बरेली : उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से एक अच्छी सामने ख़बर आई है, जिसके बाद से ही पूरा जिला गौरवान्वित महसूस कर रहा है. हम बात कर रहे हैं बरेली के एक ऐसे शख्स की, जो किसी तरह से किराना की दुकान पर काम कर अपनी जीविका चला रहा है. इस बीच उस शख्स के बेटे ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिससे पिता ही नहीं बल्कि पूरा जिला गौरव महसूस कर रहा है.
22 साल के उत्कर्ष ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन ने के बल पर सेना में लेफ्टीनेंट (lieutenant in the army) बन सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. बता दें कि हाल ही में हुए पासिंग आउट परेड (passing out parade) में 341 नए सैन्य अफसर भारतीय सेना (341 new army officers indian army) का हिस्सा बने हैं, उन्हीं में से एक उत्कर्ष तिवारी हैं.
सेना में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए उत्कर्ष का कहना है कि उन्हें मेहनत करना अच्छा लगता है. उन्होंने सेना में जाने का निश्चय किया और अपना शतप्रतिशत झोंक दिया, जिसका परिणाम सबके सामने है. उत्कर्ष ने 2014 में 95 फीसद अंक लाकर हाई स्कूल की परीक्षा पास की. इसके बाद 2016 में 12वीं की परीक्षा में भी 95 फीसदी अंक लाए. हैरानी की बात तो ये है कि इसके लिए उत्कर्ष ने कभी किसी तरह की कोई कोचिंग नहीं ली.
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इंटरनेट से की दोस्ती
उत्कर्ष के मुताबिक, पढ़ाई के लिए उन्होंने इंटरनेट से ही दोस्ती कर ली. इसी को उन्होंने पढ़ाई का जरिया बना लिया. सेना में जाने का शौक उन्हें शुरू से था. इसके लिए उन्होंने यहीं से जानकारी जुटानी शुरू की. यहीं से उन्हें TES के बारे में मालूम हुआ. उत्कर्ष के मुताबिक, कोई ऐसा शख्स नहीं था जो उनका मार्गदर्शन कर सके. इसके लिए वो अपने गुरुजनों से ही समय-समय पर मार्गदर्शन लिया करते थे और फिर क्या था शुरूआत की और रास्ते बनते चले गए.
उत्कर्ष ने सबसे पहले टेक्निकल एंट्री स्कीम (Technical Entry Scheme) के लिए फॉर्म डाला, जहां वो सफल रहे. इसके बाद उन्हें चार साल की ट्रेनिंग दी गई, जिसमें से एक साल प्रशिक्षण CTW (ऑफिसर्स ट्रेंनिंग अकादमी) गया. इसके बाद पुणे में वो CME (कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग) में बीटेक की पढ़ाई के साथ प्रशिक्षण लिया.
जीवन में काफी उतार-चढ़ाव
दरअसल, उत्कर्ष के पिता अनिल तिवारी भूता थाना क्षेत्र के शेखापुर गांव के रहने वाले हैं. उत्कर्ष के पिता के मुताबिक, उनके पिता यानि उत्कर्ष के दादा कैंसर के मरीज थे, जिसके कारण उनकी जमा पूंजी इलाज में खर्च हो गई, लेकिन इसके बावजूद पिता को बचाने में असफल रहे.
पैसा खत्म होने पर दुकान में की नौकरी
अनिल तिवारी के मुताबिक, पिता की मौत के बाद शहर में आकर वो मजदूरी करने लगे. कई बार तो उन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी. अनिल तिवारी बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं. वे एक दाल कारोबारी की दुकान पर काम करते हैं. किराए के मकान में पत्नी और बेटे संग रहकर किसी तरह गुजर बसर करते थे, उन्हें अपने बेटे की मेहनत पर पूरा भरोसा था.
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परिवार के हालात को समझते हैं उत्कर्ष
लेफ्टिनेंट उत्कर्ष ने बताया कि उनके माता-पिता ने हर हाल में उनका साथ दिया. उत्कर्ष के माता-पिता का भी कहना है कि उसने कभी भी संसाधनों को लेकर कोई शिकायत नहीं की. घर में जो भी उपलब्ध था उसी में खुश रखकर खूब मेहनत की. घर में मनोरंजन के लिए टीवी भी नहीं था.
उत्कर्ष के माता-पिता ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कई बार भावुक भी हुए. बातों ही बातों में दोनों की आंखों में अपने बेटे के कामयाब होने पर खुशी के आंसू छलक पड़े. उत्कर्ष की मां कल्पना तिवारी कहती हैं कि उनके बेटे जैसा हर मां का बेटा कामयाब हो. पिता का कहना है कि उन्हें तो इन परीक्षाओं के बारे में कुछ नहीं मालूम था, बस बेटे पर पूरा भरोसा था.
वहीं उत्कर्ष का कहना है कि अपने पिता और मां के भरोसे के वजह से ही उन्हें यह कामयाबी हासिल हुई है. उन्होंने कहा कि जो भी मेहनत से अपने लक्ष्य को तय करके आगे बढ़ेगा, वो एक दिन मंजिल जरूर पाएगा.
माता-पिता ने जिन हालातों में बेटे की परवरिश की, उसको बेटे ने भी बखूबी समझा और आखिरकार उसे मंजिल मिल गई. उत्कर्ष की ये कामयाबी उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो कुछ बड़ा कर गुजरने का सपना संजोए हुए हैं. अब परिवार को बधाइयां देने वालों का इनके घर पर लगातार पहुंच रहे हैं.