कोलकाता : पश्चिम बंगाल भाजपा नेतृत्व ने इतनी भारी भीड़ को पहले कभी नहीं देखा होगा. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस या किसी अन्य राजनीतिक दल से भाजपा में शामिल होना 2017 तक दुर्लभ कारक था. हालांकि अब दृश्य पूरी तरह से बदल गया है.
मुख्य रूप से तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं का यह दैनिक मामला बन गया है. तृणमूल कांग्रेस का तर्क यह है कि जिन लोगों को नामांकन से वंचित किया गया है, वे इस उम्मीद के साथ भाजपा में शामिल हो रहे हैं कि भाजपा के टिकट पर संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकेंगे.
फिर लौटेंगे ममता के पास
अब इस बिंदु पर कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा खेमे में आए कितने नए नेताओं को उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया जा सकता है. हालांकि नामांकित होने की उम्मीद के साथ तृणमूल से भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की शिकायत हो सकती है. पर यह भी सच है कि उन्हें भाजपा की अंतिम उम्मीदवार सूची से भी बाहर रखा गया है. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री फिरहाद हकीम के अनुसार जो लोग भाजपा में शामिल हो गए हैं. उनमें से कई अपनी गलतियों को समझेंगे और फिर से तृणमूल कांग्रेस में प्रवेश के लिए ममता बनर्जी के दरवाजे पर लाइन लगाएंगे.
भाजपा ने नहीं किया वादा
हालांकि भाजपा नेताओं ने उन नए प्रवेशकों द्वारा शिकायतों की ऐसी संभावनाओं को खारिज कर दिया है, जिन्हें उम्मीदवारों की सूची से बाहर रखा गया है. राज्य भाजपा के प्रवक्ता के अनुसार, पार्टी कभी भी किसी को सशर्त प्रवेश नहीं देती है. नेता काम करने के लिए तृणमूल से भाजपा में आ रहे हैं. हमने उनसे कभी भी हमारे साथ जुड़ने के लिए कुछ वादा नहीं किया है. इसलिए नामांकन के लिए लालच का कोई सवाल ही नहीं है.
मोदी का चल रहा जादू
एक उदाहरण है, जहां एक विशेष व्यक्ति तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार सूची में जगह पाने के बावजूद भाजपा में शामिल हो गए हैं. दरअसल यह मोदी का जादू है जो सभी को भाजपा में शामिल होने के लिए आकर्षित कर रहा है. भाजपा के लोकसभा सदस्य अर्जुन सिंह के अनुसार, भाजपा में शामिल होने वाले एक भी व्यक्ति ने अपने लिए टिकट की मांग नहीं की है. उनमें से कई ने कहा कि वे सिर्फ इसलिए भाजपा में शामिल हुए हैं क्योंकि वे तृणमूल कांग्रेस को पराजित देखना चाहते हैं.
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तृणमूल कांग्रेस की पूर्व विधायक सोनाली गुहा, जो कभी ममता बनर्जी की करीबी थीं, ने स्पष्ट रूप से बताया कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं. ममता बनर्जी अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं और विधायकों का सम्मान नहीं करती हैं. वह केवल अपने भतीजे के बारे में परेशान हैं. भाजपा तृणमूल की तरह नहीं है, जो एक आंटी-नेफ्यू लिमिटेड कंपनी बनकर रह गई है.