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गुजरात : फेफड़ों में 80 संक्रमण के बाद भी युवक ने पाई कोरोना पर विजय - 34 दिनों के प्रवास

कई लोग कोविड-19 के संक्रमण की वजह से मर रहे हैं क्योंकि देश संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन इसी बीच सूरत निवासी 35 वर्षीय धर्मेश यादव 34 दिनों तक सिविल अस्पताल में मौत से जूझने के बाद पूरी तरह से ठीक हो गए. उनके फेफड़ों में 80 प्रतिशत संक्रमण था और उन्हें 15 दिनों तक वेंटीलेटर पर पर रखा गया था.

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Published : May 1, 2021, 1:42 AM IST

सूरत : कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन से संक्रमित कई लोग कोविड का इलाज कर रहे हैं जो अत्यधिक जोखिम भरा साबित हो सकता है. कई रोगियों ने कोविड-19 के लक्षणों के बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया और मौत को गले लगाना पड़ा. लेकिन सूरत के पांडेसरा इलाके में रहने वाले 35 साल के धर्मेश यादव का केस कुछ उम्मीद जगाता है.

नागरिक अस्पताल में 34 दिनों तक मौत से जूझने के बाद जब धर्मेंद्र घर लौटे तो उनके और उनके परिवार की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. हालांकि उन्होंने कोविड-19 के लक्षणों की उपेक्षा करने की बात स्वीकार की. उन्होंने कहा कि मार्च के महीने में बुखार होने पर उन्होंने खुद का निजी अस्पताल में परीक्षण कराया और रिपोर्ट में पता चला कि उन्हें डेंगू है.

उन्होंने डेंगू के इलाज के लिए दवाई ली लेकिन फिर भी खांसी, जुकाम और सिरदर्द से पीड़ित रहे. तब भी वे कोविड के परीक्षण के लिए नहीं गए. उनकी हालत तेजी से बिगड़ने लगी और उन्होंने सांस की गंभीर समस्या हो गई जिसके बाद उनके परिवार ने 108 एम्बुलेंस को बुलाया और उन्हें सिविल अस्पताल में भर्ती कराया.

34 दिनों तक चला इलाज

पांडेसरा इलाके में भेसन के निवासी धर्मेश यादव ने कहा कि सिविल अस्पताल में भर्ती होने पर उनके फेफड़े पहले से ही 80 फीसदी संक्रमित थे. डॉक्टर मेरे पास ईश्वर के स्वर्गदूतों की तरह आए और मुझे समय पर उपचार दिया. मेरे ठीक होने का पूरा श्रेय 34 दिनों के बाद सिविल अस्पताल के डॉक्टरों को जाता है.

वीडियो कॉल के जरिए परिवार से बात

उन्होंने कहा कि उन्हें कोविड वार्ड में भोजन, दवा और गर्म पानी दिया गया. परिवार ने सिविल अस्पताल पर भी पूरा भरोसा किया क्योंकि वे हर दिन वीडियो कॉल के जरिए अपडेट हासिल करते थे. सिविल अस्पताल में मेरे 34 दिनों के प्रवास के दौरान डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ ने मेरे अपने परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया. उन्होंने मुझे नियमित रूप से समय पर भोजन, नाश्ता, पीने का पानी और दवाएं दीं. साथ ही वीडियो कॉल के माध्यम से मेरे परिवार के सदस्यों से बात करने की व्यवस्था की.

आईसीयू में किया गया था शिफ्ट

अस्पताल के स्टेम सेल भवन में ड्यूटी पर रेजिडेंट डॉ. संदीप काकलोटारे ने कहा कि जब अस्पताल लाया गया था तब धर्मेश गंभीर हालत में थे. उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और ऑक्सीजन का स्तर 60 फीसदी तक नीचे आ गया था. लिहाजा उन्हें आईसीयू वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें वेंटीलेटर पर डाल दिया गया.

शारीरिक कमजोरी के अलावा उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत भी की. सीटी स्कैन में यह पाया गया कि उनके फेफड़ों का 80 प्रतिशत कोरोना वायरस से संक्रमित है. सरकारी दिशानिर्देश के अनुसार उन्हें रक्त के थक्के को रोकने के लिए रेमेडिसिविर इंजेक्शन और ब्लड थिनर की खुराक भी दी गई.

यह भी पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों

अंतत: कोरोना वायरस से जूझने के बाद डॉक्टरों ने उसे घातक महामारी के चंगुल से मुक्त कराने में सफलता पाई. उन्हें 27 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

सूरत : कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन से संक्रमित कई लोग कोविड का इलाज कर रहे हैं जो अत्यधिक जोखिम भरा साबित हो सकता है. कई रोगियों ने कोविड-19 के लक्षणों के बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया और मौत को गले लगाना पड़ा. लेकिन सूरत के पांडेसरा इलाके में रहने वाले 35 साल के धर्मेश यादव का केस कुछ उम्मीद जगाता है.

नागरिक अस्पताल में 34 दिनों तक मौत से जूझने के बाद जब धर्मेंद्र घर लौटे तो उनके और उनके परिवार की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. हालांकि उन्होंने कोविड-19 के लक्षणों की उपेक्षा करने की बात स्वीकार की. उन्होंने कहा कि मार्च के महीने में बुखार होने पर उन्होंने खुद का निजी अस्पताल में परीक्षण कराया और रिपोर्ट में पता चला कि उन्हें डेंगू है.

उन्होंने डेंगू के इलाज के लिए दवाई ली लेकिन फिर भी खांसी, जुकाम और सिरदर्द से पीड़ित रहे. तब भी वे कोविड के परीक्षण के लिए नहीं गए. उनकी हालत तेजी से बिगड़ने लगी और उन्होंने सांस की गंभीर समस्या हो गई जिसके बाद उनके परिवार ने 108 एम्बुलेंस को बुलाया और उन्हें सिविल अस्पताल में भर्ती कराया.

34 दिनों तक चला इलाज

पांडेसरा इलाके में भेसन के निवासी धर्मेश यादव ने कहा कि सिविल अस्पताल में भर्ती होने पर उनके फेफड़े पहले से ही 80 फीसदी संक्रमित थे. डॉक्टर मेरे पास ईश्वर के स्वर्गदूतों की तरह आए और मुझे समय पर उपचार दिया. मेरे ठीक होने का पूरा श्रेय 34 दिनों के बाद सिविल अस्पताल के डॉक्टरों को जाता है.

वीडियो कॉल के जरिए परिवार से बात

उन्होंने कहा कि उन्हें कोविड वार्ड में भोजन, दवा और गर्म पानी दिया गया. परिवार ने सिविल अस्पताल पर भी पूरा भरोसा किया क्योंकि वे हर दिन वीडियो कॉल के जरिए अपडेट हासिल करते थे. सिविल अस्पताल में मेरे 34 दिनों के प्रवास के दौरान डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ ने मेरे अपने परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया. उन्होंने मुझे नियमित रूप से समय पर भोजन, नाश्ता, पीने का पानी और दवाएं दीं. साथ ही वीडियो कॉल के माध्यम से मेरे परिवार के सदस्यों से बात करने की व्यवस्था की.

आईसीयू में किया गया था शिफ्ट

अस्पताल के स्टेम सेल भवन में ड्यूटी पर रेजिडेंट डॉ. संदीप काकलोटारे ने कहा कि जब अस्पताल लाया गया था तब धर्मेश गंभीर हालत में थे. उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और ऑक्सीजन का स्तर 60 फीसदी तक नीचे आ गया था. लिहाजा उन्हें आईसीयू वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें वेंटीलेटर पर डाल दिया गया.

शारीरिक कमजोरी के अलावा उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत भी की. सीटी स्कैन में यह पाया गया कि उनके फेफड़ों का 80 प्रतिशत कोरोना वायरस से संक्रमित है. सरकारी दिशानिर्देश के अनुसार उन्हें रक्त के थक्के को रोकने के लिए रेमेडिसिविर इंजेक्शन और ब्लड थिनर की खुराक भी दी गई.

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अंतत: कोरोना वायरस से जूझने के बाद डॉक्टरों ने उसे घातक महामारी के चंगुल से मुक्त कराने में सफलता पाई. उन्हें 27 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

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