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हाईकोर्ट ने मशहूर शायर मुनव्वर राणा की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से किया इनकार

इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने वाल्मीकि समुदाय की तालिबान से तुलना करने के मामले में हजरतगंज कोतवाली में शायर मुनव्‍वर राणा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

Rana
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Published : Sep 3, 2021, 10:42 PM IST

लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ से मुनव्वर राणा को राहत नहीं मिली. अदालत ने राणा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें अपना काम करना चाहिए और किसी भी समुदाय पर टिप्पणी नहीं करना चाहिए.

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए राणा के वकील से पूछा कि आप (राणा) इस तरह की टिप्पणी क्यों करते हैं. आप जो काम करते हैं, वह क्यों नहीं करते हैं. राना ने अदालत में सरोकार फाउंडेशन के उपाध्‍यक्ष पीएल भारती द्वारा उनके खिलाफ 20 अगस्त को दर्ज कराई गई प्राथमिकी को चुनौती दी थी और मामले की विवेचना के दौरान अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का अनुरोध किया था.

भारती ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि राणा ने कहा है कि तालिबान भी दस साल बाद वाल्मीकि होगा. यह कथन भगवान वाल्मीकि और उनके अनुयायियों का अपमान करने के समान है जो उन्हें अपने भगवान के रूप में मानते हैं. यह पूरे दलित समुदाय का भी अपमान है.

भारती ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में दर्ज प्राथमिकी में राना पर यह आरोप लगाया था. राना के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और आपराधिक मामला दर्ज करके इसे दबाया नहीं जा सकता है.

वकील ने यह भी दलील दी कि राजनीतिक कारणों से मामला दर्ज किया गया लिहाजा अदालत को दखल देना चाहिए. याचिका का विरोध करते हुए शासकीय अधिवक्ता एसएन तिलहरी ने तर्क दिया कि बोलने का अधिकार निर्बाध नहीं है और राणा ने देश में दलित समुदाय की भावनाओं का अपमान करने और उन्हें भड़काने के लिए बयान दिया.

यह भी पढ़ें-दिल्ली पुलिस ने बरामद की अपहृत लड़की, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यूपी पुलिस को आईना दिखाने वाला काम

राणा के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी और नसीहत दी कि उन्हें इस तरह की टिप्पणी करने के बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ से मुनव्वर राणा को राहत नहीं मिली. अदालत ने राणा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें अपना काम करना चाहिए और किसी भी समुदाय पर टिप्पणी नहीं करना चाहिए.

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए राणा के वकील से पूछा कि आप (राणा) इस तरह की टिप्पणी क्यों करते हैं. आप जो काम करते हैं, वह क्यों नहीं करते हैं. राना ने अदालत में सरोकार फाउंडेशन के उपाध्‍यक्ष पीएल भारती द्वारा उनके खिलाफ 20 अगस्त को दर्ज कराई गई प्राथमिकी को चुनौती दी थी और मामले की विवेचना के दौरान अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का अनुरोध किया था.

भारती ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि राणा ने कहा है कि तालिबान भी दस साल बाद वाल्मीकि होगा. यह कथन भगवान वाल्मीकि और उनके अनुयायियों का अपमान करने के समान है जो उन्हें अपने भगवान के रूप में मानते हैं. यह पूरे दलित समुदाय का भी अपमान है.

भारती ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में दर्ज प्राथमिकी में राना पर यह आरोप लगाया था. राना के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और आपराधिक मामला दर्ज करके इसे दबाया नहीं जा सकता है.

वकील ने यह भी दलील दी कि राजनीतिक कारणों से मामला दर्ज किया गया लिहाजा अदालत को दखल देना चाहिए. याचिका का विरोध करते हुए शासकीय अधिवक्ता एसएन तिलहरी ने तर्क दिया कि बोलने का अधिकार निर्बाध नहीं है और राणा ने देश में दलित समुदाय की भावनाओं का अपमान करने और उन्हें भड़काने के लिए बयान दिया.

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राणा के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी और नसीहत दी कि उन्हें इस तरह की टिप्पणी करने के बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

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