मुंबई : मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में जातियों को शामिल करने की शक्ति राज्यों को देने वाला संविधान संशोधन बिल लोकसभा में पारित हो गया है, जिसके पक्ष में विपक्ष भी हैं. पूरे सत्र में यह पहला ऐसा दिन था जब किसी बिल पर शांतिपूर्ण तरीके से चर्चा की गई. पूरे विपक्ष ने ओबीसी से जुड़े इस बिल का समर्थन किया.
इस बिल से महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल और हरियाणा में जाट समुदाय के आरक्षण का रास्ता आसान हो गया है, लेकिन इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा 50 फीसदी आरक्षण की सीमा है. कुछ दलों ने सरकार से ये मांग की कि ओबीसी आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को बढ़ाने की व्यवस्था भी कराई जाए.
शिवसेना का भाजपा पर आरोप
केंद्र व भाजपा 50 फीसदी की सीमा बनाए रखकर आरक्षण की जीत का जश्न मना रहे हैं, लेकिन मराठा समुदाय सब कुछ जानता है. जब संसद में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, तो क्या महाराष्ट्र में भाजपा के मराठा नेता चुप रहे या उन्होंने अपना मुंह बंद रखा? शिवसेना में अपने मुखपत्र सामना में बीजेपी की जमकर आलोचना की है. कहा कि कोल्हापुर के छत्रपति संभाजी राजे को खुद मराठा आरक्षण पर बोलने से रोका गया था लेकिन वे छत्रपति के वंशज हैं! वह बोलने के लिए उठ खड़े हुए फिर भाजपा के अन्य मराठों का क्या?
बता दें कि मराठा आरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल पांच मई को एक आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया कि राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरी और एडमिशन में आरक्षण देने का अधिकार नहीं है. इसके लिए जजों ने संविधान के 102वें संशोधन का हवाला दिया.
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इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण देने के फैसले पर भी रोक लगा दी थी. जिसके बाद बिल में संशोधन की मांग होने लगी थी. उसके बाद राज्यों को आरक्षण देने वाला विधेयक संसद में पारित हुआ.
हालांकि, इस बार भाजपा के मराठा सांसद छत्रपति संभाजी राजे संसद में चुपचाप बैठे रहे. बिल, जिसे शिवसेना द्वारा निशाना बनाया गया था, ने मराठा समुदाय के संघर्ष को कुछ हद तक सफलता दिलाई.
ओबीसी संविधान संशोधन बिल के पास होने के बाद एक बार फिर राज्यों को पिछड़ी जातियों की लिस्टिंग का अधिकार मिल गया है. लेकिन 50 फीसदी आरक्षण की सीमा भी तय कर दी गई है. जिसकी वजह से शिवसेना ने कहा है कि मराठा आरक्षण का मसला अभी हल नहीं हुआ है.