का यह सड़क मार्ग छोटे वाहनों की आवाजाही के लिए शुरू कर दिया गया है लेकिन बड़े वाहनों के लिए फिलहाल इंतजार करना होगा. यही वजह है कि बरशैणी पंचायत और आस-पास के रहने वाले लोगों को राशन लेने के लिए मणिकर्ण का रुख करना पड़ रहा है. ऐसे में लोगों को या तो छोटे वाहनों में सामान ढोना पड़ रहा है या फिर उन्हें घोड़े खच्चर की मदद लेनी पड़ रही है. जिसका अतिरिक्त किराया कंगाली में आटा गीला कर रहा है. सैंज और मणिकर्ण की करीब 6 पंचायतों के 30 से ज्यादा गांव की इन दिनों यही सबसे बड़ी परेशानी है.

Himachal Flood Side Effect
ढुलाई के कारण हर चीज के दाम दोगुने हो जाते हैं

किराना दुकानों में सामान खत्म- आपदा के शुरुआती दौर में प्रशासन ने हैलीकॉप्टर के जरिये सैंज और मणिकर्ण जैसे इलाकों में गांव-गांव राशन भी पहुंचाया था लेकिन अब गांव में राशन खत्म हो गया है. गांव की दुकानों में भी राशन से लेकर अन्य सामान खत्म हो चुका है क्योंकि सड़के ठीक ना होने के चलते किराना की दुकान में सामान की सप्लाई नहीं पहुंच रही है. ऐसे में सबसे नजदीकी बाजार 25 से 30 किलोमीटर दूर है. बाजार से घर के लिए राशन लाने के लिए लोगों को घोड़े, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है. जिसके लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं और जेब पर बोझ बढ़ता जा रहा है.

Himachal Flood Side Effect
राशन समेत रोजमर्रा की चीजें कई किलोमीटर दूर से लानी पड़ रही हैं

हर सामान का दाम लगभग डबल- आटे और चावल की बोरी अगर बाजार में 1000 रुपये की मिल रही है तो उसे घर तक पहुंचाने के लिए 600 से 800 रुपये देने पड़ रहे हैं. LPG सिलेंडर की सप्लाई भी सड़क ना होने के कारण ठप है ऐसे में बाजार से रसोई तक सिलेंडर पहुंचाने के लिए 600 रुपये देने पड़ेंगे. 20 रुपये की पानी की बोतल घर तक पहुंचते-पहुंचते 35 रुपये की पड़ रही है. कुल मिलाकर सामान की ढुलाई लोगों की आर्थिक सेहत बिगाड़ रही है. इन इलाकों में आपदा के बाद से बिजली भी नहीं है, लेकिन इन लोगों के लिए चुनौतियों का पहाड़ इससे भी ऊंचा है.

मुश्किलें और भी हैं- इस इलाके के लोगों की मुश्किल सिर्फ राशन या रोजमर्रा की चीजें लाने तक ही सीमित नहीं हैं. देहुरी धार पंचायत के प्रधान भगतराम बताते हैं कि खेतों में फल और सब्जियों की फसल तैयार है. जिन्हें इस वक्त लोग बेचने के लिए बाजार और मंडियों तक जाते हैं लेकिन सड़क ना होने के कारण टमाटर समेत अन्य सब्जियां पीठ पर लादकर बाजार पहुंचाई जा रही हैं. इसी तरह इन दिनों अगर कोई बीमार पड़ जाए तो अस्पताल तक जाने वाली सड़क तक मरीज को बड़ी मुश्किल से पहुंचाया जाता है.

Himachal Flood Side Effect
मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए करनी पड़ती है कड़ी मशक्कत

किराना दुकान वाले नहीं ला रहे सामान- इन दिनों इस इलाके में हर किसी का दर्द एक सा है. बरशैणी में दुकान चलाने वाले रोशन लाल कहते हैं कि दुकान खाली पड़ी है लेकिन सड़क बंद होने के कारण उनकी दुकान में किसी चीज की सप्लाई नहीं हो पा रही है. वो घोड़े खच्चर की मदद से भी अपनी दुकान में सामान नहीं ला सकते क्योंकि सामान की ढुलाई के लिए जेब तो ढीली करनी पड़ेगी लेकिन वो दुकान में सामान को MRP से ज्यादा नहीं बेच सकते.

Himachal Flood Side Effect
टमाटर समेत अन्य फसलें पैदल ही पहुंचा रहे बाजार

लोगों की मांग क्या है- मणिकर्ण से लेकर सैंज घाटी के विभिन्न ग्रामीण इलाकों का यही हाल है. स्थानीय ग्रामीण हरी राम, रोशन लाल, महेंद्र सिंह, निर्मल ठाकुर का कहना है कि बीते महीने आई आपदा में उनके इलाके में कई पुल बह गए थे. इन पुलों के सहारे उनकी राह आसान होती थी लेकिन अब लंबा रास्ता तय करना पढ़ता है और पैदल ही सामान ढोना पढ़ रहा है या घोड़ें, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है. ग्रामीणों की मांग है कि उनके इलाके में जल्द से जल्द झूला पुल स्थापित किए जाने चाहिए ताकि लोगों को कम से कम घर द्वार तक राशन लाने में सहूलियत हो सके.

देहुरी धार पंचायत के प्रधान भगतराम और पूर्व प्रधान निर्मला देवी का कहना है कि उनके इलाके में झूला पुल लगाने का काम तो शुरू कर दिया गया है लेकिन वह काफी धीमी रफ्तार से हो रहा है. अगर ये काम वक्त पर हो जाए तो बाजार से सामान लाने से लेकर मंडी तक फल सब्जी पहुंचाने और मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने की राह कुछ आसान हो जाए. गौरतलब है कि पहाड़ी इलाकों में नदी नालों पर झूला पुल एक अस्थायी लेकिन बहुत ही कारगर व्यवस्था होती है.

क्या कहता है प्रशासन- लोक निर्माण विभाग के मैकेनिकल विंग के अधिशासी अभियंता जीएल ठाकुर ने बताया कि रोपा में झूला पुल लगाने का काम शुरू कर दिया गया है और जल्द ही बाकी पुल का काम भी शुरू कर दिया जाएगा ताकि लोगों को दिक्कतों का सामना ना करना पड़े. जिला उपायुक्त कुल्लू आशुतोष गर्ग ने कहा कि विभाग को इन इलाकों में झूला पुल लगाने का काम तेज गति से पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं. इसके अलावा सड़कों की बहाली का काम भी किया जा रहा है. जल्द ही मणिकर्ण से बरशैणी सड़क को बड़े वाहनों के लिए खोल दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें: 2 दिन में 75 किलोमीटर पैदल चलकर जिला मुख्यालय पहुंचे ग्रामीण, बाढ़ में बह गए रास्ते और पुल, हाथ जोड़कर कहा मदद करो सरकार

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.