कोलकाता : पश्चिम बंगाल में महिलाओं और बच्चों में औसत हीमोग्लोबिन की कमी का स्तर अब गंभीर हो गया है. वहीं, गर्भवती महिलाओं के मामले में भी औसत हीमोग्लोबिन की कमी का स्तर समान रूप से घट गया है, जो अत्यंत चिंताजनक है. यह तथ्य केंद्र सरकार के नवीनतम आंकड़ों से सामने आया है.
नीति आयोग ने मार्च 2020 तक विभिन्न राज्यों के लिए राज्य पोषण प्रोफाइल (State Nutrition Profiles-SNPs) हाल ही में जारी किया है. इस आकड़े के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं और बच्चों में औसत हीमोग्लोबिन की कमी का स्तर बिगड़ गया है.
गौरतलब है कि SNP के ये आंकड़े 14 साल की अवधि यानी मार्च 2006 से मार्च 2020 तक के हैं.
SNP के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में गर्भवती महिलाओं में औसत हीमोग्लोबिन की कमी का स्तर 54 पर था, जबकि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यानी मार्च 2020 तक यह आंकड़ा 62 पर पहुंच गया है.
वहीं, 49 साल तक के आयुवर्ग की महिलाओं के मामले में जो गर्भवती नहीं हैं, मार्च 2006 से मार्च 2020 के बीच यही तस्वीर उतनी ही दयनीय है. मार्च 2006 तक, जो महिलाएं गर्भवती नहीं थीं, उनमें औसत हीमोग्लोबिन की कमी का स्तर 63 था. लेकिन मार्च 2020 तक यही आंकड़ा 72 पर पहुंच गया.
बच्चों के मामले में औसत हीमोग्लोबिन की कमी का स्तर मार्च 2006 तक 61 था. जबकि मार्च 2020 तक यह आंकड़ा बढ़कर 69 हो गया है. प्रदेश में मुर्शिदाबाद, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, मालदा और बर्दवान में इसकी गंभीर तस्वीर सामने आई है.
स्थानीय चिकित्सकों और विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान कोविड-19 महामारी के कारण विभिन्न स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को उस अवधि के दौरान रोक दिया गया था, जिसकी वजह से इन मामलों के आंकड़े पिछले कुछ सालों में गंभीर हो गए हैं.
शहर के प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ जयदेब रॉय के अनुसार, आंकड़ों से स्पष्ट है कि यह स्थिति कभी भी सामान्य नहीं थी. मार्च 2006 तक राज्य में बच्चों के लिए हीमोग्लोबिन की कमी का औसत स्तर 61 था, जो कि सामान्य नहीं है. लेकिन हां, समय के साथ इसकी स्थिति गंभीर जरूर हो गई है. इसका कारण प्रदेश में विभिन्न स्वास्थ्य मिशन योजनाओं के कार्यान्वयन की कमी है.