ETV Bharat / bharat

घरेलू हिंसा के तहत मुकदमे आपराधिक नहीं : लखनऊ बेंच - हाईकोर्ट न्यूज

हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने घरेलू हिंसा अधिनियम के संबंध में स्पष्ट किया कि, घरेलू हिंसा के तहत मुकदमे आपराधिक नहीं, बल्कि सिविल प्रकृति के होते हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मुकदमों पर मियाद अधिनियम भी लागू नहीं हो सकता.

high court
high court
author img

By

Published : Oct 26, 2021, 9:44 PM IST

लखनऊ : हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने घरेलू हिंसा अधिनियम के संबंध में विधिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इसके तहत दाखिल होने वाले मुकदमे सिविल प्रकृति के होते हैं. लिहाजा इन मुकदमों की कार्यवाही पर दंड प्रक्रिया संहिता लागू नहीं होती. इसी के साथ न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि उक्त अधिनियम के तहत दाखिल होने वाले मुकदमों पर मियाद अधिनियम भी लागू नहीं होता.

यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने त्रिलोचन सिंह बनाम मनप्रीत कौर व यूपी स्टेट शीर्षक से विचाराधीन मामले पर दिया. एकल पीठ द्वारा दो विधिक प्रश्नों को तय करने के लिए मामला वृहद पीठ को संदर्भित किया गया था. पहला प्रश्न था कि काफी समय बीतने के बाद घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दाखिल मुकदमा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के तहत कालबाधित माना जाएगा अथवा नहीं. न्यायालय ने इस पर विस्तार से उत्तर देते हुए कहा कि, धारा 12 के तहत दाखिल मुकदमा अनुतोष की प्राप्ति के लिए होता है. इसलिए यह सिविल प्रकृति का मुकदमा होता है. लिहाजा ऐसे मुकदमे पर दंड प्रक्रिया संहिता लागू नहीं होती.

दूसरा प्रश्न था कि यदि इसे सिविल प्रकृति का माना जाए तो क्या मियाद अधिनियम के तहत वाद हेतु उत्पन्न होने के तीन वर्ष के भीतर ही मुकदमे को दाखिल होना चाहिए अथवा किसी भी समय इसे दाखिल किया जा सकता है. इसका उत्तर देते हुए न्यायालय ने कहा कि विधायिका ने ऐसे मुकदमे पर कोई मियाद तय नहीं किया है. लिहाजा मियाद अधिनियम भी इन मुकदमों पर लागू नहीं होगा. इसे 'उचित समयावधि' के भीतर दाखिल होना चाहिए व 'उचित समयावधि' क्या होगी, यह प्रत्येक मामले के तथ्य पर निर्भर करेगा.

पढ़ेंः पदोन्नति में आरक्षण मामले पर SC ने फैसला सुरक्षित रखा

लखनऊ : हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने घरेलू हिंसा अधिनियम के संबंध में विधिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इसके तहत दाखिल होने वाले मुकदमे सिविल प्रकृति के होते हैं. लिहाजा इन मुकदमों की कार्यवाही पर दंड प्रक्रिया संहिता लागू नहीं होती. इसी के साथ न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि उक्त अधिनियम के तहत दाखिल होने वाले मुकदमों पर मियाद अधिनियम भी लागू नहीं होता.

यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने त्रिलोचन सिंह बनाम मनप्रीत कौर व यूपी स्टेट शीर्षक से विचाराधीन मामले पर दिया. एकल पीठ द्वारा दो विधिक प्रश्नों को तय करने के लिए मामला वृहद पीठ को संदर्भित किया गया था. पहला प्रश्न था कि काफी समय बीतने के बाद घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दाखिल मुकदमा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के तहत कालबाधित माना जाएगा अथवा नहीं. न्यायालय ने इस पर विस्तार से उत्तर देते हुए कहा कि, धारा 12 के तहत दाखिल मुकदमा अनुतोष की प्राप्ति के लिए होता है. इसलिए यह सिविल प्रकृति का मुकदमा होता है. लिहाजा ऐसे मुकदमे पर दंड प्रक्रिया संहिता लागू नहीं होती.

दूसरा प्रश्न था कि यदि इसे सिविल प्रकृति का माना जाए तो क्या मियाद अधिनियम के तहत वाद हेतु उत्पन्न होने के तीन वर्ष के भीतर ही मुकदमे को दाखिल होना चाहिए अथवा किसी भी समय इसे दाखिल किया जा सकता है. इसका उत्तर देते हुए न्यायालय ने कहा कि विधायिका ने ऐसे मुकदमे पर कोई मियाद तय नहीं किया है. लिहाजा मियाद अधिनियम भी इन मुकदमों पर लागू नहीं होगा. इसे 'उचित समयावधि' के भीतर दाखिल होना चाहिए व 'उचित समयावधि' क्या होगी, यह प्रत्येक मामले के तथ्य पर निर्भर करेगा.

पढ़ेंः पदोन्नति में आरक्षण मामले पर SC ने फैसला सुरक्षित रखा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.