नई दिल्ली: आतंकी टेरर फंडिंग मामले में दोषी कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा मौत की सजा की मांग वाली याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दिल्ली हाईकोर्ट में पेश हुए. जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनीश दयाल की खंडपीठ के मामले की सुनवाई के लिए उपलब्ध न होने के चलते मामले की अगली सुनवाई पांच दिसंबर के लिए तय कर दी गई. बता दें कि तिहाड़ जेल के अधिकारियों द्वारा यासीन मलिक की सुरक्षा की वजह से उसे कोर्ट में वीडियो कांफ्रेंसिंग से पेश करने की मांग की गई थी, जिस पर तीन अगस्त को कोर्ट ने अनुमति दे दी थी.
बता दें पहले 29 मई को कोर्ट ने प्रोडक्शन वारंट जारी कर मलिक को अदालत में शारीरिक रूप से पेश होने का आदेश दिया था. जेल अधिकारियों ने आवेदन में कहा था कि मलिक को बहुत अधिक जोखिम वाले कैदियों की श्रेणी में रखा गया है. इसलिए यह जरूरी है कि सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए उसे शारीरिक रूप से पेश न किया जाए.
उल्लेखनीय है कि मलिक को पिछले साल मई में विशेष एनआईए कोर्ट ने टेरर फंडिंग मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. मलिक ने मामले में अपना दोष स्वीकार कर लिया था और अपने खिलाफ आरोपों का विरोध नहीं किया था. उसे उम्रकैद की सजा सुनाते हुए विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने कहा था कि अपराध शीर्ष अदालत द्वारा आयोजित दुर्लभतम मामले की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है. इसलिए उसे मौत की सजा नहीं दी जा रही है. न्यायाधीश ने मलिक की इस दलील को भी खारिज कर दिया था कि उन्होंने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया है और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहे हैं.
कोर्ट ने पिछले साल मार्च में इस मामले में मलिक और कई अन्य आरोपितों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप तय किए थे. जिन अन्य लोगों पर आरोप लगाए गए और मुकदमे का दावा किया गया उनमें हाफिज मुहम्मद सईद, शब्बीर अहमद शाह, हिजबुल मुजाहिद्दीन प्रमुख सलाहुद्दीन, राशिद इंजीनियर, जहूर अहमद शाह वटाली, शाहिद-उल-इस्लाम, अल्ताफ अहमद शाह उर्फ फंटूश, नईम खान और फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे शामिल थे. जबकि कोर्ट ने कामरान यूसुफ, जावेद अहमद भट्ट और सैयदा आसिया फिरदौस अंद्राबी नाम के तीन लोगों को आरोपमुक्त कर दिया था.
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