नई दिल्ली : न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि वे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अधिकार क्षेत्र को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को सौंपने पर विचार करें और एक सप्ताह में इसके बारे में अदालत को सूचित करें.
अदालत ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए बाधा बन रहे बिजली के तारों और इन तारों से बने हुए खतरों के बारे में एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी.
अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए आज कहा कि अगर एनजीटी इससे निपट रही है तो वह इंतजार कर सकती है. इस पर एक वकील ने कहा कि एनजीटी का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पर अधिकार क्षेत्र नहीं है, जिसके जवाब में अदालत ने अटॉर्नी जनरल को अधिकार क्षेत्र सौंपने पर विचार करने के लिए कहा.
अदालत को सूचित किया गया कि सितंबर में एक पक्षी की मौत हो गई है जिसके बाद अब ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की आबादी 100 हो गई है. वहीं वकील ने अदलत को सूचित किया कि जमीन के नीचे बिजली लाइनों को बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं.
ट्रांसमिशन लाइनों से डायवर्टर बनाने का सुझाव अदालत को दिया गया था, जो पक्षियों को दिशा की पहचान करने में मदद कर सकता है. हालांकि न्यायाधीश बोबडे ने कहा कि भूमिगत ट्रांसमिशन लाइनों और फिर डायवर्ट के लिए ऑर्डर नहीं दिया जा सकता है.
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उन्होंने कहा कि विशिष्ट क्षेत्रों में बिजली लाइनों को भूमिगत बिजली लाइनों में बदलने के लिए नक्शे का अध्ययन किया जाएगा. न्यायाधीश, एनजीटी के आदेश का इंतजार करना चाहते थे लेकिन, एनजीटी के पास वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पर अधिकार क्षेत्र नहीं है, इसलिए न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल को इसे अधिकार क्षेत्र देने पर विचार करने और अदालत को सूचित करने के लिए कहा है.
इससे पहले की सुनवाई में शीर्ष अदालत ने मामले पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था.