येल्लान्दु: हरिका ने अपने पिता के शब्दों से प्रेरित होकर लक्ष्य हासिल करने की कोशिश की, जिन्होंने कहा था कि 'अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कुछ भी असंभव नहीं है.' वह लक्ष्मैया और स्वरूपा की तीन बेटियों में से एक हैं. पिता दर्जी का काम करके परिवार का भरण-पोषण करते हैं. उस समय भद्राद्रि कोठागुडेम जिले के येल्लान्दु में उनके घर के बगल में एक अदालत थी.
वहां वकीलों और जजों को आते-जाते देख उनके मन में अपनी बेटियों में से एक को जज बनाने की इच्छा हुई. इसी बीच उन्हें सिंगरेनी कंपनी गोदावरीखानी में ट्रांसफर फिलर वर्कर की नौकरी मिल गई. उन्होंने वहां 20 साल तक काम किया. बाद में येल्लान्दु क्षेत्र में रसोइया के रूप में नियुक्त होने के बाद वह अपने गृहनगर लौट आए. उन्होंने अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराया.
उन्होंने अपने बच्चों की अच्छी पढ़ाई कराने का प्रयास किया. अपने पिता के विचार के अनुरूप हरिका बचपन से ही पढ़ाई में सक्रिय रहीं. उनकी सारी शिक्षा गोदावरीखानी और कोठागुडेम में हुई. उसके बाद, उन्होंने काकतीय विश्वविद्यालय से बीए एलएलबी और उस्मानिया विश्वविद्यालय से एलएलएम पूरा किया. आदिवासी क्षेत्र येल्लान्दु के इतिहास में अब तक यहां से कोई भी जज नहीं चुना गया है. हरिका ने ये उपलब्धि हासिल की है.
2022 में जेसीजे की अधिसूचना के साथ, उन्होंने दिन-रात काम किया. हजारों लोगों द्वारा दी इस लिखित परीक्षा में हरिका को संयुक्त खम्मम जिले से जज के रूप में चुना गया था. उन्होंने वारंगल के तीसरे अतिरिक्त जूनियर सिविल जज के रूप में चयनित होकर अपने पिता की इच्छा पूरी की. हरिका ने कहा, 'हम सफलता तभी हासिल कर सकते हैं जब हम लक्ष्य चुनेंगे. मुझे अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करना है. हमें हार के बारे में सोचे बिना धैर्यपूर्वक प्रयास करना चाहिए.'