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बिहार में हिंदू सवर्णों का पलायन दर सबसे अधिक, जानें उन्हीं की जुबानी इसके पीछे का कारण

Migration From Bihar: यह कड़वी सच्चाई है कि बिहार की बड़ी आबादी रोजगार से लेकर बेहतर शिक्षा तक के लिए दूसरे देश या राज्य पलायन करने को मजबूर हैं. बिहार में हाल ही में जातीय गणना की विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई है. इसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. इसके अनुसार बिहार में हिंदुओं में सबसे अधिक पलायन सवर्णों में देखने को मिला है. पढ़ें ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.

बिहार में हिंदू सवर्णों का पलायन
बिहार में हिंदू सवर्णों का पलायन
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 21, 2023, 8:02 PM IST

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पटना: बिहार में हाल ही में जातीय गणना की विस्तृत रिपोर्ट पेश की गयी. इसके अनुसार बिहार में हिंदुओं में सवर्णों में सबसे अधिक पलायन है. बिहार के हिंदू सवर्ण वर्गों में पलायन दर 9.98% है. वहीं ओबीसी का 5.39% और ईबीसी का 3.9% है. यह पलायन 1990 की दौड़ से तेज हुआ है और पलायन करने वालों की मानें तो बिहार में प्रतिभा के अनुरूप उनके पास अवसर नहीं है.

बिहार से पलायन के सबसे बड़े कारण: प्रवासी बिहारियों का कहना है कि अवसर नहीं होने के कारण उसकी तलाश में दूसरे प्रदेशों में और विदेशों में जाना पड़ता है. वहीं एक्सपर्ट की मानें तो उनका कहना है कि इसका कारण पूल फैक्टर है यानी कि संपन्न लोग रोजगार के बेहतर अवसर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर शिक्षा की व्यवस्था बेहतर कानून व्यवस्था के लिए उन जगहों पर पलायन करते हैं जहां यह उपलब्ध है.

रेडियो जॉकी चंदा झा
रेडियो जॉकी चंदा झा

'स्कॉटलैंड में रहना मजबूरी': ऐसे ही कुछ सवर्णों से जो बिहार छोड़कर दूसरे देश में जाकर बस गए हैं, ईटीवी भारत ने बात की है. उन्हीं में से एक हैं पटना के रहने वाले वेदांत वर्मा जो छठ में घर आए हुए हैं. उनके पिताजी बिहार सरकार में अधिकारी पद से रिटायर हुए हैं. मास्टर्स डिग्री के लिए वह स्कॉटलैंड गए और वहीं उन्हें अच्छे पैकेज की नौकरी मिल गई. वेदांत ने बताया कि वहां उनकी सैलरी करोड़ के पैकेज में है और यह पैकेज बिहार में नहीं मिल सकता.

"मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार में कोशिश की थी लेकिन यहां इंडस्ट्री नहीं है और ना ही इस प्रकार माहौल है. स्कॉटलैंड में सोशल मीडिया स्ट्रेटजिस्ट के तौर पर काम करता हूं. माता-पिता के साथ रहना अच्छा लगता है लेकिन मेरे अनुरूप यहां जॉब ही नहीं है, जिस कारण स्कॉटलैंड में जॉब करते हैं. अकेलापन जरूर खलता है. यहां अच्छी सैलरी में मेरे लायक काम मिले तो जरूर शिफ्ट कर जाएंगे."- वेदांत वर्मा, प्रवासी बिहारी

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX

रेडियो जॉकी चंदा झा ने भी साझा किया अपना दर्द: लंदन से छठ मनाने बिहार पहुंचीं रेडियो जॉकी में काम करने वाली चंदा झा ने बताया कि बिहार में जातीय जनगणना के बेस पर देखा जाए तो तो यहां पर रहना मुश्किल है. आरक्षण के कारण नौकरी खोजने में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. टैलेंट और क्वालिफिकेशन अगर ना हो तो बिहार में उच्च जाति के लोगों को नौकरी मिलना मुश्किल है.

छठ मनाने बिहार आईं रेडियो जॉकी चंदा झा
छठ मनाने बिहार आईं रेडियो जॉकी चंदा झा

"टैलेंट और क्वालिफिकेशन होने के बावजूद भी उच्च जाति के लोग नौकरी से वंचित रह जाते हैं. आरक्षण इतना हावी है कि टैलेंट और क्वालिफिकेशन कहीं काम नहीं आता. जातीय जनगणना के हिसाब से अगर बिहार में रहती तो शायद यह मुकाम हासिल नहीं कर पाती. क्योंकि आरक्षण पूरी तरह से हावी है और आरक्षण के हिसाब से मुझे नौकरी नहीं मिलती."- चंदा झा, रेडियो जॉकी

'आरक्षण नहीं टैलेंट आएगा काम' -चंदा झा: चंदा झा ने बताया कि वह मैथिल ब्राह्मण हैं. उनका बेटा लंदन के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ता है. उन्होंने बताया कि हमारे बच्चे सिर्फ इतना जानते हैं कि हम उच्च जाति में मैथिल ब्राह्मण हैं. लेकिन अगर कुछ करना है, कोई मुकाम हासिल करना है तो सिर्फ मेरी पढ़ाई, मेरा टैलेंट एजुकेशन ही काम आएगा. इसलिए मैं अपने बच्चों के पढ़ाई और एजुकेशन पर ज्यादा ध्यान देती हूं. मुझे बिहार की याद हमेशा आती है. खासकर जब भी कोई त्योहार आता है तो बिहार की याद आती है.

सही सैलरी और काम नहीं मिलता: वहीं पटना के अनीसाबाद के रहने वाले प्रणव राज ने भी अपने पलायन की पीड़ा को बताया. पटना में प्रतिभा के अनुरूप रोजगार और उसका वाजिब मूल्य नहीं मिल पाने के कारण नोएडा पलायन कर गए हैं. छठ मनाने घर आए और अब वापस लौट रहे हैं.

"मैं प्राइवेट सेक्टर बैंकिंग में हूं. बिहार में अगर मुझे नौकरी मिलती और वाजिब वेतन मिलता तो बिहार में शिफ्ट कर जाता. पटना में घर पर माताजी अकेले रहती हैं और पिताजी नहीं हैं. मैं घर का इकलौता बेटा हूं."- प्रणव राज, प्रवासी बिहारी

दिल्ली में रहते हैं विजय: पटना के विजय कुमार झा वकालत करने के बाद दिल्ली में शिफ्ट हो गए हैं. पहले हाई कोर्ट में वकील थे लेकिन बाद में अच्छे करियर के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए हैं. उन्होंने बताया कि बिहार में कॉर्पोरेट होते, मार्केट वैल्यूएशन होता तो बिहार से बाहर शिफ्ट नहीं करते.

"जितनी मेरी शिक्षा है जितना मेरा एजुकेशन है, उस अनुरूप बिहार में पैसा नहीं कमा पा रहे थे. घर चलाने के लिए पैसे की बेहद जरूरत होती है. बाहर जाना पड़ा."- विजय कुमार झा,प्रवासी बिहारी

बिहार से पलायन पर एक्सपर्ट की राय: बिहार के प्रख्यात समाजशास्त्री और नक्सल आंदोलन पर रिसर्च करने वाले ए एन सिंह इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि हिंदू सवर्णों के पलायन को यदि समझना है तो बिहार के समाज में जो ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है उसको देखने की आवश्यकता है. साल 1990 के दौर से यह पलायन शुरू हुआ है. यह वह दौर है जब मंडल कमीशन लागू हुआ और उसे समय जब कई जातियों का उभरा हुआ और आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई उसे समय अपर कास्ट के लोगों के लिए कोई अधिक विकल्प नहीं थे.

"इसी समय दूसरी बड़ी घटना घटी. 1995 के करीब जो एलपीजी रिजीम कहा जाता है यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन का दौर. इसमें जो बड़ी-बड़ी कंपनियां थी, विदेशी कंपनियां, वह बड़े-बड़े शहरों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, मद्रास या और भी जो विकसित शहर थे जैसे अहमदाबाद इस तरह के जगहों में आए. लेकिन इसका फायदा बिहार के समाज को नहीं मिल पाया."- प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद, प्रख्यात समाजशास्त्री

मजबूरी में नहीं किया गया था पलायन: डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि एक तरफ आरक्षण के कारण सवर्ण वर्ग के बीच जब की कमी आ गई थी और दूसरी और प्राइवेट सेक्टर में नई जॉब उभर रहे थे. इसका पूरा फायदा ऊंची जाति के लोगों ने उठाया. इन्हें पलायन के लिए विवश नहीं किया गया है बल्कि अपने बच्चों के बेहतर शिक्षा व्यवस्था, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, बेहतर रोजगार के अवसर, बेहतर कानून व्यवस्था बेहतर जीवन शैली इत्यादि के लिए लोगों ने पलायन किया है.

डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि बिहार में शहरीकरण का दौर देश के अन्य राज्यों के तुलना में काफी कम है, यहां मात्र 15.3% है. यानी 85% आबादी गांव में रहती है और इन 85% आबादी में 75% कृषि और इससे जुड़े कार्यों से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा बिहार में एंप्लॉयमेंट 36% है और 64% आबादी अन एंप्लॉयड या अंदर एंप्लॉयड है.

इसे भी पढ़ेंः Bihar Assembly Winter Session: जातीय गणना की डिटेल रिपोर्ट सदन में पेश, CM बोले- सबकी राय से हुआ सर्वे

इसे भी पढ़ेंः कोसी-सीमांचल से हजारों मजदूरों का पलायन शुरू, कब थमेगा ये सिलसिला?

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पटना: बिहार में हाल ही में जातीय गणना की विस्तृत रिपोर्ट पेश की गयी. इसके अनुसार बिहार में हिंदुओं में सवर्णों में सबसे अधिक पलायन है. बिहार के हिंदू सवर्ण वर्गों में पलायन दर 9.98% है. वहीं ओबीसी का 5.39% और ईबीसी का 3.9% है. यह पलायन 1990 की दौड़ से तेज हुआ है और पलायन करने वालों की मानें तो बिहार में प्रतिभा के अनुरूप उनके पास अवसर नहीं है.

बिहार से पलायन के सबसे बड़े कारण: प्रवासी बिहारियों का कहना है कि अवसर नहीं होने के कारण उसकी तलाश में दूसरे प्रदेशों में और विदेशों में जाना पड़ता है. वहीं एक्सपर्ट की मानें तो उनका कहना है कि इसका कारण पूल फैक्टर है यानी कि संपन्न लोग रोजगार के बेहतर अवसर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर शिक्षा की व्यवस्था बेहतर कानून व्यवस्था के लिए उन जगहों पर पलायन करते हैं जहां यह उपलब्ध है.

रेडियो जॉकी चंदा झा
रेडियो जॉकी चंदा झा

'स्कॉटलैंड में रहना मजबूरी': ऐसे ही कुछ सवर्णों से जो बिहार छोड़कर दूसरे देश में जाकर बस गए हैं, ईटीवी भारत ने बात की है. उन्हीं में से एक हैं पटना के रहने वाले वेदांत वर्मा जो छठ में घर आए हुए हैं. उनके पिताजी बिहार सरकार में अधिकारी पद से रिटायर हुए हैं. मास्टर्स डिग्री के लिए वह स्कॉटलैंड गए और वहीं उन्हें अच्छे पैकेज की नौकरी मिल गई. वेदांत ने बताया कि वहां उनकी सैलरी करोड़ के पैकेज में है और यह पैकेज बिहार में नहीं मिल सकता.

"मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार में कोशिश की थी लेकिन यहां इंडस्ट्री नहीं है और ना ही इस प्रकार माहौल है. स्कॉटलैंड में सोशल मीडिया स्ट्रेटजिस्ट के तौर पर काम करता हूं. माता-पिता के साथ रहना अच्छा लगता है लेकिन मेरे अनुरूप यहां जॉब ही नहीं है, जिस कारण स्कॉटलैंड में जॉब करते हैं. अकेलापन जरूर खलता है. यहां अच्छी सैलरी में मेरे लायक काम मिले तो जरूर शिफ्ट कर जाएंगे."- वेदांत वर्मा, प्रवासी बिहारी

ईटीवी भारत GFX
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रेडियो जॉकी चंदा झा ने भी साझा किया अपना दर्द: लंदन से छठ मनाने बिहार पहुंचीं रेडियो जॉकी में काम करने वाली चंदा झा ने बताया कि बिहार में जातीय जनगणना के बेस पर देखा जाए तो तो यहां पर रहना मुश्किल है. आरक्षण के कारण नौकरी खोजने में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. टैलेंट और क्वालिफिकेशन अगर ना हो तो बिहार में उच्च जाति के लोगों को नौकरी मिलना मुश्किल है.

छठ मनाने बिहार आईं रेडियो जॉकी चंदा झा
छठ मनाने बिहार आईं रेडियो जॉकी चंदा झा

"टैलेंट और क्वालिफिकेशन होने के बावजूद भी उच्च जाति के लोग नौकरी से वंचित रह जाते हैं. आरक्षण इतना हावी है कि टैलेंट और क्वालिफिकेशन कहीं काम नहीं आता. जातीय जनगणना के हिसाब से अगर बिहार में रहती तो शायद यह मुकाम हासिल नहीं कर पाती. क्योंकि आरक्षण पूरी तरह से हावी है और आरक्षण के हिसाब से मुझे नौकरी नहीं मिलती."- चंदा झा, रेडियो जॉकी

'आरक्षण नहीं टैलेंट आएगा काम' -चंदा झा: चंदा झा ने बताया कि वह मैथिल ब्राह्मण हैं. उनका बेटा लंदन के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ता है. उन्होंने बताया कि हमारे बच्चे सिर्फ इतना जानते हैं कि हम उच्च जाति में मैथिल ब्राह्मण हैं. लेकिन अगर कुछ करना है, कोई मुकाम हासिल करना है तो सिर्फ मेरी पढ़ाई, मेरा टैलेंट एजुकेशन ही काम आएगा. इसलिए मैं अपने बच्चों के पढ़ाई और एजुकेशन पर ज्यादा ध्यान देती हूं. मुझे बिहार की याद हमेशा आती है. खासकर जब भी कोई त्योहार आता है तो बिहार की याद आती है.

सही सैलरी और काम नहीं मिलता: वहीं पटना के अनीसाबाद के रहने वाले प्रणव राज ने भी अपने पलायन की पीड़ा को बताया. पटना में प्रतिभा के अनुरूप रोजगार और उसका वाजिब मूल्य नहीं मिल पाने के कारण नोएडा पलायन कर गए हैं. छठ मनाने घर आए और अब वापस लौट रहे हैं.

"मैं प्राइवेट सेक्टर बैंकिंग में हूं. बिहार में अगर मुझे नौकरी मिलती और वाजिब वेतन मिलता तो बिहार में शिफ्ट कर जाता. पटना में घर पर माताजी अकेले रहती हैं और पिताजी नहीं हैं. मैं घर का इकलौता बेटा हूं."- प्रणव राज, प्रवासी बिहारी

दिल्ली में रहते हैं विजय: पटना के विजय कुमार झा वकालत करने के बाद दिल्ली में शिफ्ट हो गए हैं. पहले हाई कोर्ट में वकील थे लेकिन बाद में अच्छे करियर के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए हैं. उन्होंने बताया कि बिहार में कॉर्पोरेट होते, मार्केट वैल्यूएशन होता तो बिहार से बाहर शिफ्ट नहीं करते.

"जितनी मेरी शिक्षा है जितना मेरा एजुकेशन है, उस अनुरूप बिहार में पैसा नहीं कमा पा रहे थे. घर चलाने के लिए पैसे की बेहद जरूरत होती है. बाहर जाना पड़ा."- विजय कुमार झा,प्रवासी बिहारी

बिहार से पलायन पर एक्सपर्ट की राय: बिहार के प्रख्यात समाजशास्त्री और नक्सल आंदोलन पर रिसर्च करने वाले ए एन सिंह इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि हिंदू सवर्णों के पलायन को यदि समझना है तो बिहार के समाज में जो ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है उसको देखने की आवश्यकता है. साल 1990 के दौर से यह पलायन शुरू हुआ है. यह वह दौर है जब मंडल कमीशन लागू हुआ और उसे समय जब कई जातियों का उभरा हुआ और आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई उसे समय अपर कास्ट के लोगों के लिए कोई अधिक विकल्प नहीं थे.

"इसी समय दूसरी बड़ी घटना घटी. 1995 के करीब जो एलपीजी रिजीम कहा जाता है यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन का दौर. इसमें जो बड़ी-बड़ी कंपनियां थी, विदेशी कंपनियां, वह बड़े-बड़े शहरों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, मद्रास या और भी जो विकसित शहर थे जैसे अहमदाबाद इस तरह के जगहों में आए. लेकिन इसका फायदा बिहार के समाज को नहीं मिल पाया."- प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद, प्रख्यात समाजशास्त्री

मजबूरी में नहीं किया गया था पलायन: डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि एक तरफ आरक्षण के कारण सवर्ण वर्ग के बीच जब की कमी आ गई थी और दूसरी और प्राइवेट सेक्टर में नई जॉब उभर रहे थे. इसका पूरा फायदा ऊंची जाति के लोगों ने उठाया. इन्हें पलायन के लिए विवश नहीं किया गया है बल्कि अपने बच्चों के बेहतर शिक्षा व्यवस्था, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, बेहतर रोजगार के अवसर, बेहतर कानून व्यवस्था बेहतर जीवन शैली इत्यादि के लिए लोगों ने पलायन किया है.

डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि बिहार में शहरीकरण का दौर देश के अन्य राज्यों के तुलना में काफी कम है, यहां मात्र 15.3% है. यानी 85% आबादी गांव में रहती है और इन 85% आबादी में 75% कृषि और इससे जुड़े कार्यों से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा बिहार में एंप्लॉयमेंट 36% है और 64% आबादी अन एंप्लॉयड या अंदर एंप्लॉयड है.

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