ग्वालियर। दुनियाभर की सभी भाषाओं की जननी कहीं जाने वाली संस्कृत भाषा का फिर से दुनिया में डंका बजेगा. इसको लेकर पहली बार मध्य प्रदेश की जीवाजी विश्वविद्यालय में संस्कृत पीठ की स्थापना की जा रही है. इस पीठ के माध्यम से देश भर के विख्यात संस्कृत महाकवियों की रचनाओं को कई भाषाओं में किए उनके अनुवाद और देश के अलग-अलग हिस्सों में संस्कृत की कृतियों पर जो काम हुआ है, उनका संकलन और नए सिरे से शोध किया जाएगा. इसके अलावा पीठ के माध्यम से संस्कृत को पढ़ाने के हिसाब बहुत रुचिकर और सरल बनाया जाएगा, जिससे आगे की पीढ़ी इसमें रुचि दिखा सके.
संस्कृत पीठ का प्रस्ताव किया तैयार: मध्य प्रदेश की जीवाजी विश्वविद्यालय में प्रदेश की पहली भवभूति संस्कृत पीठ बनाई जा रही है. इसका प्रस्ताव तैयार हो चुका है. नए साल से इसकी शुरुआत की जाएगी. पीठ का प्रमुख उद्देश्य, महाकवि भवभूति की रचनाओं, उनके रूपकों पर की गई संस्कृत टीकाओं और विभिन्न भाषाओं में किए अनुवादों, उनकी रचनाओं पर विभिन्न विश्वविद्यालय में किए गए शोध कार्यों पर रिसर्च किया जाएगा.
इसके अलावा महाकवि भवभूति की रचनाओं का लोक प्रचार प्रसार, उनके रूपको की तुलनात्मक विमर्श, उनकी प्राप्त रचनाओं की खोज पर भी फोकस किया जाएगा.
जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अविनाश तिवारी ने ईटीवी भारत को बताया है, 'मध्य प्रदेश में पहली बार यह पहले भवभूति संस्कृत पीठ की स्थापना की जा रही है. संस्कृत भाषा हर भाषा की जननी है और संस्कृत विषय में जो पड़ेगा तो उसी से जय भारतीय संस्कृति का विकास होगा. अगर हम भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ना चाहते हैं, तो हमें इसको लेकर आगे आना होगा और यही हमारा उद्देश्य है.'
कुलपति डॉ अविनाश तिवारी ने बताया है, 'संस्कृत पीठ के माध्यम से महाकवि और उनकी रचनाओं पर शोध होगा. इसके अलावा संस्कृत भाषा को रोजगार और सरल बनाने के लिए यहां पर शोध किया जाएगा. ताकि, आगे आने वाले समय में महाविद्यालय स्कूल और विश्वविद्यालय में संस्कृत का भाषा का उपयोग अधिक से अधिक हो सके.'
पहली संस्कृत लाइब्रेरी होगी: कुलपति डॉक्टर अविनाश तिवारी ने बताया, 'पहली संस्कृत लाइब्रेरी भी बनाने जा रहे हैं, जो पूरी तरह से डिजिटल होगी. इस लाइब्रेरी में हम संस्कृत विषय से जुड़े पुराने जितने भी ओरिजिनल डॉक्यूमेंट हैं, उनको रखेंगे. इसके अलावा जो ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स संस्कृत में लिखे गए हैं, उनको यहां पर डिजिटल किया जाएगा. जिसे आसानी से उपलब्ध कराया जा सके.'
'हम लोग इसकी शुरुआत अगले सत्र 2024 25 से करने वाले हैं. इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है. प्लैनिंग एंड इवोल्यूशन बोर्ड में इसके सिलेबस पूरा बन चुका है. इसके सिलेबस को शुरू करके अगले सत्र से इसको लागू करेंगे. इस संस्कृत पीठ में प्रशासनिक संरचना की प्रस्ताव भी तैयार किया गया है. इसका निदेशक नियुक्त किया जाएगा जो प्रोफेसर की योग्यता रखने वाला होगा. इसके अलावा उपनिदेशक सहायक, निदेशक नियुक्त किए जाएंगे. वहीं लेखपाल सहायक ग्रेड टू सहायक ग्रेड थ्री की नियुक्ति होगी.'
संस्कृत पीठ का ये नाम रखा: गौरतलब है कि संस्कृत पीठ का नाम भवभूति दिया गया है और इसका कारण है कि संस्कृत के महान रूपककार महाकवि भवभूति को पद्मावती प्रिय थी, जो वर्तमान में ग्वालियर के समीपवर्ती पवाया और पदवावाया के रूप में जानी जाती है. भवभूति ने अपने मालतीमाधवं में पद्मावती नगरी, सिंधु, पार्वती, मधुमती लावड़ा एवं सिंधु नदियों का सुवर्ण बिंदु महादेव और अन्य समीपवर्ती प्राकृतिक स्थलों का जीवन वर्णन किया है. इससे इन स्थानों से उनका जुड़ा होना निश्चित ही सिद्ध होता है. इसलिए महाकवि भवभूति को ग्वालियर अंचल से जोड़कर देखा जाता है.