हैदराबाद: 'आज रात 12 बजे से 500 रुपये और 1000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानि ये मुद्राएं कानूनन अमान्य होंगी'. 8 नवंबर 2016 की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन की ये लाइन कइयों के ज़हन में आज भी बसी हुई है. आज नोटबंदी के 5 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन इसकी चर्चा ना मीडिया में है और ना ही इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान आया है और ना ही उनके मंत्रियों का, कुछ इक्का दुक्का विरोधियों ने जरूर इसपर सवाल पूछ लिए हैं. नोटबंदी के 5 साल बाद सवाल है कि जिस मकसद से नोटबंदी की गई थी वो पूरा हो भी पाया या नहीं.
नोटबंदी को एक तीर से कई शिकार करने वाला बताया गया
नोटबंदी के बाद भले लोगों के दिन एटीएम की लाइनों में गुजर रहे थे. कई लोग सरकार द्वारा रातों रात लिए इस फैसले को गलत भी बता रहे थे और कई लोगों को शादी ब्याह से लेकर इलाज और तमाम रोजमर्रा के काम में दिक्कत भी हुई लेकिन फिर भी देश का एक बड़ा तबका सरकार के साथ खड़ा था. दरअसल सरकार ने नोटबंदी के जो मकसद गिनाए थे उनको सुनकर लोग नोटबंदी से हुई हर मुश्किल झेलने को तैयार थे क्योंकि सरकार ने देश के भविष्य के लिए नोटबंदी के लिए जो तर्क दिए थे वो वाजिब भी थे.
1) कालाधन पर होगी मार- ये मुद्दा साल 2014 के लोकसभा में खूब छाया रहा. चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि दुनियाभर में इतना देश के भ्रष्टाचारियों ने इतना कालाधन छिपाया है कि उसे वापस लाएंगे तो हर नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपये आएंगे. देश में कालेधन पर नकेल कसने के लिए सरकार ने नोटबंदी को अहम फैसला बताया था.
2) भ्रष्टाचार पर मार- ये मुद्दा भी वैसे तो सालों साल से चुनावी मौसम में उठता रहा है लेकिन बीजेपी ने इसे कांग्रेस के 70 साल के राज से जोड़कर और भी बड़ा बना दिया. सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ नोटबंदी को बड़ा हथियार बताया था.
3) नकली नोट पर कसेगी नकेल- सरकार का मानना था कि भारतीय मुद्रा के बड़े नोटों मसलन 500 और 1000 रुपये के नकली नोटों की बाजार में भरमार है, जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है. ऐसे में नकली नोट के काले कारोबार को खत्म करने के लिए नोटबंदी को बड़ा फैसला बताया गया था.
4) आतंकवाद का होगा अंत- सरकार का दावा था कि देश में बढ़ते आतंकवाद के लिए होने वाली वो फंडिंग जिम्मेदार है जिसमें एक बड़ा हिस्सा 500 और 1000 रुपये के नोटों का है. ऐसे में इन दोनों नोटों को बंद करने से आतंकवाद पर भी नकेल कसेगी.
5) महंगाई होगी कम- सरकार से लेकर कई अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था में बड़े नोटों के मौजूदगी को कम करने की दलील दी थी. जिससे भ्रष्टाचार और नकली नोट के अलावा महंगाई पर भी लगाम लगाने का वादा था.
कितनी कामयाब रही नोटबंदी ?
5 साल बाद ना सरकार नोटबंदी का जिक्र कर रही है और ना ही कोई टीवी चैनल, जानकार मानते हैं कि नोटबंदी अपने मकसद से कोसों दूर साबित हुई है इसलिये सरकार नोटबंदी का जिक्र नहीं कर रही है. आइये जानते हैं कि सरकार ने नोटबंदी जिस मकसद से की थी, 5 साल बाद वो मकसद कहां छूट गए हैं.
क्या कालाधन वापस आया ?
नरेंद्र मोदी ने जब नोटबंदी का ऐलान किया था तो इस कदम को कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी चोट बताया था. आज 5 साल बीत चुके हैं, सवाल उठता है कि क्या कालेधन पर नोटबंदी का कोई असर पड़ा है. दरअसल सरकार ने नोटबंदी के दो साल बाद एक रिपोर्ट में बताया था कि नोटबंदी के बाद करीब 99 फीसदी करेंसी सिस्टम में वापस आ गई है यानि 500 और 1000 रुपये के 99 फीसदी नोट वापस रिजर्व बैंक के पास आ गए हैं. ऐसे में सवाल अब भी जस का तस बना हुआ है कि काले धन पर चोट पड़ी या नहीं ? क्योंकि जब सारा पैसा वापस सिस्टम में आ गया तो सवाल ये भी उठता है कि क्या देश में 1000 और 500 रुपये के नोटों के रूप में मौजूद कालाधन भी सफेद हो गया है ?
आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के वक्त 15.41 लाख करोड़ रुपये के 500 और 1000 के नोट देशभर में मौजूद थे और दो साल बाद ही 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट यानि 99 फीसदी से ज्यादा नोट वापस बैंकों में जमा करवा दिए गए. सिर्फ 10,720 करोड़ रुपये नहीं आया जो 500 और 1000 के कुल नोटों का 1% भी नहीं है. नोटबंदी का पहला मकसद पूरा नहीं हुआ.
डिजिटल ट्रांजैक्शन का चलन बढ़ा
पीएम मोदी ने बढ़ते डिजिटल ट्रांजेक्शन या ऑनलाइन पेमेंट को नोटबंदी का सबसे अच्छा असर बताया था. सरकार के मुताबिक इससे कैश पर निर्भरता कम होगी. जिससे लोगों का समय और सरकार का पैसा और संसाधन बचेंगे. ये सच भी है कि नोटबंदी के बाद से कई डिजिटल वॉलेट आज स्मार्ट फोन में सबसे महत्वपूर्ण एपलिकेशन के रूप में जगह बनाए हुए हैं. दुकान पर सामान लेने के लिए डिजिटल वॉलेट से ही भुगतान किया जा रहा है. वॉलेट के अलावा बैंकों के ऐप, नेट बैंकिंग की मदद से ऑनलाइन लेन-देन का चलन भी बढ़ा है.
पेमेंट सिस्टम्स पर नज़र रखने वाली एक कंपनी ACI वर्ल्डवाइड के डेटा के मुताबिक 2020 में दुनिया में सबसे ज्यादा 25 अरब रियल टाइम पेमेंट्स भारत में हुए हैं. पेमेंट की संख्या के मामले हम चीन से भी आगे हैं. ACI ने भारत सरकार की वेबसाइट MyGov के साथ मिलकर एक सर्वे भी किया था. सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी कंज्यूमर्स हफ्ते में एक बार या एक से ज्यादा ऑनलाइन पेमेंट करते हैं. RBI का डेटा के अनुसार पिछले वित्त वर्ष में डिजिटल पेमेंट्स में 30 फीसदी का इजाफा हुआ है.
लेकिन कैश भी बढ़ा है
नोटबंदी के 5 साल बाद कैश में लेन-देन अब भी ज्यादातर लोगों की पहली पसंद बना हुआ है. भारतीय रिजर्व बैंक हर 15 दिन (पखवाड़े) में currency with public यान लोगों के पास कितनी नकदी है, इसकी एक रिपोर्ट जारी करता है. 8 अक्टूबर 2021 को खत्म हुए पखवाड़े की रिपोर्ट बताती है कि लोगों के पास 28.30 लाख करोड़ रुपये की करेंसी है. जो अब तक का रिकॉर्ड है, ये आंकड़ा नोटबंदी से ठीक पहले 4 नवंबर 2016 की रिपोर्ट में 17.97 लाख करोड़ था. यानि 5 साल में 10.33 लाख करोड़ की बढ़ोतरी, जो उस वक्त से 57.48 फीसदी अधिक है.
जबकि 25 नवंबर 2016 यानि नोटबंदी के ऐलान के करीब 2 हफ्ते बाद करेंसी का ये आंकड़ा 9.11 लाख करोड़ रुपये था. 4 नवंबर 2016 को जो करेंसी 17.97 लाख करोड़ थी, वो महज 2 महीने बाद ही जनवरी 2017 में 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई. कुल मिलाकर कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ कुछ कदम चले तो हैं लेकिन बाजार में करेंसी की भरमार पहले से अधिक है.
विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना महामारी के चलते इसमें और तेजी आई क्योंकि लॉकडाउन के चलते अधिक से अधिक लोग कैश की व्यवस्था करने लगे ताकि रोजमर्रा के जरूरत की चीजों के लिए भुगतान किया जा सके. इससे नकदी का चलन बढ़ा है. कोरोना का असर बैंकों के कामकाज पर भी पड़ा था ऐसे में लोगों की कैश पर निर्भरता बढ़ी. आरबीआई का मानना है कि नॉमिनल जीडीपी में बढ़ोतरी के साथ सिस्टम में नकदी भी बढ़ेगी. त्योहारी सीजन में नकदी की मांग अधिक बनी रही क्योंकि अधिकतर दुकानदार नकद लेन-देन पर निर्भर रहे.
अर्थव्यवस्था में बड़े नोटों की मौजूदगी
नोटबंदी के वक्त सरकार से लेकर तमाम अर्थशास्त्रियों ने बड़े नोटों को अर्थव्यवस्था का दुश्मन बताया था और 1000 और 500 के नोटों के बंद करने के फैसले की सराहना की थी. लेकिन के नोटबंदी के फैसले के बाद 1000 और 500 रुपये के नोट तो चलन से बाहर हो गए लेकिन 2000 का नोट मिलने लगा, नोटबंदी के बाद ये नोट लोगों के जी का जंजाल बना रहा. बाजार में 1000 और 500 चलन में नहीं थे, बैंक खाते से भी एक साथ सिर्फ 2400 रुपये ही निकाल सकते थे. ऐसे में इस 2000 के नोट का क्या करते ? इसका गणित कोई भी अर्थशास्त्री नहीं समझा पाएगा.
2016 में नोटबंदी के वक्त देश में मौजूद कुल नकदी में 1000 और 500 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी 85 फीसदी थी. सरकार और अर्थशास्त्री बड़े नोटों के पक्ष में नहीं थे लेकिन 5 साल बाद अर्थव्यवस्था में 500 और 2000 के नोटों की हिस्सेदारी 85.7 फीसदी हो गई है.
नकली नोटों पर कसी नकेल ?
नोटबंदी के बाद भी नकली नोटों के मिलने का सिलसिला जारी रहा. हैरानी की बात ये है कि 2017 और 2018 में पकड़े गए नकली नोटों में से 56 फीसद नकली नोट 2000 रुपये के थे. जबकि सरकार का मकसद नकली नोटों पर नकेल कसना था. साल 2018 में करीब 18 करोड़ रुपये के 2.57 लाख नकली नोट पकड़े गए जबकि 2019 में 25 करोड़ से अधिक के करीब 2.87 लाख नोट पकड़े गए थे. नई करेंसी जारी होने के 2 से 3 साल के अंदर ही इतनी मात्रा में नोट मिलना भी सवाल खड़ा करता है.
क्या आतंक पर लगी लगाम ?
नोटबंदी के बाद से देश में आतंकी घटनाएं लगातार कम तो हुई हैं लेकिन पुलवामा अटैक जैसे मामले नोटबंदी के बाद ही सामने आए हैं. सरकार ने नोटबंदी को आतंक की कमर तोड़ने वाला फैसला बताया था, टेरर फंडिंग के खिलाफ NIA की छापेमारी देशभर में जारी है. लेकिन जानकार मानते हैं कि आतंकवाद के पाकिस्तान कनेक्शन का सबसे बड़ा दंश जम्मू और कश्मीर झेलता रहा है, जहां नोटबंदी नहीं बल्कि धारा 370 हटाने का असर दिखा है. साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़े बताते हैं कि साल दर साल आतंकी घटनाएं तो कम हुई हैं लेकिन आतंक के आंकड़े फिर भी डराते हैं.
साल | आतंकी घटनाएं |
2016 | 2394 |
2017 | 2126 |
2018 | 2119 |
2019 | 1786 |
2020 | 1431 |
2021 | 1472 |
क्या महंगाई कम हुई ?
नोटबंदी की 5वीं सालगिरह ऐसे वक्त में आई है जब जनता महंगाई से त्रस्त है. पेट्रोल-डीजल की रोज बढ़ती कीमतों से सरकार के बीते फैसलों ने कुछ राहत तो दी है लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरे की ही तरह कही जाएगी. केंद्र सरकार ने डीजल पर 10 रुपये और पेट्रोल पर 5 रुपये की एक्साइज ड्यूटी कम कर दी और फिर कई राज्यों ने भी वैट कम किया है. लेकिन पेट्रोल और डीजल के दाम बीते एक साल में 40 से लेकर50 रुपये प्रतिलीटर के बीच बढ़े हैं ऐसे में 5 और 10 रुपये की कमी से जनता को बस कहने भर के लिए राहत मिली है. क्योंकि इस राहत के बाद भी पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ रहे हैं.
जिसका सीधा असर खाद्य पदार्थों की कीमतों पर पड़ता है. दाल से लेकर खाद्य तेल और चावल, चीनी से लेकर सब्जियों और फलों के दाम आम आदमी का बजट बिगाड़ रहे हैं. पेट्रोल डीजल के अलावा सीएनजी से लेकर पीएनजी और एलपीजी के दाम भी जेब जला रहे हैं. ऐसे में कह सकते हैं कि इस मंहगाई पर नोटबंदी का रत्ती भर भी असर नहीं पड़ा है.
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